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श्रीलंका: आर्थिक बदहाली के विरोधस्वरूप प्रदर्शनों में मानवाधिकार हनन की चिन्ता

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय (OHCHR) ने श्रीलंका सरकार से, देश के गहराते आर्थिक संकट पर बढ़ते प्रदर्शनों के जवाब में घोषित की गई आपात स्थिति के दौरान, तनावों को शान्तिपूर्ण तरीक़े से दूर करने का आग्रह किया है. यूएन मानवाधिकार कार्यालय ने मंगलवार को कहा कि स्थिति और भी ज़्यादा ख़राब हुई है, और खाद्य पदार्थों व ईंधन की क़िल्लत के साथ-साथ बिजली कटौती भी बढ़ी है. इन हालात के कारण हताश लोगों के नए प्रदर्शन बढ़ रहे हैं. #SriLanka: #StateofEmergency restrictions & the police’s excessive use of force are aimed at preventing and discouraging people from expressing grievances in peaceful protests. We call for dialogue between Gov+parties+civil society: https://t.co/qAWgDTJUmM pic.twitter.com/3RYE4QX5iQ — UN Human Rights (@UNHumanRights) April 5, 2022 संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय की प्रवक्ता लिज़ थ्रॉसेल ने कहा कि आपातकाल व अन्य प्रतिबन्धों की घोषणा के बाद, ये चिन्ता बढ़ी है कि इस तरह के उपायों का उद्देश्य लोगों को अपनी शिकायतें वैध तरीक़े से शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों के ज़रिये व्यक्त करने से हतोत्साहित करना है, और ये प्रतिबन्ध सार्वजनिक हित के मामलों पर विचारों के आदान-प्रदान को भी हतोत्साहित करते हैं. बदतर होती स्थिति श्रीलंका के हाल के महीनों में, आम लोगों में हताशा बढ़ी है जिसे व्यक्त करने के लिये देश भर में प्रदर्शन हुए हैं जो आमतौर पर शान्तिपूर्ण रहे हैं. अलबत्ता पिछले एक पखवाड़े के दौरान, ईंधन, खाना पकाने में प्रयोग की जाने वाली गैस, ज़रूरी खाद्य पदार्थें की अचानक क़िल्लत, बढ़ती महंगाई, मुद्रा अवमूल्यन और बढ़ती बिजली कटौती ने, हालात और भी ख़राब कर दिये हैं. प्रवक्ता लिज़ थ्रॉसेल ने जिनीवा में पत्रकारों से कहा, “इन हालात के कारण, गुज़र-बसर की बढ़ती लागत और बुनियादी चीज़ें हासिल नहीं कर पाने से हताशा महसूस कर रहे लोगों ने और ज़्यादा प्रदर्शन किये हैं.” ‘अनुचित’ हिंसा 31 मार्च को राष्ट्रपति निवास के बाहर हुए एक प्रदर्शन के बाद, सरकार ने एक अप्रैल को आपातकाल की घोषणा कर दी थी जिसके दौरान दो अप्रैल को सांय छह बजे से 36 घण्टों के लिये करफ़्यू लगा दिया था. उसके अगले दिन से 15 घण्टों के लिये सोशल मीडिया नैटवर्क भी बन्द कर दिये. पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ ज़रूरत से ज़्यादा और अनुचित हिंसा का प्रयोग करने की भी ख़बरें हैं. यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने श्रीलंका सरकार को याद दिलाया है कि आपातकाल से सम्बन्धित उपाय, अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून से मेल खाने चाहिये, सख़्ती से स्थिति की ज़रूरत के अनुसार ही सीमित होने चाहिये और आपात स्थिति का प्रयोग मत भिन्नता व शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों को रोकने के लिये नहीं होना चाहिये. प्रवक्ता ने कहा, “यूएन मानवधिकार कार्यालय घटनाक्रम पर नज़दीकी नज़र रख रहा है.” सैन्यकरण की दिशा में बढ़त यूएन मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बाशेलेट ने गत फ़रवरी में मानवाधिकार परिषद को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि श्रीलंका में सैन्यकरण की दिशा में बढ़त और संस्थानों के बीच शक्ति सन्तुलन कमज़ोर होने के कारण, देश में आर्थिक संकट से निपटने और तमाम नागरिकों के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की पूर्ति में सरकार की सामर्थ्य प्रभावित हुई है. मानवाधिकार उच्चायुक्त ने पहले भी चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा था कि श्रीलंका सरकार अपनी आलोचना और विरोध मत का सामना करने के लिये, जिस तरह प्रतिक्रिया करती है, उससे नागरिक स्थान कमज़ोर पड़ता है. यूएन प्रवक्ता लिज़ थ्रॉसेल ने कहा, “हम आज ये चिन्ताएँ फिर दोहराते हैं.” “हम सरकार, राजनैतिक दलों और सिविल सोसायटी से श्रीलंका के सामने दरपेश बेहद अहम आर्थिक और राजनैतिक चुनौतियों का समाधान तलाश करने के लिये, तत्काल समावेशी और सार्थक बातचीत शुरू करने का आग्रह करते हैं ताकि स्थिति का और ज़्यादा ध्रुवीकरण करने से बचा जा सके.” संयम की अपील इस बीच, न्यूयॉर्क स्थित यूएन मुख्यालय में महासचिव के उप प्रवक्ता फ़रहान हक़ ने दैनिक प्रेस वार्ता में पत्रकारों को बताया कि संयुक्त राष्ट्र की टीम, श्रीलंका में स्थिति पर लगातार नज़दीकी नज़र बनाए हुए है. प्रवक्ता ने बताया कि श्रीलंका में यूएन रैज़िडैण्ट कोऑर्डिनेटर (RC) हाना सिंगर हैम्डी ने सरकार को याद दिलाया है कि शान्तिपूर्ण सभाएँ करने, संगठन बनाने या एकत्र होने और विचार अभिव्यक्ति, सार्वभौमिक बुनियादी अधिकार हैं जिनसे नागरिकों और देश की सरकार के बीच बातचीत का रास्ता आसान होता है. रैज़िडैण्ट कोऑर्डिनेटर ने शुक्रवार को तमाम पक्षों से संयम बरतने और तनाव दूर करने व हिंसक टकराव से बचने का भी आहवान किया था. प्रवक्ता फ़रहान हक़ ने कहा, “हमारी यूएन टीम तमाम नागरिकों को शान्तिपूर्ण समाधानों के लिये बातचीत में शामिल होने के लिये प्रोत्साहित करती है.” --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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