कोविड-के-कारण-सार्वभौमिक-स्वास्थ्य-कवरेज-की-प्रगति-धीमी-होने-की-सम्भावना
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कोविड के कारण सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की प्रगति धीमी होने की सम्भावना

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और विश्व बैंक ने रविवार को जारी एक रिपोर्ट में कहा है कि सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज में दो दशकों के दौरान हुई जो प्रगति हुई है, कोविड-19 महामारी के कारण, उस प्रगति के रुक जाने की सम्भावना है. रविवार को, ‘अन्तरराष्ट्रीय सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज दिवस’ (UHC) के अवसर पर जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 50 करोड़ से ज़्यादा लोग, अत्यन्त ग़रीबी की तरफ़ धकेले जा रहे हैं, क्योंकि उन्हें स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के लिये, अपनी जेबों से रक़म अदा करनी पड़ती है. The #COVID19 pandemic has made it increasingly difficult for people to pay for care. Even before the pandemic, half a billion people were being pushed into extreme poverty as they had to pay for health care out of their own pockets. #UHCday pic.twitter.com/hPDqBxbLTe — World Health Organization (WHO) (@WHO) December 12, 2021 रिपोर्ट के निष्कर्षों में, कोविड-19 के कारण, स्वास्थ्य सेवाएँ हासिल करने में लोगों की सामर्थ्य पर पड़े विनाशकारी प्रभाव को भी रेखांकित किया गया है, क्योंकि बहुत से लोग, स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता की क़ीमत वहन नही कर पा रहे हैं. यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने इस दिवस पर अपने सन्देश में कहा है कि कोविड-19 महामारी का तीसरा वर्ष जल्द ही शुरू होने वाला है. ऐसे में, “हमें अपनी स्वास्थ्य प्रणालियों को इस तरह से मज़बूत करना होगा ताकि वो समानता के आधार पर सेवाएँ मुहैया कराएँ, सहनसक्षम हों और हर किसी की स्वास्थ्य ज़रूरतों को पूरा करने में समर्थ हों, इनमें मानसिक स्वास्थ्य ज़रूरतें भी शामिल हैं.” झटकों की लहर यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा, “स्वास्थ्य आपदा की आघात लहरें, उन देशों में सबसे ज़्यादा तबाही मचा रही हैं जहाँ स्वास्थ्य व्यवस्थाएँ, गुणवत्तापरक और सर्वजन को सुलभ स्वास्थ्य सेवाएँ मुहैया कराने में सक्षम नहीं हैं.” अगर दुनिया को वर्ष 2030 तक, सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) का लक्ष्य प्राप्त करना है तो, साबित हो चुके समाधानों का दायरा बढ़ाने और उनमें संसाधन निवेश करने के लिये, सरकारों की तरफ़ से और ज़्यादा प्रतिबद्धताओं की दरकार है. एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि इसमें स्वास्थ्य प्रणालियों की बुनियादों में ज़्यादा व स्मार्ट संसाधन निवेश करना होगा जिसमें मुख्य ज़ोर प्राइमरी स्वास्थ्य देखभाल, अनिवार्य सेवाओं और हाशिये पर रहने वाली आबादियों की बेहतरी पर हो. यूएन प्रमुख का कहना है कि सहनसक्षम अर्थव्यवस्थाओं और समुदायों के लिये सर्वश्रेष्ठ बीमा होगा – कोई संकट उबरने से पहले, स्वास्थ्य सेवाओं को मज़बूत किया जाना. उन्होंने कहा, “पिछले एक वर्ष के दौरान, कोविड-19 की वैक्सीन का असमान वितरण, एक वैश्विक नैतिक नाकामी रही है." "हमें इन अनुभवों से सबक़ सीखना होगा. महामारी किसी भी देश के लिये तब तक ख़त्म नहीं होगी, जब तक कि ये प्रत्येक देश के लिये ख़त्म नहीं हो जाती है.” दबाव, तनाव और चिन्ताएँ विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक की एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि वर्ष 2020 के दौरान, महामारी ने स्वास्थ्य सेवाओं में व्यवधान डाला और देशों की स्वास्थ्य प्रणालियों पर उनकी सीमाओं से भी अधिक दबाव डाला है. उदाहरण के लिये, इसके परिणामस्वरूप, टीकाकरण अभियान, पिछले दस वर्षों के दौरान पहली बार धीमा हुआ है, और टीबी व मलेरिया से होने वाली मौतें बढ़ी हैं. स्वास्थ्य महामारी ने, वर्ष 1930 के बाद से सबसे ज़्यादा ख़राब आर्थिक संकट भी उत्पन्न कर दिया है, जिसके कारण, बहुत से लोगों के लिये, जीवनरक्षक स्वास्थ्य सेवाओं का ख़र्च वहन करना भी कठिन हो गया है. “महामारी से पहले भी, लगभग 50 करोड़ लोग, स्वास्थ्य सेवाओं के ख़र्च के कारण, अत्यन्त निर्धनता के गर्त में धकेले जा रहे थे, और अब भी धकेले जा रहे हैं.” संगठनों का मानना है कि ऐसे लोगों की संख्या अब और भी ज़्यादा है. यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के मुखिया टैड्रॉस ऐडहेनॉम घेबरेयेसस का कहना है कि गँवाने के लिये समय बिल्कुल भी नहीं बचा है. “तमाम सरकारों को ऐसे प्रयास फिर से शुरू करने और तेज़ करने होंगे जिनके ज़रिये उनके नागरिकों को स्वास्थ्य सेवाएँ, किन्हीं वित्तीय दुष्परिणामों के डर के बिना, उपलब्ध हो सकें.” “इसका मतलब है कि स्वास्थ्य और सामजिक संरक्षा पर सार्वजनिक धन ख़र्च और उपलब्धता में बढ़ोत्तरी की जाए, और ऐसी प्राइमरी स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर ध्यान केन्द्रित किया जाए जो, लोगों को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएँ उनके घरों के नज़दीक ही मुहैया कर सकें.” --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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