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विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस पर, सामुदायिक सहारे पर ज़ोर

संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने स्वलीनता (Autism) के साथ जीने वाले लोगों को और ज़्यादा समर्थन व सहायता दिये जाने की ज़रूरत को रेखांकित किया है, विशेष रूप में समुदायों के स्तर पर. यूएन प्रमुख ने शनिवार, 2 अप्रैल को विश्व स्वलीनता जागरूकता दिवस (World Autism Awareness Day) के अवसर पर अपने सन्देश में बताया कि कोविड-19 महामारी ने किस तरह विषमताओं और ज़्यादा गहरा किया है जिनसे स्वलीनता वाले लोग और ज़्यादा प्रभावित हुए हैं. उन्होंने कहा, “इस विश्व स्वलीनता जागरूकता दिवस पर, आइये, हम स्वलीनता वाले लोगों के लिये, एक समावेशी, समान व टिकाऊ दुनिया के लिये अपनी प्रतिबद्धता फिर से मज़बूत करें.” भिन्न योग्यताएँ और ज़रूरतें विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, दुनिया भर में हर 100 में से लगभग एक बच्चे को स्वलीनता है. इस स्वास्थ्य स्थिति में मस्तिष्क के विकास से सम्बन्धित कुछ विभिन्न परिस्थितियाँ होती हैं जिनसे व्यक्ति का व्यवहार प्रभावित होता है. स्वलीनता या आत्मविमोह (Autism) की स्थिति वाले व्यक्तियों में किसी बात या काम को दोहराने की आदत होती है. Autism को स्वपरायणता भी कहा जाता है. वैसे तो स्वलीनता के लक्षणों का शिशुकाल में ही पता लगाया जा सकता है, मगर इसके बारे में सटीक जानकारी, जीवन में, काफ़ी समय बाद तक मालूम नहीं हो पाती है. यूएन स्वास्थ्य एजेंसी का कहना है कि स्वलीनता वाले व्यक्तियों की ज़रूरतें भिन्न होती हैं और समय के साथ-साथ उनमें बदलाव होते रहते हैं. इस स्थिति के साथ जीने वाले कुछ लोग स्वतंत्र रूप में जीवन जी सकते हैं जबकि कुछ अन्य लोग गम्भीर विकलांगताओं का सामना करते हैं और उन्हें जीवन पर्यन्त देखभाल व सहारे की ज़रूरत होती है. अलगाव और भेदभाव © UNICEF/Thomas Cristofolett कम्बोडिया में स्वलीनता वाले एक चार वर्षीय बच्चे को, कोविड-19 के दौरान स्कूल में मदद. यूएन महासचिव ने ध्यान दिलाया कि स्वलीनता वाले लोगों के, समाज में पूरी भागीदारी के साथ जीवन जीने के अधिकार के लिये, संयुक्त राष्ट्र क्या-क्या सुविधाएँ व समर्थन मुहैया कराता है. ये काम विकलांगता वाले व्यक्तियों के अधिकारों पर कन्वेन्शन व 2030 टिकाऊ विकास एजेण्डा के प्रावधानों के अनुरूप होते हैं, जिसमें “किसी को भी पीछे नहीं छोड़ देने” का संकल्प व्यक्त किया गया है. यूएन प्रमुख ने कहा कि 2030 टिकाऊ विकास एजेण्डा, विषमता को, सभी के लिये सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक समावेश के ज़रिये कम करने की प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें विकलांगता वाले लोग भी शामिल हैं. इसके बावजूद, स्वलीनता वाले बहुत से लोग अलगाव, भेदभावपूर्ण और समुदायों से अलग-थलग वाले हालात में जीवन जीते हैं, संस्थानों में, और यहाँ तक कि उनके अपने घरों में भी. उन्होंने कहा, “कोविड-19 महामारी ने इनमें से अनेक विषमताएँ और ज़्यादा बढ़ा दी हैं जो स्कूलों, घरों और समुदायों में सेवाओं में कटौती या बिल्कुल ख़त्म होने के रूप में सामने आई हैं.” “हमें ये सुनिश्चित करना होगा कि विकलांगता वाले व्यक्तियों के अधिकारों, नज़रियों और उनके रहन-सहन को, महामारी से बेहतर तरीक़े से उबरने के कार्यों का अभिन्न हिस्सा बनाया जाए, और इनमें स्वलीनता वाले व्यक्ति भी शामिल हैं.” एक ज़्यादा समावेशी दुनिया यूएन महासचिव ने कहा कि स्वलीनता वाले व्यक्तियों के लिये समाधान, ज़्यादा समुदाय आधारित सहायता व समर्थन व्यवस्थाओं में निहित है. उन्होंने कहा, “हमें समावेशी शिक्षा और प्रशिक्षण प्रणालियाँ भी क़ायम करनी होंगी जो स्वलीनता वाले छात्रों को अपनी पसन्द का शैक्षिक रास्ता अपनाने का विकल्प मुहैया कराएँ. और हमें स्वलीनता वाले लोगों के लिये ऐसे टैक्नॉलॉजी समाधान उपलब्ध कराने होंगे जिनके ज़रिये वो अपने समुदायों में स्वतंत्र जीवन जी सकें.” संयुक्त राष्ट्र, विश्व स्वलीनता दिवस मनाने के लिये, 8 अप्रैल को एक वर्चुअल कार्यक्रम आयोजित कर रहा है जिसकी थीम है – सर्वजन के लिये समावेशी गुणवत्तापरक शिक्षा. इस कार्यक्रम का आयोजन संयुक्त राष्ट्र का वैश्विक संचार विभाग (DGC), आर्थिक और सामाजिक मामलों का विभाग (DESA), सिविल सोसायटी के साथ मिलकर कर रहे हैं. --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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