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मेनिनजाइटिस से निपटने की नई रणनीति – प्रति वर्ष दो लाख ज़िन्दगियों को बचाने का लक्ष्य

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कहा है कि एक वैश्विक रणनीति के लक्ष्यों को प्राप्त कर के, दिमागी बुखार (meningitis) से हर साल दो लाख ज़िन्दगियों की रक्षा की जा सकती है. बैक्टीरिया की वजह से होने वाले घातक मेनिनजाइटिस रोग पर क़ाबू पाने के लिये पहली बार तैयार एक रोडमैप को, मंगलवार को पेश किया गया है. मंगलवार को जिनीवा में एक वर्चुअल कार्यक्रम में, साझीदारों के एक वृहद समूह ने मेनिनजाइटिस की रोकथाम के लिये ‘Meningitis and the R&D Blueprint’ नामक इस रणनीति को पेश किया है. .@WHO & partners have launched the 1st ever🌍 roadmap to defeat #meningitis - a debilitating disease that kills 200k+ people annually. We can accelerate action to improve 🔵planning 🔵prevention 🔵diagnosis 🔵care & treatment ✅& end preventable deaths 👉https://t.co/X0N9mTGI0z pic.twitter.com/thRJuhL9XS — WHO/Europe (@WHO_Europe) September 28, 2021 इसके ज़रिये, मेनिनजाइटिस से होने वाली मौतों मे 70 फ़ीसदी की कमी लाने और ऐसे मामलों को वर्ष 2030 तक घटाकर आधा करने के प्रयास किये जाएँगे. साथ ही इस बीमारी की वजह से होने वाली विकलाँगताओं में कमी लाने की कोशिशें भी की जाएँगी. इस रणनीति के केंद्र में संक्रमण की रोकथाम करना और प्रभावितों के लिये स्वास्थ्य देखभाल व निदान को बेहतर बनाना है. यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने पुरज़ोर ढँग से कहा कि यह समय, दुनिया भर में हमेशा के लिये मेनिनजाइटिस की चुनौती से निपटने का है. उन्होंने कहा कि इसके लिये मौजूदा औज़ारों, जैसे कि वैक्सीन की सुलभता बढ़ानी होगी, बीमारी की रोकथाम, मामलों का पता लगाने और उपचार के लिये नए शोध और नवाचार को बढ़ावा देना होगा. इसके अलावा, प्रभावितों के लिये पुनर्वास सेवाओं को बेहतर बनाना होगा. दीर्घकालीन क्षति मेनिनजाइटिस, मस्तिष्क और मेरुदण्ड के इर्द-गिर्द मौजूद झिल्लियों (membranes) में ख़तरनाक सूजन का आना है, जो कि अक्सर बैक्टीरिया और वायरस संक्रमण के कारण होती है. इस बीमारी का सबसे गम्भीर रूप, बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमण के कारण दिखाई देता है. इस बीमारी की वजह से हर साल दो लाख से अधिक मौतें होती हैं. हर दस में एक संक्रमित की मौत हो जाती है, और बच्चों व युवजन के लिये जोखिम अधिक है. हर पाँच में से एक प्रभावित, दीर्घकालीन विकलाँगता का शिकार हो जाता है. इनमें दौरे पड़ना, सुनने व देखने की क्षमता प्रभावित होना, तंत्रिका सम्बन्धी (neurological) या संज्ञानात्मक (cognitive) क्षति सहित अन्य समस्याएँ हैं. सभी क्षेत्रों के लिये जोखिम नई रिपोर्ट दर्शाती है कि पिछले 10 वर्षों में मेनिनजाइटिस का फैलाव दुनिया के सभी क्षेत्रों में देखने को मिला है. मगर, मुख्य रूप से यह सब-सहारा अफ़्रीका की ‘Meningitis Belt’ नामक इलाक़े में केंद्रित रहा है, जिसके दायरे में 26 देश आते हैं. इस बीमारी के फैलाव का अनुमान लगा पाना सरल नहीं है, स्वास्थ्य प्रणालियों के लिये यह व्यवधान का कारण बनता है और निर्धनता को बढ़ाता है. यूएन स्वास्थ्य एजेंसी में डॉक्टर मैरी-पिये प्रेज़ियोसी ने जिनीवा में रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि अनेक देशों के लिये, मेनिनजाइटिस की आकस्मिकता, गम्भीरता और उसके दुष्प्रभाव, चुनौती बने हुए हैं. उन्होंने बताया कि यह बीमारी कहीं भी फैल सकती है. हाल के वर्षों में किर्गिज़स्तान, फ़िलिपीन्स, चिली, सहित अन्य देश इसकी चपेट में रहे हैं. इसलिये यह एक वैश्विक समस्या है और महज़ अफ़्रीका के उस दायरे तक सीमित नहीं है. यूएन स्वास्थ्य विशेषज्ञ के मुताबिक़, बेहद नज़दीकी सम्पर्क में आने वाले लोगों में यह बीमारी फैलने का जोखिम ज़्यादा होता है. जैसे कि सामूहिक आयोजनों, शरणार्थी शिविरों और भीड़-भाड़ भरे घरों में. मगर, कोई भी इससे प्रभावित हो सकता है. UNAMID/Albert Gonzalez Farran उत्तर दार्फ़ूर में मेनिनजाइटिस की रोकथाम के लिये एक बच्चे को वैक्सीन दी जा रही है. बेपरवाही है ख़तरनाक यूएन विशेषज्ञों का मानना है कि टीकाकरण कार्यक्रमों में मिली सफलता से कुछ संगठनों में यह धारणा बन गई है कि मेनिनजाइटिस की समस्या ख़त्म हो गई है. मगर, इस बीमारी के मामले और उसके दुष्प्रभाव दर्शाते हैं कि यह सच नहीं है. अनेक वैक्सीनें, मेनिनजाइटिस से रक्षा कवच प्रदान करती हैं, लेकिन सभी समुदायों के लिये वे सुलभ नहीं है और अनेक देशों के राष्ट्रीय कार्यक्रमों में अभी उन्हें शुरू नहीं किया गया है. इस बीमारी के अन्य कारणों से निपटने के लिये वैक्सीन विकसित करने पर शोध जारी है, जिसके लिये नवाचार, निवेश की आवश्यकता पर बल दिया गया है. साथ ही, इस बीमारी से प्रभावितों के लिये समय रहते निदान, उपचार व पुनर्वास सुनिश्चित करने के लिये भी प्रयास किये जा रहे हैं. कोविड-19 महामारी की वजह से अनेक संक्रामक बीमारियों पर जटिल प्रभाव हुए हैं, और इनमें बैक्टीरिया से होने वाला मस्तिष्क ज्वर भी है. स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि तालाबन्दी व अन्य ऐहतियाती उपायों से कई वायरसों के फैलाव में कमी आई है, इसके बावजूद, अल्पकालिक सकारात्मक नजीते, ख़तरनाक ढँग से बेपरवाही की वजह बन सकते हैं. --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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