भारत और पाकिस्तान भीषण गर्मी की चपेट में, जीवनरक्षा के लिये ऐहतियाती उपायों पर ज़ोर

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विश्व में घनी आबादी वाले देशों में शुमार होने वाले भारत और पाकिस्तान, दोनों देशों में इन दिनों करोड़ों लोग भीषण गर्मी में झुलस रहे हैं और तापमान 45 डिग्री सेल्सियस को छू चुका है. इसके मद्देनज़र, दोनों देशों में मौसम विज्ञान विभाग, स्वास्थ्य व आपदा प्रबन्धन एजेंसियों साथ मिलकर उन उपायों को प्रभावी ढँग से लागू करने में जुटे हैं, जिनकी मदद से अतीत के सालों में ज़िन्दगियों की रक्षा कर पाना सम्भव हुआ है. ताप लहरों व चरम गर्मी से ना सिर्फ़ मानव स्वास्थ्य, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्रों, कृषि, जल एवं ऊर्जा आपूर्ति और अर्थव्यवस्था के अहम सैक्टरों पर विविध प्रकार के असर होते हैं. वर्ष 2015 में गर्मी के मौसम के दौरान, भारत के मध्य व पश्चिमोत्तर हिस्से और पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से में ताप लहरों का प्रभाव, प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से हज़ारों मौतों के लिये ज़िम्मेदार बताया गया. The #heatwave in #India and #Pakistan is hitting many millions of people and the economy. Temps topped 45°C (113°F), will ease by 2 May#Heatwaves are one of the signs of #climatechange Air temps at 1200 UTC from @CopernicusECMWF WMO roundup at https://t.co/au1UovUieL pic.twitter.com/wGuZXIU2yS — World Meteorological Organization (@WMO) April 29, 2022 अतीत में लिये गए सबक़ व अनुभवों, ताप स्वास्थ्य कार्रवाई योजनाओं और यूएन मौसम विज्ञान एजेंसी द्वारा सह-प्रायोजित नैटवर्क के ज़रिये, दोनों देशों में अत्यधिक गर्मी से निपटने और अन्य प्रभावित इलाक़ों में क्षमता को बढ़ाये जाने पर बल दिया जा रहा है. ताप स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली व योजनाओं के अन्तर्गत, सम्वेदनशील आबादी व तापमान से सर्वाधिक प्रभावित इलाक़ों की शिनाख़्त होती है, अत्यधिक गर्मी के प्रति उनकी सम्वेदनशीलता की समीक्षा की जाती है, और फिर चरम गर्मी से बचाव उपायों को साझा किया जाता है. बढ़ता पारा भारत के मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार 28 अप्रैल को, देश के व्यापक हिस्से में अधिकतम तापमान 43°C से 46°C तक पहुँच गया, और यही हालात 2 मई तक जारी रहने की सम्भावना है. पाकिस्तान में भी इसी प्रकार के तापमान दर्ज किये गए हैं, और देश के मौसम विभाग का कहना है कि देश के अनेक हिस्सों में दिन का तापमान औसत से 5°C से 8°C ऊपर रहने की सम्भावना है. गिलगिट-बाल्टिस्तान और ख़ाइबर-पख़्तूनख़्वा के पर्वतीय क्षेत्रों में असाधारण गर्मी से बर्फ़ पिघलने की आशंका जताई गई है, जिससे सम्वेदनशील इलाक़ों में अचानक बाढ़ आ सकती है. मौजूदा हालात में वायु गुणवत्ता भी प्रभावित हुई है और, विशाल भू-भाग पर आग लगने का जोखिम मंडरा रहा है. यूएन एजेंसी विशेषज्ञों का मानना है कि भारत और पाकिस्तान में अत्यधिक गर्मी के लिये, जलवायु परिवर्तन को एकमात्र कारण बताना जल्दबाज़ी होगी. मगर, ये परिस्थितियाँ एक बदलती जलवायु से आने वाले बदलावों के अनुरूप ही हैं. अतीत की तुलना में ताप लहरों की आवृत्ति व गहनता बढ़ी है, और वे पहले की तुलना में जल्दी शुरू हो रही हैं. आईपीसीसी का आकलन जलवायु परिवर्तन पर अन्तर-सरकारी पैनल (IPCC) की छठी समीक्षा रिपोर्ट दर्शाती है कि दक्षिण एशिया में, इस सदी में ताप लहरें पहले से कहीं अधिक होंगी. साथ ही, आर्द्रता बढ़ने से तापमान व गर्मी का एहसास ज़्यादा होगा, और इसलिये ताप दबाव बढ़ने की भी आशंका है. भारत सरकार ने हाल ही में अपने एक प्रकाशन में तापमान परिवर्तन पर जानकारी देते हुए बताया था कि भारत में चरम गर्मी की आवृत्ति 1951-2015 के दौरान बढ़ी है. रिपोर्ट के अनुसार 1986-2015 के दौरान 30 वर्ष की अवधि में इन रुझानों में तेज़ी आई है. वर्ष 1986 के बाद से, सबसे गर्म दिन, सबसे गर्म रात और सर्वाधिक ठण्डी रात में गर्माहट आती देखी गई है. UN India भारत के कई राज्यों में हवा की ख़राब गुणवत्ता बड़ी चिंता का कारण है. भारत में अब तक सबसे गर्म मार्च का महीना दर्ज किया गया, जिसका औसत अधिकतम तापमान 33.1 डिग्री सेल्सियस था, दीर्घकालिक औसत से 1.86 डिग्री सेल्सियस अधिक था. पाकिस्तान में भी पिछले 60 सालों में सबसे गर्म मार्च महीना रिकॉर्ड किया गया, और कई स्थानों पर रिकॉर्ड टूटा. मासनून से पहले की अवधि में, भारत और पाकिस्तान में लोगों को नियमित रूप से ऊँचे तापमान का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से मई महीने में. अप्रैल महीने में भी ताप लहरें आती हैं मगर वे इतना आम नहीं है. कार्रवाई योजना भीषण गर्मी से बचाव उपायों के तहत, भारत और पाकिस्तान में, ताप-स्वास्थ्य शुरुआती चेतावनी प्रणालियों का इस्तेमाल किया जाता है, जिनमें से कुछ विशेष रूप से शहरी इलाक़ों के लिये तैयार की गई हैं. ताप कार्रवाई योजनाओं से गर्मी के कारण होने वाली मौतों को टालने में मदद मिलती है और अत्यधिक तापमान के सामाजिक असर, जैसेकि कार्य उत्पादकता का खोना, को कम किया जा सकता है. अतीत में लिये गए सबक़, यूएन एजेंसी द्वारा सह-प्रायोजित Global Heat Health Information Network के ज़रिये साझीदारों के साथ साझा किये जा रहे हैं, ताकि सर्वाधिक प्रभावित इलाक़ों में क्षमता को बढ़ाया जा सके. वहीं, South Asia Heat Health Information Network, SAHHIN, के ज़रिये, दक्षिण एशिया क्षेत्र में अनुभवों को साझा किये जाने और क्षमता बढ़ाने पर काम किया जा रहा है. © UNICEF/Srikanth Kolari बढ़ते तापमान और बर्फ़बारी कम होने के कारण पर्वतीय क्षेत्र में हिमनद सिकुड़ रह रहे हैं. इसके अतिरिक्त, भारत ने ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण’ के ज़रिये ताप कार्रवाई योजनाओं के लिये एक राष्ट्रीय फ़्रेमवर्क स्थापित किया है. इस फ़्रेमवर्क की मदद से प्रान्तीय स्तर पर आपदा जवाबी कार्रवाई के लिये एजेंसियों के नैटवर्क के साथ समन्वय स्थापित किया जाता है और स्थानीय शहरी प्रशासन बढ़ते तापमान के लिये सतर्क रहता है. पारा बढ़ने की स्थिति में प्रभावित इलाक़े में लोगों को ऐहतियाती उपायों के सम्बन्ध में जानकरी प्रदान की जाती है. भारत के गुजरात राज्य का अहमदाबाद, दक्षिण एशिया का पहला शहर जहाँ वर्ष 2013 में ताप स्वास्थ्य योजना को विकसित व लागू किया गया. वर्ष 2010 में बेहद चुनौतीपूर्ण ताप लहरों को अनुभव किये जाने के बाद इस दिशा में प्रयास किये गए, जिनका अब ताप लहरों की दृष्टि से सम्वेदनशील 23 राज्यों में विस्तार किया गया है, और 130 से अधिक शहरों व ज़िलों लागू किया गया है. वर्ष 2015 में गर्मी के मौसम के दौरान, भारत के मध्य व पश्चिमोत्तर हिस्से और पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से में ताप लहरों का प्रभाव, प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से हज़ारों मौतों के लिये ज़िम्मेदार बताया गया. Photo: IRIN/David Swanson पाकिस्तान के, इस्लामाबाद में एक बाज़ार का दृश्य (फ़ाइल फ़ोटो) बचाव उपाय इन चिन्ताजनक हालात से सबक़ लेते हुए पाकिस्तान ने भी सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा की दिशा में प्रयास किये हैं. इसके तहत कराची और पाकिस्तान के अन्य हिस्सों में ताप कार्रवाई योजना को विकसित व लागू किया गया है. शहरी, राज्य/प्रान्तीय, या संघीय स्तर पर ताप कार्रवाई योजना के ज़रिये, अत्यधिक गर्मी से उत्पन्न होने वाले जोखिमों का अनुमान लगाया जाता है, और उसके अनुरूप तैयारी व जवाबी कार्रवाई विकसित की जाती है. ताप स्वास्थ्य चेतावनी प्रणालियाँ इनका अहम हिस्सा हैं, जिन्हें राष्ट्रीय मौसम विज्ञान सेवाओं द्वारा प्रदान किया जाता है. इन योजनाओं के अन्तर्गत, किसी शहर में तापमान की दृष्टि से सम्वेदनशील आबादी के आधार पर लक्षित उपायों को तैयार किया जाता है. इनमें शहर में गर्मी से सर्वाधिक प्रभावित इलाक़ों की शिनाख़्त करना, इन हिस्सों में सम्वेदनशील हालात में रह रही आबादी की पहचना करना, अत्यधिक गर्मी के प्रति उनकी सम्वेदनशीलता की समीक्षा की जाती है, और फिर बचाव उपायों को साझा करना है. निर्बल समुदायों में जीवनरक्षक बचाव उपायों व जागरूकता प्रसार के कार्य में, रैड क्रॉस रैड क्रेसेन्ट सोसाइटी समेत अन्य नागरिक समाज संगठनों से महत्वपूर्ण मदद मिली है. --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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