बीटीसी परिषद में प्रमोद बोड़ो ने ध्वनिमत से साबित किया बहुमत
बीटीसी परिषद में प्रमोद बोड़ो ने ध्वनिमत से साबित किया बहुमत

बीटीसी परिषद में प्रमोद बोड़ो ने ध्वनिमत से साबित किया बहुमत

-हग्रामा बीपीएफ ने बहुमत को मानने से किया इंकार, जाएंगी फिर हाईकोर्ट कोकराझार (असम), 24 दिसम्बर (हि.स.)। बोड़ोलैंड टेरेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) चुनाव में अपनी हार को स्वीकार करने के लिए बोड़ोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) को तैयार नहीं है। यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की बीटीसी परिषद में गठबंधन सरकार के शपथ ग्रहण के बावजूद बीपीएफ इसको मानने को तैयार नहीं है। बीपीएफ ने गुवाहाटी हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए 40 सदस्यीय बीटीसी परिषद में 17 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार बनाने के लिए आमंत्रित नहीं किए जाने को लेकर चुनौती दिया था। इसके चलते न्यायालय ने यूपीपीएल-भाजपा गठबंधन सरकार को परिषद के सदन में बहुमत साबित करने के लिए 26 दिसम्बर तक का अल्टीमेट दिया था। गुरुवार को बीटीसी मुख्यालय कोकराझार स्थित बीटीसी परिषद के एसेंबली में यूपीपीएल-भाजपा सरकार ने ध्वनिमत से अपना बहुमत साबित कर दिया। बहुमत के लिए आहूत सदन में बीपीएफ के पार्षदों ने जमकर हंगामा किया। हालांकि, अध्यक्ष ने ध्वनिमत से यूपीपीएल-भाजपा गठबंधन सरकार के पास बहुमत होने का ऐलान किया, जिससे बीपीएफ पार्षद बेहद नाराज होकर नारेबाजी करते हुए शोर मचाने लगे। बहुमत के पूर्व बीपीएफ के शोर मचाने के चलते 10 मिनट के लिए सदन को स्थगित करना पड़ा था। बीपीएफ बैलेट पेपर के जरिए बहुमत का निर्धारण करने की मांग की थी, जिसको अध्यक्ष ने सिरे से खारिज करते हुए ध्वनिमत से ही बहुमत साबित करने के लिए नव गठित सरकार को कहा। इसके बाद ध्वनिमत से प्रमोद बोड़ो नेतृत्वाधीन परिषद सरकार ने अपना बहुमत साबित कर दिया। अध्यक्ष ने प्रमोद बोड़ो की सरकार को बहुमत हासिल करने की घोषणा की जिसके बाद बीपीएफ के पार्षद सदन में हंगामा करने लगे। प्रमोद बोड़ो ने आरोप लगाया है कि बीपीएफ के पार्षद अध्यक्ष के माइक्रोफोन को तोड़ दिया। बीपीएफ पार्षदों का कहना था कि बहुमत बैलेट पेपर के जरिए होना चाहिए। क्योंकि, यूपीपीएल व भाजपा के कई पार्षद बीपीएफ के समर्थन में मतदान कर सकते हैं, लेकिन अध्यक्ष ने बैलेट पेपर के बदले ध्वनिमत से बहुमत का निर्धारण कर दिया। इससे नाराज बीपीएफ ने फिर से गुवाहाटी हाईकोर्ट में याचिका दायर कर बहुमत को चुनौती देने का ऐलान किया है। 40 सदस्यीय बीटीसी परिषद बीपीएफ को 17, यूपीपीएल को 12, भाजपा को 09, गण शक्ति पार्टी (जीएसपी) को 01 और 01 सीट कांग्रेस को मिली थी। कांग्रेस का पार्षद अपनी पार्टी से इस्तीफा देते हुए भाजपा में शामिल हो गया। जबकि बीपीएफ का भी एक पार्षद अपनी पार्टी को छोड़कर सत्ता पक्ष के खेमे में चला गया है। इसके बावजूद यूपीपीएल, भाजपा और जीएसपी के गठबंधन में कुल 22 पार्षद हैं। जो, 21 के बहुमत से 01 सीट अधिक है। वर्ष 2003 में बीटीसी के गठन के बाद लगातार 17 वर्षों तक बीपीएफ सत्ता पर काबिज रही है। बीपीएफ को विश्वास ही नहीं हो रहा है कि बीटीसी इलाके में उसकी पार्टी को कोई हरा सकता है। यही कारण है कि हार को पार्टी स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं दिख रही है। बीपीएफ के अध्यक्ष हग्रामा महिलारी ने दो दिन पहले ही बीटीसी की सभी राजनीतिक पार्टियों के संवाददाता सम्मेलन में आह्वान करते हुए कहा था कि राष्ट्रीय पार्टी के चलते बोड़ो अस्मिता को खतरा उत्पन्न हो गया है। इसलिए सभी मिलकर बीटीसी से राष्ट्रीय पार्टी को हराने के लिए सदन में एकजुट होकर मतदान करें। हालांकि वे भली भांति जानते हें कि बीटीसी सत्ता यूपीपीएल के अध्यक्ष प्रमोद बोड़ो के हाथों में। भाजपा गठबंधन में शामिल है। ऐसे में उनके बोड़ो जातीय कार्ड की भावुक अपील पर कोई ध्यान नहीं देने वाला है। कारण बीटीसी में सरकार बनाने के लिए बीपीएफ के साथ भाजपा या यूपीपीएल को आना होगा। हालांकि, यूपीपीएल, भाजपा और एक सीट वाली जीएसपी मिलकर बीटीसी में गठबंधन वाली सरकार का गठन कर लिया है। बहुमत भी उनके पक्ष में स्पष्ट है। फिर भी हग्रामा इसको मानने के लिए तैयार नहीं हैं, या यूं कहें कि वे अपनी हार को पचा नहीं पा रहे हैं। अब देखना होगा कि अगर हग्रामा कोर्ट में जाते हैं तो न्यायालय इस संबंध में क्या निर्णय लेता है। वहीं प्रमोद बोड़ो ने साफ कर दिया है कि उनकी सरकार ने सदन में अपना बहुमत साबित कर दिया है। उल्लेखनीय है कि बीपीएफ राज्य की भाजपा नेतृत्वाधीन सरकार में शामिल है। उसके तीन विधायक मंत्री भी हैं। लेकिन, बीटीसी चुनावों में सीटों के बंटवारे को लेकर दोनों पार्टियों में समझौता नहीं हो सका जिसके चलते दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ीं। दोनों ओर से चुनाव प्रचार में जमकर बयानबाजी भी हुई। इसके बाद यह साफ हो गया कि अगर जरूरत पड़ती है तो भी भाजपा व बीपीएफ एक साथ बीटीसी में साझा सरकार नहीं बनाएंगी। मजेदार बात है कि इतनी तल्खी के बावजूद हग्रामा राज्य की सोनोवाला नेतृत्वाधीन भाजपा सरकार से अपना समर्थन वापस नहीं ले रहे हैं। कारण उनके समर्थन वापस लेने पर भी भाजपा सरकार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। उल्टे राजनीतिक रूप से बीपीएफ को ही नुकसान होने वाला है। ऐसे में बीटीसी में दुराव होने के बावजूद राज्य की सत्ता से बीपीएफ अलग नहीं होना चाहती है। हिन्दुस्थान समाचार/ अरविंद/रामानुज-hindusthansamachar.in

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