Ram Mandir: मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम मानवीय मूल्यों के बनेंगे वाहक, संस्कारों को करेंगे सुदृढ़

New Delhi: 22 जनवरी 2024 को अयोध्या नगरी में एक बार फिर दीपोत्सव के साथ भव्य राम मंदिर में रामलला के दर्शन होंगे।
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नई दिल्ली, गिरजा शंकर। 30 दिन और फिर इंतजार खत्म! अगले माह भारत सहित विश्वभर के करोड़ों राम भक्तों का एक चिरकालीन सपना साकार होने जा रहा है। 22 जनवरी 2024 को अयोध्या नगरी में एक बार फिर दीपोत्सव के साथ भव्य राम मंदिर में रामलला के दर्शन होंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी साधु-संतों और श्रद्धालुओं की उपस्थिति में मंदिर को लोकार्पित करेंगे, जो श्रीराम मंदिर निर्माण के इस चरण तक पहुंचने के पीछे की 500 वर्ष की संघर्ष गाथा उकेरेगी।

प्रभु श्रीराम का मंदिर युगों-युगों तक देता रहेगा प्रेरणा

श्रीराम जन्मभूमि के संबंध में 5 अगस्त 2019 को सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय एक समिधा के समान यज्ञ की पूर्णाहुति में सहायक बना है। मूल गर्भगृह में विराजमान होने के बाद विश्व के सभी आस्थावान अयोध्या आकर प्रभु श्रीराम के जीवन से प्रेरणा लेंगे। अपने संस्कारों को सुदृढ़ करेंगे एवं संस्कारों के बल पर मानवीय मूल्यों के संरक्षक एवं वाहक बनेंगे। प्रभु श्रीराम एवं प्रभु श्रीराम का मंदिर इसकी प्रेरणा युगों-युगों तक देता रहेगा, मंदिर निर्माण आंदोलन में सहायक सभी ज्ञात-अज्ञात लोगों का पुण्य स्मरण।

भगवान राम विश्वभर में फैले करोड़ों लोगों की आस्था के केंद्र बिंदु हैं

देश के करोड़ों लोगों को संस्कारों का व्यवहार एवं संस्कृति का स्वरूप जिन महापुरुषों में साक्षात दिखाई देता है उनमें भगवान राम सर्वोपरि हैं। भगवान राम विश्वभर में फैले करोड़ों लोगों की आस्था के केंद्र बिंदु हैं। देश के सभी तीर्थ स्थानों की मिट्टी एवं सभी नदियों का पवित्र जल मंदिर निर्माण के लिए पूजन में उपयोग होना देश की एकात्मता का प्रत्यक्ष प्रकटीकरण है। सभी संप्रदायों के धर्म गुरुओं का आशीर्वाद, सामाजिक एवं आर्थिक हस्तियों की उपस्थिति देश की एकात्मता व सामाजिक सद्भाव की अनूठी मिसाल होगी।

राम मंदिर मानवता को आदर्श व्यवहार का देगा संदेश

आज देश-दुनिया के सम्मुख जो समस्याएं दीवार की तरह खड़ी हैं, उन सबका समाधान प्रभु श्रीराम के जीवन चरित्र में दिखाई देता है। महिला सशक्तीकरण अभियान के माध्यम से जो संदेश हम समाज को देना चाहते हैं, राम का रावण के साथ युद्ध उसका प्रत्यक्ष व्यवहार है। माता सीता के वन गमन के समय स्वयं राजमहल में रहकर भी वन के समान जीवन जीना यह स्त्री के प्रति उनके आदर भाव को प्रकट करता है।

समाज में जो शक्तियां सवर्ण-दलित, शहरवासी, वनवासी (जनजाति), संपन्न-गरीब की खाई को बढ़ाकर संघर्ष उत्पन्न करना चाहती हैं, उनके लिए राम का महाराज निषाद एवं माता शबरी के जूठे बेर खाना, सटीक उत्तर है। वन में उनका व्यवहार एवं पेड़-पौधे, जीव-जंतु आदि के प्रति प्रेम पर्यावरण व जैव विविधता के प्रति उनकी दृष्टि प्रकट करता है। मानवता के शत्रु राक्षसों का वध करके आतंक का उन्मूलन तो उन्होंने करके ही दिखाया है। उनका सारा जीवन इसी की प्रेरणा है। पिता-पुत्र, भाई-भाई, शिक्षक, पत्नी आदि के प्रति उनका व्यवहार मानवीय मूल्यों की पराकाष्ठा है। इस कारण राम मंदिर का निर्माण एक पूजा स्थान मात्र नहीं, बल्कि सामाजिक विघटन के इस वातावरण में मानवता को आदर्श व्यवहार का संदेश भी देगा।

आस्था के कारण ही करोड़ों लोगों का समाज मंदिर आंदोलन से जुड़ा

लोक कल्याण का विचार लेकर ऋषियों के तप के परिणाम स्वरूप जिस राष्ट्र का निर्माण हुआ, वह भारत राष्ट्र ही है। जीवन जीने की शैली जिसमें संपूर्ण विश्व का कल्याण निहित है, वह इस राष्ट्र में विकसित हुई। मानव का मानव के प्रति, प्रकृति एवं सृष्टि में व्याप्त चराचर जीव-जगत के प्रति हमारा व्यवहार कैसा हो, यह संस्कार संपूर्ण विश्व को इस धरा ने ही दिया है। शरणार्थी की सहायता एवं संकट में सहयोग, यहां का संस्कार है।

इस देश में जन्मी ऋषि परंपरा, देवी-देवताओं की वाणी, महापुरुषों एवं राजा-महाराजाओं ने अपने व्यवहार से इस संस्कार को अपने जीवन में साकार रूप दिया। लंबी परंपरा से विकसित यह संस्कार ही हमारी थाती बन गए हैं, जो हमारी संस्कृति के रूप में प्रकट होते हैं। देश के करोड़ों लोगों को इन संस्कारों का व्यवहार एवं संस्कृति स्वरूप जिन महापुरुषों में साक्षात दिखाई देता है उनमें भगवान राम का नाम सर्वोपरि है। इस कारण भगवान राम विश्व भर में फैले करोड़ों लोगों की आस्था के केंद्र बिंदु हैं। आस्था के कारण ही करोड़ों लोगों का समाज मंदिर आंदोलन से जुड़ा, जिसने अब साकार रूप ले लिया है।

इन लोगों ने शुरु किया राम मंदिर आंदोलन

प्रभु श्रीराम के जन्म स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण हिंदू समाज की चिर आकांक्षा थी, जो अब पूर्णता की ओर है। इस आकांक्षा की पूर्ति के लिए लगभग 500 से अधिक वर्षों से हिंदू समाज संघर्षरत था। असंख्य बलिदान अब तक हो चुके हैं। मुक्ति का यह संघर्ष साधु-संत, राजा-महाराजाओं आदि के नेतृत्व में चला। इस आंदोलन में निर्णायक मोड़ तब आया, जब 1983 में विश्व हिंदू परिषद ने आंदोलन अपने हाथों में लिया। स्व. अशोक सिंघल के साहसी एवं यशस्वी नेतृत्व के कारण आंदोलन देशव्यापी बना। रथयात्रा, शिला पूजन, चरण पादुका यात्रा, कार सेवा आदि कार्यक्रम आंदोलन को गति देने वाले निर्णायक चरण थे।

भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी की यात्रा से संपूर्ण देश का जनमानस आंदोलन के साथ जुड़ गया था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक स्व. मोरोपंत पिंगले, गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ, स्वामी वामदेव एवं स्वामी सत्यमित्रानंद सरीखे अनेक महापुरुष जिनका आंदोलन को गति देने में उल्लेखनीय योगदान है, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। मंदिर निर्माण का यह आंदोलन विश्व के लिए एक शोध का विषय रहेगा। समाज की आकांक्षा पूर्ति के लिए 500 वर्षों तक चलने वाला यह अनूठा जनआंदोलन है।

(यह लेखक के निजी विचार है।)

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