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इराक़ में पोप फ्रांसिस ने की शिया धर्मगुरु अल-सिस्तानी से 50 मिनट की मुलाकात

बगदाद, 07 मार्च (हि.स.)। कैथलिक चर्च के प्रमुख पोप फ़्रांसिस और शिया मुसलमानों के सबसे ताक़तवर चेहरों में से एक धर्मगुरु अयातुल्ला अली अल-सिस्तानी के बीच इराक़ में शनिवार को मुलाक़ात हुई। दूसरे धर्मों के साथ बातचीत और संवाद के लिए पहल करने वाले नेता के तौर पर मशहूर पोप फ़्रांसिस की सिस्तानी के साथ मुलाक़ात को इराक के उनके दौरे की सबसे महत्वपूर्ण घटना बताया जा रहा है। सिस्तानी के दफ़्तर से जारी एक बयान में कहा गया है कि इस मुलाक़ात में सिस्तानी ने कहा कि इराक़ में रह रहे ईसाई नागरिकों को अपने पूर्ण संवैधानिक अधिकारों के साथ बाकी इराक़ियों की तरह शांति और सुरक्षा के साथ रहना चाहिए। इराक़ में ईसाइयों की आबादी हिंसा का शिकार रही है और इसकी संख्या में लगातार गिरावट आई है। दूसरी ओर, सिस्तानी को एक उदारवादी मुसलमान नेता माना जाता है। दोनों नेताओं के बीच क़रीब 50 मिनट तक बातचीत हुई। यह मुलाक़ात सिस्तानी के नज़फ स्थित घर पर हुई है। नज़फ को शिया मुसलमानों का पवित्र शहर माना जाता है। सिस्तानी दुनियाभर के लाखों शिया मुसलमानों के धार्मिक नेता हैं। महामारी के बाद पोप फ़्रांसिस का यह पहला अंतरराष्ट्रीय दौरा है। साथ ही किसी भी पोप का यह इराक़ का पहला दौरा है। कोविड-19 और सुरक्षा ख़तरों को देखते हुए इसे पोप का सबसे जोखिम भरा दौरा माना जा रहा है। कैथलिक चर्च के 84 साल के सबसे बड़े धर्मगुरु पोप फ़्रांसिस ने कहा था कि वे मानते हैं कि यह दौरा करना उनका कर्तव्य है। इस यात्रा के दौरान पोप चार दिनों में इराक़ में कई महत्वपूर्ण जगहों पर जाएंगे। 2003 में अमेरिका के इराक़ पर हमला करने के बाद से ही देश के अल्पसंख्यक ईसाई हिंसा की जद में रहे हैं। पोप इराक के प्राचीन शहर उर का भी दौरा करेंगे। माना जाता है कि उर में ही पैगंबर अब्राहम का जन्म हुआ था। पैगंबर अब्राहम को ही इस्लाम, ईसाइयत और यहूदी धर्म का मूल माना जाता है। पोप ने क्या कहा बग़दाद एयरपोर्ट पर इराक़ के प्रधानमंत्री मुस्तफ़ा अल-कादिमी के उनकी अगवानी किए जाने के बाद पोप ने इराक़ में "हिंसा और चरमपंथ, गुटबाजी और असहनशीलता" को ख़त्म करने का आह्वान किया था। उन्होंने कहा कि इराक़ युद्ध की विभीषिका, चरमपंथ और सांप्रदायिक विवादों से गुजरा है। इस धरती पर सदियों से ईसाइयों की मौजूदगी और देश के जीवन में उनका योगदान एक समृद्ध विरासत का निर्माण करते हैं और वे सभी की सेवा के लिए इसे जारी रखना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि देश की कमज़ोर होती ईसाई आबादी की पूर्ण अधिकारों, आज़ादी और ज़िम्मेदारियों के साथ एक ज़्यादा बड़ी भूमिका होनी चाहिए थी। इराक़ में दुनिया की सबसे पहले की ईसाई आबादी रहती है। पिछले दो दशकों में यह आबादी 14 लाख से घटकर महज 2.5 लाख रह गई है। यह देश की कुल आबादी का 1 फ़ीसद से भी कम है। सद्दाम हुसैन को सत्ता से बेदखल करने के लिए अमेरिका की अगुवाई में इराक़ पर 2003 में चलाए गए अभियान के बाद शुरू हुई हिंसा के बाद से कई तमाम ईसाइयों को देश छोड़कर भागना पड़ा है। 2014 में उत्तरी इराक पर इस्लामिक स्टेट (आईएस) चरमपंथियों के कब्जा करने के बाद दसियों हज़ार ईसाइयों को इस इलाके को छोड़कर भागना पड़ा था। आईएस ने कई ऐतिहासिक चर्चों को तबाह कर दिया और उनकी संपत्तियां जब्त कर लीं। इन ईसाइयों को विकल्प दिया गया था कि या तो वे टैक्स चुकाएं या कनवर्ट हो जाएं या फिर मरने के लिए तैयार रहें। हिन्दुस्थान समाचार/ अजीत

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