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राल्फ़ बंचे: एक अन्य नस्लभेद विरोधी पुरोधा एण्ड्रयू यंग की यादों के झरोखे से

संयुक्त राष्ट्र में, पहले अफ़्रीकी-अमेरिकी राजदूत एण्ड्रयू यंग ने इतिहास में अपनी ख़ास जगह बनाई है, मगर उन्होंने अपनी इस उपलब्धि के लिये, एक अन्य अफ़्रीकी-अमेरिकी हस्ती राल्फ़ बंचे को अपना प्रेरणास्रोत बताया है. राल्फ़ बंचे 50 वर्ष पहले इस दुनिया को अलविदा कह गए थे और वो नोबेल शान्ति पुरस्कार जीतने वाले, अफ़्रीकी मूल के पहले व्यक्ति थे. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र का गठन होने के शुरुआती दिनों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. एण्ड्रयू यंग ने, जुलाई 2020 में, यूएन न्यूज़ के साथ एक ख़ास बातचीत में, राल्फ़ बंचे के साथ अपनी यादें ताज़ा की थीं. साथ ही ये भी बताया था कि राल्फ़ बंचे का प्रभाव संयुक्त राष्ट्र पर और नस्लभेद के ख़िलाफ़ व्यापक लड़ाई में, क्यों महसूस किया जाता है. “राल्फ़ बंचे मेरे बचपन के हीरो थे. मैं उन्हें अपने पिता समान समझता था, क्योंकि वह, 40 वर्ष पहले, वो सब कुछ कर चुके थे, जो मैं करने की कोशिश कर रहा था.” राल्फ़ बंचे ने, अफ़्रीका की यात्रा करने के लिये, वर्ष 1939 में, हॉवर्ड विश्वविद्यालय छोड़ दिया था जिसे काले लोगों के लिये एक प्रमुख ऐतिहासिक यूनिवर्सिटी समझा जाता है. उनकी इस यात्रा का मक़सद, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, अमेरिका के लिये, अफ़्रीका महाद्वीप में, सैन्य गुप्तचर व्यवस्था विकसित करना था. उन्होंने नाव के ज़रिये, मोरक्को, ट्यूनीशिया और मिस्र की यात्रा की और उसके बाद सुएज़ नहर के ज़रिये, कीनिया व दक्षिण अफ़्रीका की भी यात्रा की. अमेरिकी सेना में, वो ऐसे अकेले व्यक्ति थे जिन्हें, अफ़्रीका महाद्वीप के बारे में कुछ भी जानकारी थी, जो सैन्य गुप्तचर सेवा के नज़रिये से प्रासंगिक थी. मेरे ख़याल में, उपनिवेशवाद को मिटाने, शान्तिरक्षा, प्रवासन, शरणार्थियों और शरण व राजनैतिक पनाह के सम्बन्ध में संयुक्त राष्ट्र के ज़्यादातर सिद्धान्त, उस दौर में, राल्फ़ बंचे द्वारा किये गए अध्ययनों से हासिल किये गए. एक अमेरिकी नागरिक, आज़ादी के लिये जुलूस राल्फ़ बंचे, अलबत्ता, संयुक्त राष्ट्र में एक वरिष्ठ अधिकारी थे और मार्टिन लूथर किंग के साथ सीधे तौर पर शामिल नहीं थे, मगर फिर भी उन्होंने, अमेरिका में सिविल अधिकारों की मांग के समर्थन में चले आन्दोलन के दौर में, डॉक्टर किंग को सलाह देने और उनका हौसला बढ़ाने में झिझक महसूस नहीं की. यहाँ तक कि उन्होंने सेलमा में, डॉक्टर मार्टिन लूथर किंग के साथ जुलूस में भी हिस्सा लिया. ये वो इलाक़ा था जहाँ वर्ष 1965 में, अहिंसक कार्यकर्ताओं ने सिविल अधिकारों के समर्थन में जुलूस निकाले थे. इनमें वोट डालने के संवैधानिक अधिकार को दबाने के ख़िलाफ़ प्रदर्शन भी शामिल थे. UN Photo/Yutaka Nagata संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत एण्ड्रयू यंग, मार्च 1977 में, दक्षिण अफ़्रीका मुद्दे पर, अध्यक्ष के रूप में, सुरक्षा परिषद की एक बैठक संचालित करते हुए. राल्फ़ बंचे के इस क़दम से ये नज़र आया कि एक अन्तरराष्ट्रीय स्तर के प्रख्यात विद्वान होते हुए भी उन्होंने काले समुदाय व सिविल अधिकारों के लिये संघर्ष करने वाले नेतृत्व कर्ताओं के साथ अपना सीधा नाता बनाए रखा. वो इन जुलूसों में, संयुक्त राष्ट्र के एक अधिकारी के तौर पर शामिल नहीं हुए, वो केवल एक अमेरिकी नागरिक के रूप में वहाँ शामिल हुए, अपने ही देश में, स्वतंत्रता के लिये निकाले गए जुलूस में. जब, 1967 में, संयुक्त राष्ट्र में, मेरी मुलाक़ात राल्फ़ बंचे से हुई, जिसमें मार्टिन लूथर किंग भी साथ थे, तो उन्होंने कहा था कि वो डॉक्टर मार्टिन लूथर किंग द्वारा, वियतनाम मुद्दे पर अपनाए गए उनके रुख़ के लिये उनकी आलोचना नहीं करेंगे. इसमें उन्होंने डॉक्टर किंग द्वारा, वियतनाम में, अमेरिका के हस्तक्षेप की आलोचना की थी और राल्फ़ बंचे ने इस पर उनके साथ सहमति व्यक्त की थी.लेकिन उन्होंने यह अवश्य कहा था कि वो ये देखना पसन्द नहीं करते कि डॉक्टर किंग सिविल अधिकार आन्दोलन और शान्ति आन्दोलन में एक साथ शामिल हो रहे थे जिससे वो ख़ुद को बहुत ज़्यादा जोखिम के दायरे में धकेल रहे थे. डॉक्टर मार्टिन लूथर किंग ने जवाब में कहा था कि वो इस सबमें शामिल तो नहीं होना चाहते मगर उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं है: “मैं इस सबमें शामिल नहीं होना चाहता, मगर मैं इससे दूर भी नहीं भाग सकता. मैं अपनी अन्तरात्मा को बाँट नहीं रख सकता. एक तरफ़ अगर मैं, दुनिया में नस्लों और वर्गों के बीच अहिंसा की हिमायत करता हूँ तो, किसी अन्तरराष्ट्रीय संघर्ष में हिंसा का अनमोदन नहीं कर सकता.” राल्फ़ बंचे और डॉक्टर मार्टिन लूथर किंग के बीच वो बैठक जब हुई, उसके लगभग एक वर्ष बाद, डॉक्टर किंग की हत्या हो गई. उस घटनाक्रम से ऐसा आभास होता है कि राल्फ़ बंचे, मानो ये सलाह दे रहे थे कि डॉक्टर मार्टिन लूथर किंग, जिन विभिन्न भूमिकाओं में सक्रिय थे, वो अक़्लमन्दी नहीं थी, और वो डॉक्टर किंग को ये सलाह दे रहे थे कि अपनी रफ़्तार कुछ धीमी कर दें ताकि ज़्यादा लम्बे समय तक जीवित रह सकें. कूटनीति के माहिर राल्फ़ बंचे सदैव ही बहुत विवेकपूर्ण और तार्किक रवैया अपनाते थे, और उन्होंने भावुक व क्रोध वाली राजनीति से बचने की कोशिश की, जोकि विभिन्न नस्ल वालों, या विकसित और कम विकसित दुनिया के बीच नज़र आती थी. वो एक माहिर मध्यस्थ थे, जिनके भीतर एक शान्त, तार्किक, और विश्लेषणात्मक मस्तिष्क मौजूद था, जिसका इस्तेमाल उन्होंने बहुत भड़काऊ और भावुक विषयों पर किया. वो गोपनीयता में विश्वास नहीं करते थे, मगर उनका ये अवश्य मानना था कि कूटनीति, निजी आत्मविश्वास के कुछ ख़ास स्तर पर निर्भर होती है: संयुक्त राष्ट्र में, सवैद ही एक गोपनीय चैनल का खेल जारी रहता है. ये लेख, संयुक्त राष्ट्र के डर्बन घोषणा-पत्र की 20वीं वर्षगाँठ के मौक़े पर प्रकाशित होने वाली, मल्टीमीडिया सामग्री का हिस्सा है. डर्बन घोषणा-पत्र को, नस्लभेद के ख़िलाफ़ वैश्विक संघर्ष में, एक ऐतिहासिक पड़ाव समझा जाता है. --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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