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यमन में अकाल की रोकथाम के प्रयास - यूएन रैज़ीडैण्ट कोऑर्डिनेटर ब्लॉग

यमन पिछले सात वर्ष से एक क्रूर हिंसक संघर्ष से जूझ रहा है और बड़े स्तर पर मानवीय सहायता पर निर्भर है. संयुक्त राष्ट्र हर हाल में यह सुनिश्चित करने के लिये प्रयासरत है कि स्थानीय नागरिकों को फिर से अकाल और कुपोषण जैसे बदतर हालात की पीड़ा ना झेलनी पड़े. यमन के लिये रैज़ीडेण्ट कोऑर्डिनेटर और मानवीय समन्वयक डेविड ग्रेस्ले हाल ही में न्यूयॉर्क में यूएन मुख्यालय आए और उन्होंने यूएन न्यूज़ के साथ बातचीत मे बताया कि आपात सहायता राशि की प्राप्ति के बावजूद, मानवीय राहत जवाबी कार्रवाई के लिये अभी और धनराशि की आवश्यकता है. “मैं कुछ दिन पहले, अग्रिम मोर्चों के बीच एक संकीर्ण भूमि पट्टी से होते हुए यमन के पश्चिम तट तक गया. मैं उन घरों तक पहुँचना चाहता था जिनके लिये मानवीय राहत सहायता सुलभ नहीं है. इन इलाक़ों में हताश लोग अपनी व्यथा को साझा करने के लिये व्यग्र हैं. आमतौर पर, मुझे वहाँ माताएँ मिलीं जो बताना चाहती हैं कि उन्हें अपने बच्चों को स्कूल भेजने, जल, भोजन का इन्तज़ाम करने या अस्पताल जाने में कितना संघर्ष करना पड़ रहा है. यह मदद के लिये पुकार है, एक ऐसी पुकार जिसे हमें सुनने की ज़रूरत है. एक स्थान पर, हमने एक स्कूल देखा जो कि मोर्टार हमले में ध्वस्त हो गया था, और वो इलाक़ा बारूदी सुरंगों से दूषित था, इसलिये वहाँ फ़सलें नहीं उगाई जा रही थीं. पेयजल और चिकित्सा सहायता भी अग्रिम मोर्चे के दूसरी ओर है और स्थानीय आबादी को महसूस हो रहा था कि वे हर तरफ़ से बुरी तरह पिस रहे हैं. हम इन कहानियों को बार-बार सुनते हैं और हर दो या तीन दिन में, मुझे बारूदी सुरंग या बिना फटे रह गए विस्फोटक से एक और व्यक्ति के घायल होने की रिपोर्ट मिलती हैं. यह आम तौर पर एक बच्चा होता है. आपात सहायता राशि में व्यापक कमी भाग्यवश, हमारे पास अप्रैल और जून के बीच पर्याप्त धनराशि प्राप्त हुई, जिससे परिस्थितियों को अकाल की ओर बढ़ने से रोका जा सका. मगर, हालात नाज़ुक बने हुए हैं और इस मदद को बरक़रार रखे जाने की आवश्यकता है. UNOCHA यमन के लिये रैज़ीडेण्ट कोऑर्डिनेटर और मानवीय समन्वयक डेविड ग्रेस्ले (मध्य). हमें अब तक क़रीब दो अरब 10 करोड़ डॉलर की राशि प्राप्त हुई है और पिछले सप्ताह, हमने 60 करोड़ डॉलर के अतिरिक्त संकल्पों को देखा है. इसलिये, हम और नज़दीक पहुँच रहे हैं, मगर यह वास्तविक आवश्यकताओं से अब भी कम है. स्वास्थ्य, शिक्षा, जल, साफ़-सफ़ाई, संरक्षण सेवाओं, बारूदी सुरंगों व बिना फटे विस्फोटकों के उन्मूलन के लिये समर्थन, इन सभी की अब भी व्यापक पैमाने पर आवश्यकता है. इन मदों में अब तक 80 से 95 फ़ीसदी धनराशि की कमी बनी हुई है. हम कुपोषण के जोखिम को झेल रहे बच्चों तक तो पहुँच पाए हैं, मगर इसके लिये सहायता धनराशि को वर्ष के अन्त, और 2022 तक जारी रखना होगा. और हमें, अगले वर्ष की सहायता धनराशि के लिये प्रयासों की तैयारी अभी से करने की आवश्यकता है. कोविड-19 महामारी के कारण पहले से ही मुश्किल हालात अब और विकट हो गए हैं. मैं ज़मीनी स्तर पर अनेक अस्पतालों में गया हूं, और मैंने देखा कि वहाँ कितनी भीड़-भाड़ है. चूँकि प्रान्तीय राजधानियों के बाहर क्लीनिक में कामकाज नहीं हो रहा है, इसलिये जगह का अभाव है और बिस्तर पूरी तरह भरे हुए हैं. माताओं को लौटाया जा रहा है और उन्हें अन्य प्रान्तों में जाने के लिये कहा जा रहा है. इसलिये कोविड-19 पहले से ही मौजूद बोझ को और बढ़ा रहा है. इनमें वे अनेक बीमारियाँ भी हैं जिनका सामना यमनी आबादी पहले से ही कर रही है. संयुक्त राष्ट्र, बदलाव के लिये प्रयासरत हमें यमन में इस समय वास्तव में तीन बातों की आवश्यकता है. पहला तो हमें मानवीय राहत कार्रवाई को बरक़रार रखने और लोगों को फिर से अकाल या गम्भीर कुपोषण का शिकार बनने से रोकना है. दूसरा, हमें एक क़दम पीछे बढ़ाना होगा और देखना होगा कि यहाँ मानवीय विनाश के हालात क्यों हैं. निसन्देह, यह युद्ध से जुड़ा है, मगर युद्ध की वजह से अर्थव्यवस्था तबाह हो गई, रोज़गार ख़त्म हो गए. इसलिये लोगों के पास भोजन ख़रीदने के लिये आय का इन्तज़ाम नहीं है. हिंसक संघर्ष के दौरान भी, हमें मानवीय राहत कार्रवाई के साथ-साथ आर्थिक उपायों का भी ध्यान रखते हुए आगे बढ़ना होगा. इसके तहत, अर्थव्यवस्था को फिर खोलने के लिये रास्तों की तलाश करनी होगी, व्यवसायों को जहाँ तक सम्भव हो सके, फिर से शुरुआत के लिये मदद प्रदान करनी होगी. © UNICEF/Saleh Hayyan यमन के एक अस्पताल में डेढ़ साल की बच्ची का कुपोषण के लिये इलाज चल रहा है. इसके अतिरिक्त, रोज़गार व आय सृजित करनी होंगी ताकि परिवार अपने लिये भोजन का प्रबन्ध कर सकें. और तीसरा, हिंसक संघर्ष के अन्त के लिये राजनैतिक निपटारे की आवश्यकता है. मगर, हमें आर्थिक मार्ग पर आगे बढ़ने के लिये राजनैतिक समाधान की प्रतीक्षा नहीं करनी है. यदि हम राजनैतिक इच्छाशक्ति दिखायें, तो हम वह अभी भी कर सकते हैं. अन्तत: यह समाप्त हो जाएगा. ऐसा किसी ना किसी समय हमेशा होता ही है. मेरा, फ़िलहाल, सबसे बड़ा डर है कि कहीं हिंसक संघर्ष यूँ ही जारी ना रहे. मैंने अन्य देशों में कार्य किया है जहाँ इस तरह के हालात 20 से 25 साल तक बने रहे. इन हालात में देश में बुनियादी रूप से ऐसे बदलाव आते हैं जहाँ फिर से सामाजिक मानकों और अतीत की विकास परिस्थितियों तक लौट पाना सम्भव नहीं हो सकता. मैंने यह जिम्मेदारी इसलिये सम्भाली, चूँकि मुझे महसूस होता है कि हालात में बदलाव लाने की आशा वास्तविक है. लेकिन, इससे पहले कि हम युवजन की एक पूरी ऐसी पीढ़ी को खो दें, जिसने युद्ध के अलावा कुछ जाना ना हो, यह समय अब हिंसक संघर्ष पर विराम लगाने का है.” --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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