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दुनिया की सबसे सुंदर भाषा-मातृभाषा

बीजिंग, 19 फरवरी (आईएएनएस)। नवंबर 1999 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने साल 2000 से 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में घोषित किया। इसका उद्देश्य भाषा और संस्कृति की विविधता और बहुभाषावाद को बढ़ावा देना है। भाषा आत्म-पहचान, संपर्क, सामाजिक एकीकरण, शिक्षा और विकास को बढ़ाने में रणनीतिक भूमिका निभाती है। भाषा मानव जाति की मूर्त और अमूर्त विरासत को संरक्षित और विकसित करने के लिए सबसे शक्तिशाली साधन है। मातृभाषा, मां की भाषा, जीवन की पहली याद रखती है, और बच्चों के लिए दुनिया खोलने की एक खिड़की है। मातृभाषा हमारी पहचान का प्रतीक है, हमें अनूठी सांस्कृतिक परंपरा, सोच और अभिव्यक्ति का विशिष्ट तरीका प्रदान करती है। हम अक्सर कहते हैं कि राष्ट्रीय संप्रभुता पवित्र और अहिंसक है। वास्तव में, संप्रभुता का अस्तित्व हर किसी देश की मातृभाषा से निकटता से जुड़ा हुआ है। वैश्वीकरण के तहत प्रादेशिक संप्रभुता का उल्लंघन असंभव हो गया है, इसलिए संप्रभुता की चेतना को भुलाया जा रहा है। हालांकि, एक प्रकार का अगोचर संप्रभु उल्लंघन है जो सांस्कृतिक आक्रमण ही है। भाषा केवल एक साधन नहीं है, बल्कि एक राष्ट्र-देश की संप्रभुता का प्रतीक है। फ्रांसीसी लेखक अल्फोंस डौडेट ने अपने लघु उपन्यास द लास्ट लेसन में लिखा था कि जब जर्मनी ने फ्रांसीसी क्षेत्र पर कब्जा किया, तब पहली बात यह थी कि फ्रांसीसी लोगों को फ्रेंच छोड़कर जर्मन सीखने के लिए मजबूर किया जाय। अमेरिकी लेखक एलेक्स हेली का लंबा उपन्यास रूट्स भी अपनी मातृभाषा की रक्षा के लिए लोगों के अदम्य संघर्ष को दर्शाता है। तो यह देखा जा सकता है कि प्राचीन काल से ही महान देश का विकास अपनी मातृभाषा की रक्षा करने और अपनी संप्रभुता की रक्षा करने के साथ जुड़ा रहा है। भाषा एक राष्ट्र को बनाए रखने का आध्यात्मिक स्तंभ है और हर भाषा एक राष्ट्र के लिए प्रेरणा का स्रोत, रचनात्मकता की कुंजी है और सभ्यता की विरासत है। मातृभाषा एक राष्ट्र का सबसे महत्वपूर्ण जोड़ और संस्कृति है। ज्ञान, कौशल, धर्म, रीति-रिवाज, चिकित्सा और परंपरागत कथा सभी मातृभाषा में गहराई से अंतर्निहित हैं। मातृभाषा लोगों के आध्यात्मिक जीवन और अवधारणा का आधार है। अधिक से अधिक भाषाओं को बनाए रखना जैव विविधता को बनाए रखने के समान है। वरना, सभी लोग एक भाषा बोलते हैं और एक ही तरह का व्यवहार करते हैं। इस तरह, हम पूर्वजों द्वारा छोड़ी गयी सांस्कृतिक विरासत को खो देंगे। मातृभाषा की रक्षा करना सांस्कृतिक जिम्मेदारी है, जिससे हम बच नहीं सकते। हम न केवल मातृभाषा के उपयोगकर्ता हैं, बल्कि मातृभाषा के रक्षक भी हैं। यह सांस्कृतिक जागरूकता है, जिसे हमें कभी नहीं छोड़ना चाहिए। तो आपकी मातृभाषा क्या है? क्या आप उसे अच्छी तरह से बोल सकते हैं? (साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग) --आईएएनएस एएनएम

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