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भारतीय फ़ोर्स कमाण्डर शैलेश तिनईकर, शान्तिरक्षा की अनमोल यादें सहेजे रिटायर

भारत के निवर्तमान और सेवानिवृत्त UNMISS फ़ोर्स कमाण्डर, लैफ्टिनेण्ट जनरल शैलेश तिनईकर ने दक्षिण सूडान में संयुक्त राष्ट्र शान्तिरक्षा कार्यकाल के बारे में बहुत से यादगार लम्हें साझा किये हैं. उन्होंने, सैन्य वर्दी में अपने 42 वर्षों की यादें ताज़ा करते हुए, संयुक्त राष्ट्र शान्तिरक्षा अभियान, लैंगिक समानता, उदाहरण द्वारा नेतृत्व करने जैसे कई अहम मुद्दों पर बातचीत की. लैफ्टिनेंट-जनरल शैलेश तिनईकर मुस्कुराते हुए बताते हैं, "मेरी सबसे पुरानी याद है, आईने के सामने खड़े होकर ख़ुद को सलाम करने की." दुनिया के सबसे बड़े शान्ति अभियान, UNMISS के फ़ोर्स कमाण्डर पहली नज़र में मृदुभाषी लगते हैं, लेकिन उनकी आँखें उनका तीव्र व्यक्तित्व बयाँ कर देती हैं. इसी तीव्रता, इसी जुनून ने उन्हें, युवावस्था में अपने परिवार के विरुद्ध जाकर, भारत के सशस्त्र बलों में शामिल होने के लिये प्रेरित किया. Lieutenant-General Shailesh Tinaikar, the outgoing and retiring #UNMISS Force Commander from #India, comments on his tenure in #SouthSudan, the merits and flaws of @UN peace operations, the importance of gender parity, leading by example and more. pic.twitter.com/RsQRSKUdFx — UNMISS (@unmissmedia) January 21, 2022 शुरुआती जीवन भारत की वित्तीय राजधानी, मुम्बई से सम्बन्ध रखने वाले, लैफ्टिनेंट-जनरल शैलेश तिनईकर के पिता उच्च वर्ग के भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी थे. शैलेश बताते हैं, “मेरे सभी दोस्त व मेरे साथी, इंजीनियर बनने या अपना व्यवसाय शुरू करने की तैयारी रहे थे और मैं अकेला व्यक्ति था जिसने सशस्त्र बलों में शामिल होने का विकल्प चुना. मैं ख़ुद को एक एकाउण्टेंट या व्यवसाई के रूप में नम्बरों का पीछा करते नहीं देख सकता था. मुझे बस एक ऑफ़िसर बनने की चाहत थी.” इसी असाधारण लक्ष्य के साथ उन्होंने चार साल का सैन्य-प्रशिक्षण प्राप्त किया. फिर वो विशिष्ट स्पैशल फ़ोर्सेस की शाखा में शामिल हो गए. उन्होंने बताया, "मैं एक पैराट्रूपर बन गया, रेगिस्तान में युद्ध में विशेषज्ञता के साथ एक विशेष सेवा का नेतृत्व करते हुए शुरुआत करने के बाद एक कर्नल के रूप में अपनी बटालियन की कमान सम्भाली; और बाद में, भारत के पूर्वोत्तर हिस्से में एक ब्रिगेडियर के रूप में, व फिर एक मेजर जनरल के रूप में भारत के उत्तरी भाग में नेतृत्व सम्भाला." शान्तिरक्षा में अहम योगदान लैफ्टिनेण्ट जनरल शैलेश तिनईकर को अपनी अभूतपूर्व उपलब्धियों के कारण, दक्षिण सूडान के गठन से पहले, अंगोला और ख़ारतूम में, संयुक्त राष्ट्र के साथ काम करने के दो अवसर मिले. फ़ोर्स कमाण्डर तिनईकर मानते हैं कि अपने देश की रक्षा करने और किसी विदेशी भूमि में शान्तिरक्षा, दोनों में कोई ख़ास अन्तर नहीं हैं. उन्होंने बताया, “ज़िम्मेदारी के मामले में दोनों समान हैं. जब आप देश की सेवा कर रहे होते हैं, तो राष्ट्र आपसे सीमा की रक्षा करने की अपेक्षा करता है, और जब आप एक शान्ति रक्षक के रूप में सेवा कर रहे होते हैं, तो अन्तरराष्ट्रीय समुदाय की आप पर नज़र होती है; और एक अलग प्रकार की सुरक्षा की अपेक्षा होती है - भूमि की सीमाओं की सुरक्षा नहीं बल्कि लोगों की सुरक्षा." प्रत्येक भूमिका की चुनौतियों के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र शान्ति स्थापना अपने-आप में एक बड़ी विजय है. हालाँकि उन्होंने माना, "आप पूरी तरह से विदेशी वातावरण में, अपने आराम क्षेत्र से बाहर रहकर, एक बहुराष्ट्रीय वातावरण लोकाचार में, विभिन्न देशों, विभिन्न परम्पराओं, विभिन्न संस्कृतियों के सैनिकों का नेतृत्व कर रहे होते हैं, और साथ ही, नागरिकों के साथ मिलकर भी काम करते हैं. इस तरह के शान्तिरक्षा अभियानों में एकीकृत रूप से काम करना एक बड़ी चुनौती है.” UN/Gregorio Cunha UNMISS फ़ोर्स कमाण्डर, लैफ्टिनेंट-जनरल शैलेश तिनईकर, दक्षिण सूडान के मध्य भूमध्यरेखीय क्षेत्र के रोकोन इलाक़े का दौरा करते हुए. अहम बदलावों के कर्णधार लैफ्टिनेण्ट जनरल शैलेश तिनईकर ने दक्षिण सूडान में अपने कार्यकाल के दौरान, संचालन क्षेत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तन किये. उनका मानना है कि इनसे, हिंसा के जोखिम वाले नागरिकों को अधिक प्रभावी ढंग से बचाने में मदद मिली है. उन्होंने बताया, "देश में अब राजनैतिक प्रेरित हिंसा की जगह अन्तर-साम्प्रदायिक संघर्ष ने ले ली है. लेकिन, हिंसा तो हिंसा है. अगर लोग मारे जा रहे हैं, तो हम हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठ सकते." "इसलिये, हमने एक गतिशील दृष्टिकोण विकसित किया. छोटी-छोटी टुकड़ियों को उन प्रमुख स्थानों पर तैनात किया जहाँ तनाव बढ़ने की सम्भावना अधिक थी. मुझे लगता है कि यह एक अच्छा फ़ैसला रहा और इससे हमें ज़मीनी स्तर पर और अधिक प्रभावी रूप से काम करने में मदद मिली.” वो बताते हैं कि दूसरी चिन्ता इलाक़े की रहती है, क्योंकि वो दलदली इलाक़ा है और बरसात के मौसम में, सड़क से आवाजाही लगभग असम्भव हो जाती है. “हमें सभी इलाक़े में आवाजाही करने योग्य वाहन मिल रहे हैं. यह एक आदर्श सैन्य समाधान नहीं है, लेकिन कम से कम यह हमारे शान्तिरक्षकों को उन संघर्षरत क्षेत्रों तक पहुँचने के लिये गतिशीलता देगा जो पहले हमारे लिये दुर्गम थे.” कोविड-19 से दो-दो हाथ हाल ही में फ़ोर्स कमाण्डर ने कोविड-19 के दौरान सुरक्षा गतिविधियाँ जारी रखने की चुनौती का भी सामना किया. “यह समय बेहद अनिश्चितता और व्यक्तिगत नुक़सान का रहा और केवल सहानुभूति व देखभाल की भावना ही यह सुनिश्चित कर सकती थी कि महामारी के दौरान आपके अधीन सेवारत सैनिक, व्यक्तिगत समस्याओं के बावजूद काम करना जारी रखें. मुझे बहुत गर्व है कि हमने एक टीम के रूप कार्य जारी रखा, जिससे हमारे सुरक्षा कार्य निर्बाध रूप से पूरे किये जा सके.” लैफ्टिनेंट-जनरल तिनईकर ने इस बात पर ज़ोर दिया कि परिचालन सम्बन्धी निर्णय दूर से नहीं किये जा सकते. "मैं हमेशा से साहसिक निर्णय लेता रहा हूँ, और शुक्र है कि उनमें से ज़्यादातर सही रहे हैं. लेकिन जब अन्य लोगों का जीवन आप पर निर्भर करता है, तो आप ज़मीनी स्थिति की प्रत्यक्ष जानकारी के बिना साहसिक फैसले नहीं ले सकते." "आख़िरकार मेरे ऊपर, अपने शान्तिरक्षकों के साथ-साथ उन समुदायों के जीवन की भी ज़िम्मेदारी है, जिनकी सेवा करने के लिये हम यहाँ तैनात हैं. मैं बिना निगरानी, मार्गदर्शन और संचालन के, जुबा में एक वातानुकूलित कार्यालय में बैठकर आदेश नहीं दे सकता. जब तक आप पीड़ित लोगों से नहीं मिलते और उनसे बात नहीं करते, उनकी चुनौतियों को नहीं समझते, तब तक ठोस निर्णय लेना असम्भव है." मक़सद सर्वोपरि फोर्स कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल शैलेश सदाशिव तिनईकर यूएन शांतिरक्षा मिशन @unmissmedia में शांतिरक्षक सैन्यदलों का नेतृत्व कर रहे हैं- जो नागरिकों की रक्षा, विस्थापितों की घर वापसी के लिए सुरक्षित वातावरण बनाने व शांति प्रक्रिया को समर्थन देने के लिए दक्षिण सूडान में कार्यरत हैं. pic.twitter.com/sjfGbivfp0 — UNHindi (@UNinHindi) August 3, 2019 उद्देश्य की यह ताक़त हमेशा से उनकी नेतृत्व शैली का हिस्सा रही है और इससे उन्हें स्थानीय वार्ताकारों के साथ विश्वास के सम्बन्ध बनाने में मदद मिली है. वो बताते हैं, “हम मेज़बान सरकार के ख़िलाफ़ जाने वाले उद्देश्यों पर काम करने का जोखिम नहीं उठा सकते. हम उन्हें विरोधी नहीं बना सकते, हमें उनके साथ साझेदारी करने की ज़रूरत है. यह सभी शान्ति अभियानों में ज़रूरी है और सभी वरिष्ठ नेताओं को यह नाज़ुक सन्तुलन बनाए रखना चाहिये." इसके साथ ही, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की कुछ ख़ामियों के बारे में भी बेबाक बातचीत करते हुए कहा, "जब लोगों की मौत हो रही होती है, तो लम्बी नौकरशाही प्रक्रियाओं के भरोसे पर रहना सम्भव नहीं होता. कभी-कभी मुझे लगता है कि संयुक्त राष्ट्र की प्रणाली, संकटों की प्रतिक्रिया में धीमी होती है. जब हम नेतृत्व के पदों पर होते हैं, तो हमारा सामूहिक कार्य होता है - अधिक से अधिक बाधाओं को दूर करके, लोगों की सुरक्षा के लिये अपने संसाधनों को प्राथमिकता देना. यह शान्ति मिशनों में एक सतत प्रक्रिया है, और मुझे आशा है कि हम बेहतर, तेज़, अधिक प्रभावी और चुस्त बनने का प्रयास जारी रखेंगे.” लैंगिक समानता ज़रूरी लैंगिक समानता के पुरज़ोर समर्थक, लैफ्टिनेण्ट जनरल शैलेश तिनईकर ने अपने साथ काम करने वाली महिलाओं की सराहना की. उन्होंने कहा, "शान्ति व्यवस्था के सन्दर्भ में, सदभाव के निर्माण के लिये एक सम्पूर्ण सामाजिक दृष्टिकोण बेहद मायने रखता है. और यह तब सम्भव नहीं है, जब 50 प्रतिशत आबादी, यानि महिलाओं की परेशनियों को ना सुना जाए. हमारे शान्ति अभियान उन समुदायों का दर्पण होना चाहिये जिनकी हम सेवा करते हैं; और मुझे यह कहते हुए ख़ुशी हो रही है कि हमारी महिला शान्तिरक्षकों द्वारा किया गया कार्य, स्पष्ट रूप से, अदभुत है. वे आगे बढ़कर नेतृत्व करती हैं और संघर्ष के प्रति हमारी कार्रवाई में लैंगिक सम्वेदनशीलता का ज़रूरी तत्व जोड़ती हैं.” शान्तिरक्षा मिशनों को समर्थन आवश्यक लैफ्टिनेण्ट जनरल शैलेश तिनईकर एक वरिष्ठ शान्तिरक्षक के रूप में, बहुआयामी शान्ति अभियानों के लिये घटते अन्तरराष्ट्रीय समर्थन से अवगत हैं और इसे लेकर चिन्तित रहते हैं. उन्होंने कहा, "सबसे उन्नत देशों में भी लोकतंत्र बनाए रखना बहुत कठिन होता है, और दक्षिण सूडान तो इस मामले में अभी दुनिया का सबसे नया देश ही है. यहाँ करने के लिये बहुत कुछ है और दक्षिण सूडान के लोगों को हर सम्भव सहायता की ज़रूरत है." "सवाल यह है कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय का धैर्य कब तक रहेगा? मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र शान्ति अभियानों में, हम युद्धविराम की निगरानी से आगे बढ़कर, राष्ट्र निर्माण में मदद करने के लिये बदलाव लाए हैं. यह एक लम्बी व महंगी प्रक्रिया है. लेकिन, कमज़ोर राष्ट्रों को मज़बूत करने का कोई अन्य विकल्प, मुझे नहीं नज़र आता है. मेरी राय में यह हमारा सामूहिक विवेक ही तय कर सकता है." सन्तुष्ट जीवन लैफ्टिनेण्ट जनरल शैलेश तिनईकर, UNMISS के सैन्य घटक के शीर्ष पद की समाप्ति के साथ ही, भारतीय सेना से भी सेवानिवृत्त हो रहे हैं. ऐसे समय में वो अपने कार्यकाल से बेहद सन्तुष्ट नज़र आते हैं. वो कहते हैं, "यदि आप परिवार, कामकाज और साथी जैसे अच्छे जीवन के मानदण्डों पर तोलें, तो मैं बहुत भाग्यशाली रहा हूँ. मेरे पास एक बेहद अच्छी जीवनसाथी हैं, एक ऐसा करियर है, जिसमें मैंने दुनिया के सबसे बड़े शान्ति मिशन में अग्रणी भूमिका निभाई है." "मैंने इस वर्दी को 42 साल तक गर्व से पहना और इस पर कोई धब्बा नहीं लगने दिया. अब जब मैं इसे अन्तिम बार विदा करुंगा, तो पीछे मुड़कर नहीं देखूँगा. यह मेरे जीवन के एक नए चरण की शुरुआत है, जिसमें मुझे कई नए मुक़ाम हासिल करने हैं." --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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