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पाँच दशकों में आपदाओं में पाँच गुना वृद्धि, बेहतर चेतावनी प्रणालियों से जीवनरक्षा सम्भव

पिछले 50 वर्षों में जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम की घटनाओं से विश्व भर में प्राकृतिक आपदाओं की संख्या बढ़ रही है, जिसका निर्धन देशों पर विषमतापूर्ण असर हुआ है. विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) और आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये यूएन कार्यालय (UNDRR) की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, इसके बावजूद, बेहतर अग्रिम चेतावनी प्रणालियों से मृतक संख्या में कमी लाने में सफलता मिली है. Atlas of Mortality and Economic Losses from Weather, Climate and Water Extremes (1970-2019): more than 11 000 reported disasters, 2 million deaths and US$ 3.64 trillion in losses globally in past 50 years. Details https://t.co/rPqkG1KrwX Tx @UNDRR, @WHO, @PHE_uk for input pic.twitter.com/7XhSAwuZ1L — World Meteorological Organization (@WMO) September 1, 2021 बुधवार को जारी, ‘Atlas of Mortality and Economic Losses from Weather, Climate and Water Extremes (1970-2019)’ शीर्षक वाली रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम की घटनाओं ने पिछले पचास वर्षों में आपदाओं की संख्या पाँच गुना तक बढ़ा दी है. हालांकि, बेहतर पूर्व चेतावनी प्रणालियों और आपदा प्रबंधन की मदद से वर्ष 1970 से 2019 के बीच, मृतक संख्या में बड़ी गिरावट दर्ज की गई है. 1970 में मृतक संख्या 50 हज़ार थी, जो कि 2010 के दशक में घटकर 20 हज़ार से कम रह गई है. यूएन मौसम विज्ञान एजेंसी के महासचिव पेटेरी टालस ने कहा, “कठोर आँकड़ों के पीछे आशा का एक सन्देश भी है.” “बेहतर बहु-जोखिम समय पूर्व प्रणालियों से मृत्यु दर में ठोस कमी आई है. सरल शब्दों में, ज़िन्दगियों की रक्षा करने में हम पहले से अधिक बेहतर हुए हैं.” जान-माल की हानि एटलस के मुताबिक, 1970 से 2019 तक, मौसम, जलवायु और जल-जोखिम, क़रीब 50 फ़ीसदी आपदाओं, 45 फ़ीसदी मृतक संख्या और और 74 प्रतिशत आर्थिक हानि की वजह थे. इन जोखिमों के कारण दुनिया भर में 11 हज़ार से आपदाएँ घटित हुईं, 20 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई और साढ़े तीन हज़ार अरब से ज़्यादा का नुक़सान हुआ. इनमें से 91 फ़ीसदी से अधिक मौतें विकासशील देशों में हुई हैं. इस अवधि की शीर्ष 10 आपदाओं में, सूखा सबसे अधिक घातक साबित हुआ है, जिसके कारण साढ़े छह लाख से अधिक लोगों की जान गई है. इसके बाद तूफ़ान (पाँच लाख 77 हज़ार से अधिक मौतें), बाढ़ (58 हज़ार 700 मौतें) और चरम तापमान की घटनाएं हैं जिनमें 55 हज़ार से अधिक लोगों की मौत हुई है. आपदाओं की बड़ी क़ीमत बताया गया है कि इन आपदाओं के कारण होने वाले आर्थिक नुक़सान में, 1970 के दशक से 2010 के दशक तक सात गुना की बढ़ोत्तरी हुई है. वैश्विक स्तर पर, यह प्रतिदिन चार करोड़ 90 लाख डॉलर से बढ़कर 38 करोड़ से अधिक पहुँच गया है. अब तक सबसे महंगी 10 आपदाओँ में, तीन चक्रवाती तूफ़ानों के कारण 2017 में हुई, और यह इस अवधि में कुल आर्थिक नुक़सान के 35 फ़ीसदी के लिये ज़िम्मेदार है. WMO दुनिया ने इन आपदाओं की एक बड़ी आर्थिक क़ीमत चुकाई है. अमेरिका में चक्रवाती तूफ़ान ‘हार्वी’ के कारण 96 अरब डॉलर से अधिक की क्षति पहुँची, कैरीबियाई क्षेत्र में ‘मारिया’ से 69 अरब डॉलर और केप वर्डे में ‘इरमा’ से 58 अरब डॉलर का नुक़सान हुआ. एशियाई क्षेत्र में हालात 1970 से 2019 तक एशिया में, तीन हज़ार 454 आपदाओं को दर्ज किया गया, जिनमें नौ लाख 75 हज़ार से अधिक लोगों की जानें गईं. इन आपदाओं के कारण दो हज़ार अरब डॉलर की आर्थिक क्षति हुई है. वैश्विक स्तर पर, एशियाई क्षेत्र में मौसम, जलवायु और जल-सम्बन्धी क़रीब एक तिहाई या 31 फ़ीसदी आपदाओं को दर्ज किया गया. कुल मृतक संख्या में से लगभग 50 फ़ीसदी और एक-तिहाई सम्बन्धित आर्थिक नुक़सान इसी क्षेत्र में हुआ है. इन आपदाओं में से 45 प्रतिशत, बाढ़ से सम्बन्धित हैं जबकि 36 फ़ीसदी तूफ़ान की घटनाएँ हुई हैं. इस क्षेत्र में कुल मौतों में से 72 फ़ीसदी तूफ़ानों के कारण हुई हैं, जबकि बाढ़ के कारण 57 फ़ीसदी आर्थिक नुक़सान हुआ है. WMO दुनिया ने इन आपदाओं की एक बड़ी आर्थिक क़ीमत चुकाई है. जलवायु परिवर्तन के पदचिन्ह यूएन एजेंसी प्रमुख के मुताबिक दुनिया के अनेक हिस्सों में, चरम मौसम, जलवायु और जल सम्बन्धी घटनाओं की संख्या व आवृत्ति बढ़ रही है. यह जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप हो रहा है. “इसका अर्थ और ज़्यादा तापलहरें, सूखा, और जंगलों में आग हैं, जैसा कि हमने हाल ही में योरोप व उत्तरी अमेरिका में अनुभव किया है.” जलवायु परिवर्तन के कारण चरम समुद्री जलस्तर की घटनाएँ भी बढ़ी हैं, जिन्हें आमतौर पर चक्रवाती तूफ़ानों से जोड़ कर देखा जाता है. इनसे, अन्य चरम घटनाओं की गहनता बढ़ी है, जैसे कि बाढ़ व उससे होने वाले अन्य प्रभाव. © UNICEF/Arimacs Wilander इण्डोनेशिया की राजधानी जकार्ता में बाढ़ प्रभावित इलाक़े का दृश्य. इसके मद्देनज़र, विश्व के अनेक हिस्सों में निचले इलाक़ों में स्थित बड़े शहरों, डेल्टा, तटीय इलाक़ों और द्वीपों के लिये जोखिम बढ़ गया है. साथ ही, ऐसे अध्ययनों की संख्या भी बढ़ रही है जो कि चरम स्तर पर वर्षा की घटनाओं के लिये मानवीय प्रभावों को ज़िम्मेदार मानते हैं. इसके उदाहरणस्वरूप, पूर्वी चीन में जून-जूलाई 2016 में चरम स्तर पर हुई बारिश और 2017 में अमेरिका के ह्यूस्टन शहर में चक्रवाती तूफ़ान हार्वी से हुआ नुक़सान है. अनुकूलन की आवश्यकता रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि विश्व मौसम विज्ञान संगठन के कुल 193 सदस्य देशों में से महज़ आधी संख्या में देशों के पास ही बहु-जोखिम समय पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ हैं. अफ़्रीका, लातिन अमेरिका के कुछ हिस्सों, और प्रशान्त व कैरीबियाई द्वीपीय देशों में मौसम व जल-विज्ञान सम्बन्धी पर्यवेक्षण नैटवर्क का अभाव है. इसे ध्यान में रखते हुए व्यापक स्तर पर आपदा जोखिम प्रबंधन में निवेश की पुकार लगाई गई है ताकि राष्ट्रीय व स्थानीय स्तर पर रणनीतियों में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन को सुनिश्चित किया जा सके. --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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