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पाकिस्तान में टीएलपी को राहत देने से अन्य प्रतिबंधित संगठनों की ओर से भी इसी तरह की मांगों को मिल सकता है बढ़ावा

इस्लामाबाद, 9 नवंबर (आईएएनएस)। इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा पहले से प्रतिबंधित संगठन तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) को पहली अनुसूची से बड़ी राहत देने के फैसले ने न केवल देश में कई लोगों को निराश किया है, बल्कि बड़े स्तर पर पर चिंता भी पैदा कर दी है। जिस तरह से पाकिस्तानी सरकार ने आतंकी संगठन टीएलपी को राहत प्रदान की है, वह अन्य प्रतिबंधित संगठनों को समान राहत की मांग करने के लिए प्रेरित कर सकता है। सरकार ने समूह के नेतृत्व में सरकार विरोधी मार्च के हफ्तों के बाद टीएलपी के साथ एक समझौता किया है। देश के प्रमुख शहरों में प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा अधिकारियों के बीच हिंसक टकराव के बाद यह कदम सामने आया है, जिसके परिणामस्वरूप सुरक्षा अधिकारियों ने अपनी जान गंवाई है और कई घायल भी हुए हैं। व्यापक संघर्ष को देखते हुए संघीय सरकार को पंजाब प्रांत में हजारों अतिरिक्त रेंजरों को तैनात करने के लिए मजबूर होना पड़ा था, जबकि लाहौर से संघीय राजधानी इस्लामाबाद की ओर जाने वाले सड़क मार्गों को अवरुद्ध कर दिया गया था। सरकारी अधिकारी और टीएलपी प्रतिनिधि अंतत: बातचीत के माध्यम से एक समझौते पर समहत हुए हैं। सरकार ने एक तरह से आतंकी संगठन के सामने घुटने टेक दिए हैं और सरकार टीएलपी की मांगों को लेकर सहमत हो गई है, जिसमें उसके सैकड़ों गिरफ्तार प्रदर्शनकारियों को रिहा करना भी शामिल है। यही नहीं, इस्लामाबाद में फ्रांसीसी राजदूत को हटाने की मांग की समीक्षा की जा रही है, टीएलपी प्रमुख साद रिजवी की रिहाई सुनिश्चित की गई है, जो वर्तमान में हिरासत में है और अंत में, देश के प्रतिबंधित संगठनों की सूची से टीएलपी का नाम हटा दिया गया है। शर्तों पर सरकार के समझौते के परिणामस्वरूप प्रतिबंधित संगठन के रूप में टीएलपी का नाम तत्काल हटा दिया गया है, जबकि समूह के सैकड़ों सदस्यों को भी विभिन्न पाकिस्तानी जेलों से रिहा कर दिया गया है। हालांकि, टीएलपी प्रमुख साद रिजवी अभी भी नजरबंदी में है क्योंकि फेडरल बोर्ड ऑफ रेवेन्यू (एफबीआर) ने उसकी नजरबंदी के संबंध में पंजाब सरकार के मामले की सुनवाई के लिए अभी कोई तारीख नहीं दी है। संघीय सरकार द्वारा टीएलपी को उसकी प्रतिबंधित स्थिति से हटाकर एक ऐसी मिसाल कायम की गई है, कि अब उसके जैसे अन्य संगठन भी ऐसी ही मांग उठा सकते हैं। सरकारी आधिकारिक बैठकों में ऐसी चिंताओं को साझा किया गया है। जो मिसाल कायम की गई है, वह प्रतिबंधित संगठनों को देश की कानून व्यवस्था को पंगु बनाने और एक अराजक स्थिति पैदा करने की अनुमति देती है, जो मौजूदा सरकार को मांगों के आगे झुकने और यहां तक कि एक प्रतिबंधित संगठन को मान्यता देने के लिए मजबूर करती है। यह खतरनाक प्रवृत्ति इमरान खान सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है, क्योंकि कम से कम 78 संगठन हैं, जिन्हें देश के आंतरिक (गृह) मंत्रालय द्वारा प्रतिबंधित घोषित किया गया है, जिसमें विश्व स्तर पर नामित आतंकवादी संगठनों के नाम शामिल हैं। पाकिस्तान में अहले सुन्नत वाल जमात (एएसडब्ल्यूजे), सिपाह-ए-मोहम्मद पाकिस्तान, सिपाह-ए-सहाबा, जमात-उद-दावा (जेयूडी), जैश-ए-मोहम्मद, तहरीक-ए-जाफरिया, लश्कर-ए-झांगवी ( एलईजे), हिजबुल तहरीर, बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) और ऐसे अन्य कई प्रतिबंधित संगठन हैं। खतरनाक मिसाल का असर दिखना शुरू हो गया है, क्योंकि एएसडब्ल्यूजे ने प्रतिबंधित सूची से सिपाह-ए-सहाबा को हटाने की मांग की है और प्रतिबंध नहीं हटाने पर विरोध प्रदर्शन करने की धमकी दी है। इसी तरह की मांग शिला उलेमा काउंसिल की ओर से भी सामने आई है, जिन्होंने पाकिस्तान के प्रतिबंधित संगठनों की सूची से तहरीक-ए-जाफरिया को हटाने की मांग की है। --आईएएनएस एकेके/एएनएम

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