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जलवायु परिवर्तन से जल एवं स्वच्छता सुलभता के लिये ख़तरा 

संयुक्त राष्ट्र ने शुक्रवार को चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि जलवायु परिवर्तन के कारण, आम लोगों के लिये जल और साफ़-सफ़ाई की सुलभता पर दबाव बढ़ने की आशंका है. इसकी रोकथाम के लिये देशों की सरकारों से बुनियादी ढाँचे अभी से तैयार करने की अहमियत को रेखांकित किया गया है. योरोप के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग (UNECE) के प्रवक्ता टॉमस क्रोल-नाइट ने कहा कि, “जलवायु परिवर्तन, दुनिया भर में देशों में, पहले से ही जल व साफ़-सफ़ाई व्यवस्था के लिये गम्भीर चुनौती पेश कर रहा है.” ⚠️#Climatechange threatens access to #water & #sanitation, warn @UNECE+@WHO_Europe, urging reinforced measures under🇺🇳Protocol on Water & Health to boost #resilience This comes at a crucial time as governments prepare for #COP27+#UN2023WaterConference ➡️https://t.co/ANBeH55iXr pic.twitter.com/M9enCGLnjX — UNECE (@UNECE) May 20, 2022 यूएन आयोग और योरोप में विश्व स्वास्थ्य संगठन के क्षेत्रीय कार्यालय के अनुसार, पेरिस जलवायु समझौते के अनुरूप प्राथमिकता के तौर पर चिन्हित किये जाने के बावजूद, जलवायु दबावों की पृष्ठभूमि में, पूरे योरोपीय क्षेत्र में जल सुलभता सम्भव बनाने की योजनाएँ नदारद हैं. जिनीवा में इस सप्ताह अन्तर-सरकारी बैठक के दौरान, योरोपीय क्षेत्र मे स्थित 56 देशों में पेयजल, साफ़-सफ़ाई और स्वास्थ्य के विषय में समन्वय के अभाव पर चर्चा हुई. यूएन आयोग के प्रवक्ता ने कहा कि, “जल उपलब्धता में कमी और जल आपूर्ति में दूषण से लेकर मल-प्रवाह बुनियादी ढाँचे तक, अगर देशों ने अभी सुदृढ़ता बढ़ाने के प्रयास नहीं किये, तो ये जोखिम बढ़ जाएंगे.” एक अनुमान के अनुसार, योरोपीय संघ के एक-तिहाई से अधिक हिस्से को, वर्ष 2070 तक जल सम्बन्धी भीषण दबाव झेलना पड़ सकता है. उस समय तक, वर्ष 2007 की तुलना में अतिरिक्त प्रभावितों की संख्या, एक करोड़ 60 लाख से लेकर चार करोड़ 40 लाख तक होने की सम्भावना है. दुनिया भर में, तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि पर नवीकरणीय जल संसाधनों में 20 प्रतिशत की गिरावट आने का अनुमान है, जिससे सात प्रतिशत अतिरिक्त आबादी प्रभावित होगी. वास्तविक जोखिम इस बीच, संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक जलवायु सम्मेलन (कॉप27) और वर्ष 2023 में जल सम्मेलन की तैयारियों के बीच, यूएन आयोग ने योरोप के कुछ हिस्सों के लिये गम्भीर तस्वीर उकेरी है. आयोग कहना है कि जल आपूर्ति और मल-प्रवाह बुनियादी ढाँचे को क्षति, जल गुणवत्ता में क्षरण, ये कुछ ऐसे असर हैं, जिन्हें अभी महसूस किया जा रहा है. उदाहरणस्वरूप, ऊर्जा की मांग बढ़ने और हंगरी में शोधन संयंत्रों में व्यवधान की वजह अपशिष्ट जल शोधन के लिये संचालन सम्बन्धी क़ीमत बढ़ने की आशंका है. वहीं नैदरलैण्ड्स में, पर्याप्त जल आपूर्ति सुनिश्चित करने में चुनौतियाँ बढ़ी हैं, जबकि स्पेन में सूखा पड़ने के दौरान, न्यूनतम पेयजल आपूर्ति बनाए रखना कठिन साबित हुआ है. सहनसक्षम व्यवस्था पेरिस जलवायु समझौते में अनेक राष्ट्रीय निर्धारित योगदानों (NDCs) और राष्ट्रीय कार्रवाई कार्यक्रमों में जल प्रबन्धन अनुकूलन पहल का ज़िक्र किया गया है. मगर, ऐसी सरकारी ढाँचागत व्यवस्था व तौर-तरीक़े अनुपस्थित हैं जिनसे जल व जलवायु की एकीकृत प्रणाली स्थापित की जा सके. इससे जल, साफ़-सफ़ाई और स्वास्थ्य से आपस में जुड़े अधिकांश मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया जा पा रहा है. यूएन आयोग का कहना है कि जल एवं स्वास्थ्य पर प्रोटोकॉल, एक अहम भूमिका निभा सकता है, जोकि यूएन आयोग और यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के बीच एक अनूठा बहुपक्षीय समझौता है. इसके ज़रिये, राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई योजनाओं में जल, साफ़-सफ़ाई, और स्वास्थ्य के समावेशन के लिये अतिरिक्त विकल्प विकसित किये जा सकते हैं. साथ ही, राष्ट्रीय व उप-राष्ट्रीय स्तर पर पेयजल आपूर्ति और साफ़-सफ़ाई रणनीति में जलवायु परिवर्तन के लिये ज़िम्मेदार कारणों से निपटने का भी ख़याल रखा जा सकेगा. --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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