लैब में जन्मी दुनिया की पहली भेड़ 'डॉली', जानिए क्या है इसका इतिहास

5 July in History: पांच जुलाई, 1996 को एक ऐसी भेड़ का जन्मदिन होता है जो लैब में पैदा हुई थी। वैज्ञानिकों ने इसे क्लोनिंग के जरिए बनाया था।
लैब में जन्मी दुनिया की पहली भेड़ 'डॉली', जानिए क्या है इसका इतिहास

नई दिल्ली, रफ्तार न्यूज डेस्क। देश-दुनिया के इतिहास में 05 जुलाई की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह तारीख जानवरों की क्लोनिंग के लिए यादगार है। पांच जुलाई, 1996 को एक ऐसी भेड़ का जन्मदिन होता है जो लैब में पैदा हुई थी। वैज्ञानिकों ने इसे क्लोनिंग के जरिए बनाया था। इस तरह पैदा होने वाली यह दुनिया की पहली प्रजाति थी। इस सफलता ने वैज्ञानिकों को उत्साह से भर दिया और इसके बाद अलग-अलग प्रजातियों की क्लोनिंग की गई।

वर्षों से वैज्ञानिक जानवरों की क्लोन की कोशिश में जुटे थे, लेकिन सफल नहीं हो सके। दरअसल क्लोनिंग एक बेहद जटिल प्रक्रिया होती है और इससे पहले वैज्ञानिक कई बार ऐसा करने की कोशिश कर चुके थे। इसलिए वैज्ञानिकों ने भेड़ का क्लोन बनाने की कोशिश की। इस पूरे प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी रोजलिन इंस्टीट्यूट के सर इयन विल्मट को मिली। यह प्रोजेक्ट इतना अहम था कि सर विल्मट ने अपनी टीम में अलग-अलग वैज्ञानिकों, एम्ब्रोयोलोजिस्ट, वेटनरी डॉक्टर और स्टाफ को शामिल किया और पूरा प्रोजेक्ट बेहद गोपनीय रखा गया।

एक सफेद भेड़ के शरीर में से बॉडी सेल निकाली गई और एक दूसरी भेड़ के शरीर में से एग सेल निकाली गई। इन दोनों सेल को न्यूक्लियर ट्रांसफर के जरिए फ्यूजन करवाया गया और एक तीसरी भेड़ के गर्भाशय में डाला गया। तीसरी भेड़ की भूमिका बस इस बच्चे को अपने पेट में पालने की थी बिल्कुल एक सरोगेट मदर की तरह।

और वैज्ञानिकों की मेहनत रंग लाई। कहा जाता है कि इस भेड़ का नाम डॉली अमेरिकी सिंगर और एक्ट्रेस डॉली पार्टन के नाम पर रखा गया। इसकी वजह यह थी कि डॉली पार्टन काफी हष्ट-पुष्ट थीं और क्लोन से जो भेड़ पैदा हुई थी, वो भी उनकी तरह ही थी। इस भेड़ को 22 फरवरी, 1997 को दुनिया के सामने लाया गया। वह रातों-रात स्टार बन गई।

डॉली ने दो साल की उम्र में अपने पहले मेमने को जन्म दिया। उसका नाम बोनी रखा गया। उसके बाद डॉली ने एक बार जुड़वां और एक बार तीन बच्चों को जन्म दिया। सितंबर 2000 में जब डॉली ने अपने आखिरी मेमने को जन्म दिया तब पता चला कि डॉली को लंग कैंसर और अर्थराइटिस है। डॉली लंगड़ा कर चलने लगी और उसकी सेहत धीरे-धीरे गिरती गई। जब डॉली की तकलीफ बढ़ने लगी तो वैज्ञानिकों ने डॉली को मारने का फैसला लिया ताकि उसे तकलीफ भरी जिंदगी से छुटकारा मिल सके। 14 फरवरी, 2003 को डॉली को युथ्नेशिया (इच्छामृत्यु) से मार दिया गया।

डॉली वैज्ञानिक जगत के लिए करिश्मा थी। लिहाजा रोजलिन इंस्टीट्यूट ने डॉली के शव को नेशनल म्यूजियम ऑफ स्कॉटलैंड को डोनेट कर दिया। आप आज भी डॉली को इस म्यूजियम में देख सकते हैं। डॉली की सफल क्लोनिंग के बाद वैज्ञानिकों के लिए दूसरों जानवरों की क्लोनिंग के रास्ते खुल गए। बाद में सूअर, घोड़े, हिरण और बैलों के क्लोन भी बनाए गए। इंसानों के क्लोन भी बनाने की कोशिश की गई लेकिन इसमें अब तक सफलता नहीं मिल सकी है। दुनियाभर के वैज्ञानिक जानवरों की लुप्त हो रही प्रजातियों को बचाने के लिए भी क्लोनिंग का इस्तेमाल करते हैं। वैज्ञानिकों ने जंगली बकरी की खत्म हो चुकी प्रजाति को बचाने के लिए एक बार उसका क्लोन बनाया मगर उस क्लोन की मौत भी लंग की बीमारी से हो गई।

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