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घर की गन्ध: दाएश की एक पूर्व समर्थक महिला की कज़ाख़स्तान वापसी

मध्य पूर्व में सक्रिय आतंकवादी गुट दाएश (आइसिल) लड़ाकों के 600 परिजन - महिलाओं और बच्चों के पुनर्वास के एक कार्यक्रम के अन्तर्गत, पिछले तीन वर्षों के दौरान सीरिया से कज़ाख़स्तान भेजे गए हैं. इनमें एक ऐसी महिला भी है जो पहले अतिवादी विचार रखती थीं और जिन्होंने दाएश के एक सदस्य के साथ विवाह किया था. 32 वर्षीय कज़ाख़ महिला ऐसेल ने, यूएन न्यूज़ के साथ बातचीत की है जिसमें उन्होंने अपने खेद, और एक बेहतर भविष्य के लिये अपनी उम्मीदें साझा की हैं... ऐसेल ने बताया, “हमें बताया गया था कि सीरिया एक पवित्र भूमि है. वहाँ लड़ाई में अगर हमारी मौत होती है तो हम एकदम जन्नत में जाएंगे और शहीद का दर्जा मिलेगा.” ऐसेल वर्ष 2014 में उन 150 लोगों में शामिल थीं जो सीरिया में, आइसिल आतंकवादी नैटवर्क में शामिल होने के लिये, कज़ाख़स्तान से रवाना हुए थे. ऐसेल के साथ उनके पति और बेटा भी थे. ऐसेल उस समय गर्भवती थीं. ऐसेल क़ज़ाख़स्तान के उत्तरी हिस्से में, एक औसत परिवार में पली-बढ़ीं थीं, जहाँ देश के दक्षिणी हिस्से की तरह, धार्मिक माहौल उतना प्रबल नहीं था. ऐसेल ने परिवहन और संचार कॉलेज से शिक्षा पूरी करने के बाद, वर्ष 2013 में राजधानी नूर सुल्तान का रुख़ किया. यह शहर उस समय अस्ताना के नाम से जाना जाता था. ‘हाथ से निकली जन्नत’ UN News/Kulpash Konurova ऐसेल ई ऐसेल ने राजधानी में पहुँचने के बाद इस्लाम के एक सख़्त रूप का पालन करना शुरू किया, और उसी तरह के विचारों वाले एक व्यक्ति के साथ विवाह किया. उस व्यक्ति ने, ऐसेल को इस बात के लिये राज़ी कर लिया कि उन्हें सीरिया पहुँचना चाहिये: हम इसलिये आकर्षित हुए क्योंकि हमें विश्वास हो गया था कि पवित्र भूमि पर किसी को भी कोई काम करने की ज़रूरत नहीं होगी, कि हमें हर महीने वित्तीय लाभ मिलेंगे, और आज़ाद कराए गए नगरों और क़स्बों में मकान, घर व सम्पत्तियाँ हमारी अपनी होंगी. उससे अगले वर्ष यानि 2014 में, वो सीरिया के लिये रवाना हो गए, और इस सफ़र में उन्होंने बेलारूस व तर्की से होकर जाने वाला रास्ता अपनाया. अलबत्ता, लड़ाई गहराने के साथ ही, उनका सपना बिखर गया और उनके पास रक़म व खाद्य सामग्री बहुत जल्द ही ख़त्म हो गई. ऐसेल कुल मिलाकर पाँच वर्ष, सीरिया में रहीं और इस दौरान वो अपने पति के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान भटकती रहीं. इस दौरान उन्होंने अपने दूसरे बेटे को भी जन्म दिया, जबकि उनके पति ने कज़ाख़स्तान की दो अन्य महिलाओं के साथ विवाह किया, और उनके बच्चों को जन्म दिया. ऐसेल बताती हैं कि एक दिन, उनके पति घर वापिस नहीं लौटे: जिस इमारत में वो काम करते थे, उस पर एक बम हमले में उनकी मौत हो गई थी. अपने पति को खोकर विधवा बन चुकीं ऐसेल ने अब अपने बच्चों के साथ, अपने मूल देश को लौट जाने का फ़ैसला किया. अल होल में जीवित रह पाना इस परिवार को ख़बर मिली थी कि क़ज़ाख़स्तान सरकार ने उन लोगों के लिये विमान उड़ानों का प्रबन्ध किया था जो स्वदेश वापिस लौटना चाहते थे. ऐसेल को हालाँकि ये डर था कि उन्हें कज़ाख़स्तान लौटने पर जेल भेजा जा सकता है, मगर उन्हें यह भी अहसास हो चुका था कि वो अगर सीरिया में ही रहे तो, उन्हें लगातार कठिन होते हालात में जीवित रहने के लिये भी जद्दोजेहद करनी पड़ेगी. ऐसेल, अपने जीवन को गम्भीर ख़तरा होने के बीच अनेक अन्य महिलाओं के साथ, अल होल शरणार्थी शिविर में पहुँच गईं, जो सीरिया के पूर्वोत्तर हिस्से में बनाया गया था. अल होल शिविर में लगभग 60 हज़ार शरणार्थी रखे गए थे जहाँ की परिस्थितियों को बहुत कठिन बताया गया था. उस शिविर में दाएश के लड़ाकों के पूर्व परिवारों और अन्य लोगों के बीच हिंसा भड़कने की ख़बरों के बाद, उन्हें एक अलग व भारी सुरक्षा वाले परिसर में रखा जाता है. ऐसेल कहती हैं कि वो बहुत ख़ुशक़िस्मत थीं कि उन्हें अल होल शिविर में केवल दो महीने ही गुज़ारने पड़े, मगर उन 60 दिनों के दौरान इतनी तकलीफ़ों का सामना करना पड़ा जो गुज़रे पाँच साल से भी ज़्यादा थीं. इन कठिनाइयों ने उन्हें और उनके बेटों को सीरिया से बाहर निकलने के लिये तत्काल ज़रूरत महसूस कराई. © Unsplash/Alexander Serzhantov कज़ाख़्स्तान के अलमाटी शहर का एक दृश्य. “ज़हूसन” घर की ख़ूशबू कज़ाख़स्तान सरकार की पहल की बदौलत, ऐसेल अपने घर वापिस लौटने में कामयाब हो गई. उन्हें और उनके बेटों को अक्ताऊ शहर में पहुँचाया गया, जो कैस्पियन समुद्र तट के नज़दीक है, वहाँ, उन्होंने एक पुनर्वास केन्द्र में क़रीब एक महीना गुज़ारा, जहाँ उनके हालात वाले अन्य लोगों को भी रखा गया था. उनकी आरम्भिक चिकित्सा जाँच के बाद, मनोवैज्ञानिकों, धार्मिक गुरुओं व विद्वानों ने इस परिवार के साथ काम किया और उनके बच्चों को अस्थाई स्कूल में दाख़िला देने का प्रबन्ध किया गया. परिवीक्षा (Probationary) अवधि गुज़रने के बाद, उन्हें उनके गृह नगर में, अपने सम्बन्धियों के साथ बसने के लिये भेज दिया गया. आज ऐसेल कज़ाख़स्तान में बस गई हैं. उन्हें नया प्रेम भी मिल गया जिसके साथ उन्होंने विवाह भी कर लिया है. उनके दो बेटों की उम्र अब आठ और पाँच वर्ष है, और ये परिवार अब वहाँ प्रसन्न है. ऐसेल की घर वापसी दरअसल “ज़हूसन अभियान” की बदौलत सम्भव हो सकी. यह एक कज़ाख़ शब्द है जिसका अर्थ होता है – “कड़वी लकड़ी” जिसकी गन्ध को, बहुत से कज़ाख़स्तानी लोग, अपनी मात्रभूमि से सम्बद्ध करते हैं. ज़हूसन अभियान को शुरू हुए, 2022 में तीन वर्ष हो चुके हैं. कज़ाख़स्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा समिति के अनुसार, अभी तक 37 पुरुष, 157 महिलाएँ और 413 बच्चों को वापिस देश में बुलाया गया है, इनमें 34 अनाथ बच्चे भी शामिल हैं. इनमें से 31 पुरुषों और 18 महिलाओं को, दाएश की गतिविधियों में हिस्सा लेने का दोषी भी क़रार दिया गया है. कज़ाख़स्तान सरकार के अनुसार, इस अभियान की सफलता की, बहुत से ऐसे देश निकटता से निगरानी कर रहे हैं जो दाएश के पूर्व लड़ाकों और उनके परिवारों को अपने यहाँ बुला रहे हैं. इनमें ऑस्ट्रिया, जर्मनी, उज़बेकिस्तान, यूक्रेन, मालदीव गणराज्य के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र, योरोप में सुरक्षा और सहयोग संगठन (OSCE) व योरोपीय संसद भी शामिल हैं. फ़र्ज़ी दावेदार © UNICEF/Delil Souleiman सीरिया के पूर्वोत्तर इलाक़े में बनाए गए अल होल शिविर में कुछ शरणार्थी. (फ़ाइल). यूए यूएन न्यूज़ ने अतिवादी लोगों की मानसिकता और विचारों पर एक विशेषज्ञ आलिम शाउमेतोफ़ के साथ बातचीत की, जिन्होंने बताया कि 2013-14 में कज़ाख़स्तान से बहुत से युवाओं की सीरिया के लिये रवानगी, तीन मुख्य कारणों से थी. राजधानी नूर सुल्तान स्थित ऐकनियेत पुनर्वास केन्द्र के डायरेक्टर आलिम शाउमेतोफ़ बताते हैं कि पहला कारण था धार्मिक नासमझी, जिसने उन लोगों को, अतिवादी धार्मिक विचारधारा फैलाने वालों के मुक़ाबले में, कमज़ोर बना दिया था. आलिम शाउमेतोफ़ कहते हैं, “वो लोग, समर्थकों की भर्ती करने वाले धार्मिक गुरुओं के बहुत सक्षम और संगठित कमकाज का मुक़ाबला करने में सक्षम नहीं थे.” “धार्मिक अतिवादी विचारधारा, राजनैतिक नेताओं, मनोवैज्ञानिकों और धार्मिक गुरुओं का संयुक्त व एकजुट प्रयास है, जो ये विचार लोगों के दिमाग़ों में भरते हैं और फिर वो लोग, अन्य लोगों की विचारधारा की ख़ातिर, अपनी ज़िन्दगी भी दाँव पर लगाने के लिये तैयार हो जाते हैं.” आलिम शाउमेतोफ़ के अनुसार, एक अन्य महत्वपूर्ण कारण है – धर्म व धार्मिक संगठन बनाने की स्वतंत्रता वाला क़ानून जो कज़ाख़स्तान की स्वतंत्रता के शुरुआती वर्षों में बनाया गया था. “सीमाएँ खोल दी गई थीं, युवा लोग विदेशों में स्थित धार्मिक संस्थानों में पहुँचे, और वहाँ फ़र्ज़ी धार्मिक विद्वानों के प्रभाव में पड़ गए. और जब वो वापिस लौटे तो उन्होंने अपनी ख़तरनाक विचारधारा भी यहाँ फैलानी शुरू कर दी.” तीसरा दुर्भाग्यपूर्ण कारण - World Wide Web और इण्टरनेट के ज़रिये सूचना व जानकारी का अबाध प्रवाह है. युवाओं ने अपने सवालों के जवाब तलाश करने, और अपने जीवन में दरपेश समस्याओं के समाधनों के लिये ऑनलाइन मंचों का रुख़ किया, और इस तरह धार्मिक वेबसाइट्स व सोशल नैटवर्कों के जरिये अतिवादी रुख़ अपनाए जाने का यह सिलसिला शुरू हुआ. “इस तरह, हमारे युवाओं की भारी संख्या सीरिया और इराक़ के लिये निकल पड़ी, और वो किसी अन्य की लड़ाई में फँस गए.” आलिम शाउमेतोफ़ ने बताया कि ऐकनियेत पुनर्वास केन्द्र के कर्मचारी, पूर्व विदेश लड़ाकों और उनके परिवारों के साथ सम्पर्क साधते हैं जिसके लिये शिक्षा और सूचना सत्र आयोजित किये जाते हैं. इस प्रक्रिया के ज़रिये 95 प्रतिशत लड़ाकों व परिवारों ने अतिवादी विचारधारा छोड़ दी है. आलिम शाउमेतोफ़ बताते हैं कि उनमें से कुछ लोग धर्म निर्पेक्ष जीवन को लौटते हैं जबकि अन्य लोग इस्लाम का एक उदारवादी रूप अपनाते हैं. “हमारा काम जारी है.” परिवारों के लिये यूएन सहायता अतिवादियों और आतंकवादियों में शामिल होने के लिये गए नागरिकों की वापसी एक अत्यधिक जटिल प्रक्रिया है, जिस दौरान सभी सम्बद्ध देशों के अधिकारी, संयुक्त राष्ट्र के समर्थन से, आबादी की सुरक्षा और वापिस लौटने वाले लोगों के मानवाधिकारों के बीच सही सन्तुलन बिठाने की कोशिश कर रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र, इन लोगों को वापिस लेने के लिये रुचि दिखाने वाले देशों को, वृहद सहायता मुहैया करा रहा है. मध्य एशिया के लिये यूएन क्षेत्रीय निरोधक कूटनीति केन्द्र ने, कथित पूर्व लड़ाकों की पहचान की पुष्टि के लिये, एक वैश्विक कार्यक्रम तैयार किया है. इनमें वो सभी पूर्व लड़ाके शामिल हैं जो वापिस लौट चुके हैं और जो लौटना चाहते हैं. इनके मामलों के अनुसार, इन पर या तो मुक़दमा चलाया जाएगा या इन्हें पुनर्वास व एकीकरण की सुविधा दी जाएगी. संयुक्त राष्ट्र के आतंकवाद निरोधक कार्यालय (UNOCT) सहित अन्य यूएन एजेंसियाँ, कज़ाख़स्तान के उन कारावासों को सीधी सहायता मुहैया करा रही हैं जो अतिवादी क़ैदियों के पुनर्वास के मामले देख रही हैं. --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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