Emergency: राजनीतिक विरोधियों को जेल, गिरफ्तारी के बाद कपड़े तक पहनने का नहीं मिला वक्त, ऐसा था आपातकाल का दौर

Emergency: बेगूसराय में सबसे पहले 30 जून की रात जनसंध के संस्थापक सदस्य और जिला मंत्री आचार्य सीताराम शास्त्री को गिरफ्तार किया गया।
Emergency: राजनीतिक विरोधियों को जेल
Emergency: राजनीतिक विरोधियों को जेल

बेगूसराय, हिन्दुस्थान समाचार। भारत लोकतंत्र की जननी है। दुनिया में जहां कहीं भी लोकतांत्रिक व्यवस्था की बात की जाती है तो सबसे पहला नाम भारत का आता है लेकिन उसी भारत में 25-26 जून 1975 की रात जो हुआ, वह आजाद भारत के इतिहास में अमिट काला धब्बा बन गया। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की अनुच्छेद-352 के तहत आपातकाल की घोषणा कर दी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल के रूप में दर्ज है। 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक 21 महीने भारत में आपातकाल घोषित था।

राजनीतिक विरोधी भेज गए जेल

इस दौरान इंदिरा गांधी ने अपने राजनीतिक विरोधियों को खोज-खोज कर जेल में भिजवाया। जेल में भी उन्हें प्रताड़ित कराया गया। इंदिरा गांधी के खिलाफ पूरे देश में जन आक्रोश बढ़ रहा था तो जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर इसमें छात्र, मजदूर, किसान सहित सम्पूर्ण विपक्ष एकजुट हो गए थे। इन पर दमन करने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी गई। जबरन नसबंदी कराई गई।

चार सौ से अधिक लोकतंत्र के सेनानियों को जबरन भेजा गया जेल

जब जबरदस्ती जेल भेजा जाने लगा तो बेगूसराय भी उससे अछूता नहीं रहा। देश में जारी भ्रष्टाचार, कुव्यवस्था और सरकारी नाकामी से आक्रोशित लोग आंदोलन पर उतारू हुए और आपातकाल लगा तो बेगूसराय के चार सौ से अधिक लोकतंत्र के सेनानियों को जबरदस्ती जेल भेजा गया। उन लोगों पर आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (मीसा कानून) की धाराएं लगाई गई।

गिरफ्तारी के बाद कपड़े तक नहीं पहनने देने से बढ़ा रोष

बेगूसराय में छात्र, जनसंघ से जुड़े लोग, समाजवादी कार्यकर्ता के साथ सांगठनिक कांग्रेसी और मार्क्सवादी को भी जेल में जबरन ठूंस दिया गया। गिरफ्तार करने के बाद कपड़ा तक नहीं पहनने दिया। भगवा लुंगी देखकर मारपीट किया गया, यातनाएं दी गई, लेकिन मुद्दों को लेकर मुखड़ रहे। जेल में भी व्यवस्था के खिलाफ प्रदर्शन किया। जेल में भी लौ को बरकरार रखने के लिए गीत-कविता के माध्यम से प्रेरित करते रहे।

गिरफ्तारी वारंट मांगने पर भड़क गए थे एसपी

बेगूसराय में सबसे पहले 30 जून की रात जनसंध के संस्थापक सदस्य और जिला मंत्री आचार्य सीताराम शास्त्री को गिरफ्तार किया गया। उन्होंने बताया कि एसपी रामचन्द्र खां के विशेष आदेश पर रात करीब एक बजे ऑफिसर इंचार्ज अमरेन्द्र कुमार सिंह ने घर का दरवाजा खुलवाया। गिरफ्तारी का वारंट मांगने पर भड़क गए और कपड़ा तक पहनने नहीं दिया।अंग्रेजों के समय में गिरफ्तार करने के लिए वारंट दिखाया जाता था। लेकिन लोकतंत्र की हत्या करने वाली तानाशाही सरकार ने बगैर वारंट गिरफ्तार करवाया। आवाज दबाने का प्रयास किया गया। सात जुलाई को भागलपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया। जनता पार्टी की सरकार बनने पर 23 मार्च 1977 को जेल से रिहा होकर लौटने पर हजारों लोगों ने गर्मजोशी के साथ फूल माला से लादकर स्वागत किया। बेगूसराय में जेपी आंदोलन को धारदार बनाने में बस एक नाम की चर्चा करना नाकाफी होगी। पूर्व सांसद और बिहार सरकार में कृषि मंत्री बने रामजीवन सिंह, राजेन्द्र सिंह, जगन्नाथ सिंह, भागीरथ प्रसाद सिंह, रमेश सिंह, कपिलदेव सिंह, बिरजू सिंह, पशुपति नाथ सिंह एवं रामनरेश सिंह समेत सैकड़ों लोग आजादी के 28 साल बाद भी लोकतंत्र को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे।

छह साल तक चुनाव लड़ने पर लगी रोक

सीताराम शास्त्री ने बताया कि उत्तर प्रदेश के प्रखर समाजवादी राजनारायण ने 1971 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली से हुई इंदिरा गांधी की जीत को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी तो देश में राजनीतिक उथल पुथल का दौर शुरू हो गया। हाईकोर्ट के जज ने इंदिरा गांधी को सरकारी मशीनरी और संसाधनों का दुरुपयोग करने को लेकर सांसद चुना जाना अवैध घोषित कर छह साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दिया।

बिहार सहित गुजरात में उग्र हुआ था छात्र आंदोलन

ऐसी स्थिति में इंदिरा गांधी के पास राज्यसभा में जाने का रास्ता भी नहीं बचा था। अब उनके पास प्रधानमंत्री पद छोड़ने के सिवा दूसरा रास्ता नहीं था। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। इस बीच बिहार और गुजरात सहित अन्य राज्यों में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में छात्रों का आंदोलन उग्र हो गया था। बेगूसराय में भी आंदोलन की आग भड़की हुई थी। 1974 में जीडी कॉलेज के प्रांगण में जयप्रकाश नारायण के मंच से आवाज उठी थी ''जाग उठा है आज देश का वह सोया अभिमान।''

दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित हुई थी जयप्रकाश की ऐतिहासिक रैली

25 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित रैली में जयप्रकाश नारायण ने राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता ''सिंहासन खाली करो कि जनता आती है'' से जोश भरा। उन्होंने इंदिरा गांधी पर भारतीय लोकतंत्र का गला घोंटने का आरोप लगाया। जयप्रकाश नारायण ने छात्रों, सैनिकों और पुलिस कर्मियों से दमनकारी सरकार का आदेश नहीं मानने की अपील किया।

रैली से परेशान होकर इंदिरा ने लगाया था आपातकाल

सीताराम शास्त्री ने कहा कि जयप्रकाश नारायण के इसी रैली परेशान इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा कर लोकतंत्र का काला अध्याय लिख दिया। रात में राष्ट्रपति ने आपातकाल लगाने के अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिए। उस समय रेडियो को छोड़कर समाचार के कोई माध्यम नहीं थे। सुबह में जब हम लोगों ने ऑल इंडिया रेडियो पर इंदिरा गांधी का संदेश सुना तो भौंचक रह गए। एक झटके में जनता के सारे आधार छीन लिए गए थे।

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