infant-formula-marketing-is-aggressive-and-misleading-un-report
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शिशु फ़ॉर्मूला मार्केटिंग है आक्रामक व भ्रामक, यूएन रिपोर्ट

संयुक्त राष्ट्र की दो एजेंसियों ने एक ताज़ा रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया भर में माता-पिता, अभिभावक और गर्भवती महिलाएँ, बेबी फ़ॉर्मूला दुग्ध पदार्थों की आक्रामक मार्केटिंग का आसान निशाना बनने के दायरे में हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और यूएन बाल कोष – यूनीसेफ़ की इस रिपोर्ट का नाम है - How marketing of formula milk influences our decisions on infant feeding. इन दोनों यूएन एजेंसियों की एक श्रंखला की इस प्रथम रिपोर्ट में, आठ देशों में, अभिभावकों, माता-पिता, गर्भवती महिलाओं, और स्वास्थ्य कर्मियों से बातचीत के आधार पर विवरण प्रस्तुत किया गया है. "We have been targeted with marketing from formula milk companies." Over half of parents & pregnant women exposed to formula milk marketing, violating international standards and harming child health -🆕 WHO, @UNICEF survey ➡️ https://t.co/86Bf69PSeK#EndExploitativeMarketing pic.twitter.com/BuhQPgM3OX — World Health Organization (WHO) (@WHO) February 22, 2022 सर्वे में भाग लेने वालों में से आधे लोगों ने स्वीकार किया है कि उन्हें फ़ॉर्मूला दुग्ध पदार्थ बनाने वाली कम्पनियों ने निशाना बनाया है. आक्रामक मार्केटिंग यूनीसेफ़ और WHO का कहना है कि 55 अरब डॉलर वाला फ़ॉर्मूला दुग्ध पदार्थ उद्योग, शिशुओं को दूध पिलाने के मामले में अभिभावकों और माता-पिता के फ़ैसलों को प्रभावित करने के लिये, व्यवस्थित और अनैतिक मार्केटिंग रणनीतियों का इस्तेमाल करता है. इन रणनीतियों में ऐसी शोषणकारी गतिविधियाँ भी शामिल हैं जिनसे बच्चों के पोषण पर नकारात्मक असर पड़ता है और अन्तरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का भी उल्लंघन होता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉक्टर टैड्रॉस ऐडहेनॉम घेबरेयेसस का कहना है, “ये रिपोर्ट बिल्कुल स्पष्टता से दिखाती है कि फ़ॉर्मूला दुग्ध पदार्थों की मार्केटिंग लगातार, भ्रामक व आक्रामक बनी हुई है जो अस्वीकार्य है.” उन्होंने शोषणकारी मार्केटिंग पर शिकंजा कसने वाले नियम-क़ानून जल्द से जल्द पारित करने और बच्चों के स्वास्थ्य की रक्षा की ख़ातिर, उन्हें लागू करने का भी आहवान किया. रिपोर्ट में पाया गया है कि फ़ॉर्मूला दुग्ध पदार्थों की मार्केटिंग तकनीकों में अनिमियत और आक्रामक ऑनलाइन निशाना बनाया जाना तो शामिल है ही, साथ ही, मुफ़्त तोहफ़ों की भी पेशकश की जाती है और स्वास्थ्य कर्मियों के प्रशिक्षण व सिफ़ारिशों पर भी असर डाला जाता है. स्तनपान कराने में बाधा रिपोर्ट फ़ॉर्मूला दुग्ध पदार्थ उद्योग अक्सर अभिभावकों, माता-पिता और स्वास्थ्यकर्मियों को भ्रामक व वैज्ञानिक तथ्यों से अपुष्ट जानकारी व सूचना देता है, साथ ही स्तन दुग्घ विकल्पों की मार्केटिंग पर अन्तरराष्ट्रीय कोड का उल्लंघन भी करता है. इस रिपोर्ट के लिये साढ़े 8 हज़ार अभिभावकों और गर्भवती महिलाओं, व 300 स्वास्थ्य कर्मियों का सर्वे किया गया, जिसमें पाया गया कि ब्रिटेन में सर्वे में हिस्सा लेने वाली 84 प्रतिशत महिलाओं तक फ़ॉर्मूला दुग्ध पदार्थों की मार्केटिंग पहुँची. वियतनाम में ये आँकड़ा 92 प्रतिशत और चीन में 97 प्रतिशत था जिससे फ़ॉर्मूला दुग्ध पदार्थों को चुनने की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है. यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसैल का कहना है, “फ़ॉर्मूला दुग्ध पदार्थों के बारे में झूठे व भ्रामक सन्देश, शिशुओं को स्तनपान कराने में एक बड़ी बाधा हैं, जबकि हम जानते हैं कि स्तनपान कराना शिशुओं और माताओं के लिये सर्वश्रेष्ठ है.” भ्रामक सन्देश जिन देशों में ये सर्वे किया गया उनमें महिलाओं ने स्तनपान कराने के लिये मज़बूत इच्छा ज़ाहिर की और ऐसी महिलाओं का आँकड़ा मोरक्को में 49 प्रतिशत से लेकर बांग्लादेश में 98 प्रतिशत तक था. फिर भी ये रिपोर्ट दर्शाती है कि भ्रामक मार्केटिंग सन्देशों के ज़रिये किस तरह, स्तनपान व माताओं के दूध के बारे में ग़लतफ़हमियाँ फैलाई जा रही हैं और सफलतापूर्वक स्तनपान कराने में, महिलाओं की योग्यता के बारे में उनके आत्मविश्वास को किस तरह कम किया जा रहा है. कैथरीन रसैल महिलाओं को अनैतिक मार्केटिंग गतिविधियों से बचाने और बच्चों की परवरिश करने के लिये सही सूचना व जानकारी मुहैया कराने के लिये, उपयुक्त नीतियों व नियम-क़ानूनों के साथ-साथ, स्तनपान कराने के चलन को बढ़ावा देने में संसाधन निवेश करने का भी आहवान किया. WHO/UNICEF बेबी फ़ॉर्मूला दुग्ध पदार्थों की आक्रामक मार्केटिंग के लिये हर वर्ष अरबों डॉलर ख़र्च किये जाते हैं. भ्रामक जानकारी स्तनपान कराने के इर्द-गिर्द फैलाई गई कुछ भ्रामक जानकारियों में ये भी हैं कि माता का दूध शिशु के पोषण के लिये अपर्याप्त होता है; शिशु फ़ॉर्मूला, बच्चे के विकास और रोग प्रतिरोधी क्षमता को बेहतर बनाता है; और ये भी कि समय के साथ, माता के दूध की गुणवत्ता कम हो जाती है. आँकड़े बताते हैं कि शिशु को, जन्म के पहले घण्टे के दौरान माँ का दूध पिलाना, उसके बाद छह महीने तक केवल माँ का दूध ही पिलाना और अगले दो साल और उससे भी आगे तक भी स्तनपान कराना जारी रखने से, बाल कुपोषण के तमाम प्रकारों के ख़िलाफ़ एक मज़बूत रक्षा कवच बनता है. माता का दूध, शिशु के लिये, पहली वैक्सीन का भी काम करता है जो बचपन में होने वाली अनेक बीमारियों से शिशु की हिफ़ाज़त करता है, साथ ही भविष्य में डायबिटीज़, मोटापा, और नर्सिंग माताओं में कैंसर के कुछ प्रकारों का जोखिम भी कम करता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, शिशुओं का स्वस्थ्य विकास सुनिश्चित करने के लिये, माँ का दूध ही सर्वश्रेष्ठ विकल्प है और स्तनपान कराने से, 13 प्रतिशत बाल मौतें रोकी जा सकती हैं. फ़ॉर्मूला दूध की बिक्री 20 साल में दो गुनी शिशु को माँ का दूध पिलाने के इन अनगिनत फ़ायदों के बावजूद, दुनिया भर में छह महीने से कम उम्र के केवल 44 प्रतिशत शिशुओं को ही, विशिष्ठ रूप से माँ का दूध पिलाया जाता है. पिछले दो दशकों के दौरान, दुनिया भर में शिशुओं को माँ का दूध पिलाने की दर में बहुत कम बढ़ोत्तरी हुई है, जबकि लगभग इसी अवधि में, फ़ॉर्मूला दुग्ध पदार्थों की बिक्री दो गुना बढ़ी है. रिपोर्ट में एक बड़ी चिन्ता की बात ये बताई गई है कि शिशु फ़ॉर्मूला दुग्ध पदार्थ बनाने वाली कम्पनियों ने स्वास्थ्य कर्मियो को तोहफ़ों, शोध धन और बिक्री कमीशन तक का भी लालच दिया है, ताकि वो शिशुओं की खाद्य ज़रूरतों के लिये, माताओं के विकल्पों और फ़ैसलों को प्रभावित कर सकें. सर्वे में हिस्सा लेने वाली एक तिहाई से ज़्यादा महिलाओं का कहना था कि किसी स्वास्थ्यकर्मी ने उन्हें, शिशुओं के लिये, किसी ख़ास कम्पनी के फ़ॉर्मूला दुग्ध पदार्थ की सिफ़ारिश की थी. @Vincent Cardinal कैनेडा एक एक एक्वेरियम में एक महिला अपनी बेटी को स्तनपान करा रही है. चुनौतियों का सामना विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनीसेफ़ और साझीदारों ने ये रिपोर्ट जारी करने के बाद तमाम देशों की सरकारों, स्वास्थ्यकर्मियों और शिशु खाद्य पदार्थ बनाने वाले उद्योगों से, फ़ॉर्मूला दुग्ध की शोषणकारी मार्केटिंग को बन्द किये जाने की पुकार लगाई है. उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय कोड की आवश्यकताओं को पूरी तरह से लागू करने की भी अपील की, जिसमें फ़ॉर्मूला दूध के प्रचार को रोकने के लिये कानूनों को पारित करना, निगरानी करना और लागू करना शामिल है; साथ ही, पर्याप्त भुगतान वाली - माता-पिता की छुट्टी जैसे सहायक स्तनपान नीतियों और कार्यक्रमों में निवेश करना; और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को उन कम्पनियों से प्रायोजन स्वीकार करने से प्रतिबन्धित करना जो छात्रवृत्ति, पुरस्कार, अनुदान, बैठकों या आयोजनों के लिये शिशुओं और छोटे बच्चों के लिये खाद्य पदार्थों की मार्केटिंग करती हैं. फ़ॉर्मूला दूध और तम्बाकू केवल दो ऐसे उत्पाद हैं जिनके लिये मार्केटिंग पर रोक लगाने के लिये अन्तरराष्ट्रीय सिफ़ारिशें मौजूद हैं. इस मामले में ये सिफ़ारिशें, माँ के दूध के विकल्प के विपणन के अन्तर्राष्ट्रीय कोड के माध्यम से मौजूद हैं. --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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