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यूएन भविष्य: गुटेरेश की पुकार, विशाल सोचने की ज़रूरत

वर्ष 2020 में संयुक्त राष्ट्र की 75वीं वर्षगाँठ मनाने के दौरान, संगठन के भविष्य के बारे में प्रमुख आन्तरिक चर्चाएँ हुईं, और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के इसके शुरुआती दिनों से अलग, एकदम नई दिशा बनाने पर आम सहमति हुई. इन चर्चाओं का परिणाम था ‘हमारा साझा एजेण्डा’ नामक एक नई ऐतिहासिक रिपोर्ट, जिसे संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने शुक्रवार को जारी किया है. ये एजेण्डा, वैश्विक सहयोग के भविष्य के लिये उनका दृष्टिकोण दर्शाता है. यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने, शुक्रवार को यूएन महासभा की एक बैठक में ये एजेण्डा पेश किया है जिसमें उन्होंने विश्व की ताज़ा स्थिति का एक ख़ाका पेश किया गया है जिसे बेहद दबाव वाली स्थिति क़रार दिया गया है. उन्होंने साथ ही चेतावनी भरे शब्दों में ये भी कहा है कि दुनिया के सामने एक गम्भीर अस्थिरता और जलवायु संकट के भविष्य का जोखिम मौजूद है. यूएन महासचिव ने कहा, “जलवायु संकट से लेकर प्रकृति पर आत्मघाती युद्ध तक, और जैव विविधता को व्यापक नुक़सान, इन सभी के लिये, वैश्विक कार्रवाई बहुत कम है, और उसमें भी बहुत देर हो रही है.” “बेलगाम असमानता के कराण सामाजिक समरसता की अहमियत कम हो रही है, इसके कारण ऐसे नाज़ुक हालात पैदा हो रहे हैं जिससे हम सभी प्रभावित हो रहे हैं. टैक्नॉलॉजी भी बिना किसी रोकटोक के आगे बढ़ रही है, इसके भी अदृश्य परिणामों से सुरक्षा सुनिश्चित करने की ज़रूरत होगी.” यूएन प्रमुख ने ये रिपोर्ट जारी करते हुए बताया कि व्यापक विचार विमर्श के बाद ये एजेण्डा तैयार किया गया है. इसमें व्यापक स्तर पर लोगों की बात सुनी गई जिसमें संयुक्त राष्ट्र इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि दुनिया के संकटों से निपटने के लिये, वृहद बहुपक्षवाद को एक रास्ते के रूप में देखा जा रहा है. बिखर जाएँ या रास्ता बना लें इस रिपोर्ट में दो विरोधाभासी भविष्यों पर विचार किया गया है: एक है बिखराव और लगातार संकटों की स्थिति, और दूसरा है – जिसमें आगे बढ़ने का एक रास्ता है, जोकि ज़्यादा हरित और सुरक्षित भविष्य की रास्ता है. एक निराशाजनक व हताशा वाली स्थिति में, ऐसा परिदृश्य पेश किया गया है जिसमें दुनिया, कोविड-19 वायरस ख़ुद को लगातार विकसित करते हुए अपने रूप बदल रहा है, क्योंकि धनी देशों के पास तो वैक्सीनें अत्यधिक मात्रा में मौजूद हैं, दुनिया भर की स्वास्थ्य प्रणालियाँ अत्यधिक दबाव में हैं. UN Photo/Igor Rugwiza हेती में, तूफ़ान मैथ्यू ने व्यापक तबाही मचाई थी (फ़ाइल). भविष्य में, तापमान वृद्धि और चरम मौसम की घटनाओं के कारण ये पृथ्वी रहने के लायक़ नहीं रह जाएगी, साथ ही, लाखों प्रजातियाँ, लुप्त होने के कगार पर होंगी. ये स्थिति, लगातार मानवाधिकार उल्लंघन, आमदनियों और आजीविकाओं के व्यापक नुक़सान, और बढ़ते प्रदर्शनों व अशान्ति के कारण और भी ज़्यादा विकट नज़र आती है, जिन्हें दबाने के लिये हिंसक बल प्रयोग का भी सहारा लिया जाता है. या फिर हम एक दूसरा रास्ता अपना सकते हैं, वैक्सीनें समान रूप से उपलब्ध हों, और एक ऐसी टिकाऊ पुनर्बहाली की ओर आगे बढ़ें जिसमें वैश्विक अर्थव्यवस्था, को ज़्यादा टिकाऊ, सहनशील, और समावेशी बनाया जाए. --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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