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मलेशिया: आप्रवासन हिरासत केन्द्र से भाग रहे बन्दियों की मौत, UNHCR ने जताया दुख

शरणार्थी मामलों के लिये संयुक्त राष्ट्र एजेंसी (UNHCR) ने मलेशिया के पेनांग प्रान्त में स्थित सुंगाई बाकप अस्थाई आप्रवासन केन्द्र में हुए दंगा भड़कने के बाद, वहाँ से भाग रहे छह बन्दियों की मौत पर गहरा शोक व्यक्त किया है. यह घटना 20 अप्रैल की तड़के हुई और मृतकों में दो बच्चे भी हैं. संगठन ने अस्थाई आप्रवासन डिपो में हुए कथित दंगे और मौजूदा हालात पर भी चिन्ता जताई है, जहाँ से 500 से अधिक बन्दियों के भागने की ख़बर है. इनमें से अधिकतर म्याँमार से आए रोहिंज्या शरणार्थी बताए गए हैं. यूएन एजेंसी ने इस हादसे के पीड़ितों के परिजनों के प्रति अपनी सम्वेदना व्यक्त की है. एक अनुमान के अनुसार, मलेशिया में एक लाख 81 हज़ार शरणार्थी और शरण की तलाश कर रहे लोग रहते हैं, जिनमें से एक लाख से अधिक लोग रोहिंज्या समुदाय, जबकि अन्य पाकिस्तान, यमन, सीरिया और सोमालिया से हैं. मलेशिया में शरणार्थियों के दर्जे और अधिकारों के नियामन के लिये प्रणाली नहीं है, जिसके मद्देनज़र यूएन एजेंसी शरणार्थियों के पंजीकरण, दस्तावेज़ बनाने और दर्जा निर्धारण सम्बन्धी सभी गतिविधियों में अग्रणी भूमिका निभाती है. इस सिलसिले में, संगठन मलेशियाई सरकार के साथ सहयोग के ज़रिये शरणार्थी संरक्षण प्रबन्धन, जैसेकि गिरफ़्तारी या हिरासत से रोकथाम और आत्म-निर्भरता को बढ़ावा देता रहा है. शरणार्थी एजेंसी के अनुसार, फ़िलहाल अस्थाई डिपो में घटी इस घटना या उसमें शामिल लोगों के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं है. ग़ौरतलब है कि मलेशियाई की आप्रवासन एजेंसियों ने अगस्त 2019 से UNHCR को किसी भी आप्रवासन हिरासत केन्द्र पर जाने की स्वीकृति नहीं दी है. इन परिस्थितियों में, यूएन एजेंसी के लिये हिरासत में रखे गए बन्दियों से मिलना, उनकी अन्तरराष्ट्रीय संरक्षण आवश्यकताओं को परखना और ज़रूरतमन्दों की रिहाई की वकालत कर पाना सम्भव नहीं हो पाया है. संरक्षण ज़रूरतों की परख शरणार्थी संगठन ने कहा है कि सुंगाई बाकप आप्रवसान केन्द्र समेत मलेशिया के अन्य हिरासत केन्द्रों में बन्दियों के तौर पर रखे गए, विशेष रूप से सम्वेदनशील हालात से जूझ रहे लोगों पर ध्यान दिये जाने की ज़रूरत है. UNHCR ने कहा है कि अन्य नागरिक समाज साझीदार संगठनों के साथ मिलकर वो मलेशिया सरकार को समर्थन देने के लिये तैयार हैं, ताकि आप्रवासन हिरासत के बजाय अन्य विकल्प तैयार किये जा सकें. इस क्रम में, बच्चों और बुज़ुर्गों समेत निर्बल समूहों पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित किया जाएगा और बन्दियों की अन्तरराष्ट्रीय संरक्षण आवश्यकताओं के सिलसिले में सहायता प्रदान की जाएगी. संगठन ने सचेत किया है कि अन्य लोगों को देश में प्रवेश करने से रोकने के लिये, व्यक्तियों को उनकी स्वतंत्रता से वंचित रखा जाना ग़ैरक़ानूनी, अमानवीय है और यह कारगर रास्ता भी नहीं है. यूएन एजेंसी ने कहा कि शरण की तलाश करना कोई अवैध कार्य नहीं है. संगठन ने स्पष्ट किया है कि सभी मामलों में पहले अन्य विकल्पों पर विचार करने के बाद ही, हिरासत को अन्तिम उपाय के रूप में ही इस्तेमाल में लाया जाना चाहिये. साथ ही, इसे क़ानूनी स्वीकृति होनी चाहिये और बेहद आवश्यक और तर्कसंगत परिस्थितियों में ही इस उपाय अपनाए जाने होंगे. --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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