कोविड-19: महिला जननांग विकृति के पूर्ण उन्मूलन की लड़ाई पर जोखिम

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संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने आगाह किया है कि कोविड-19 महामारी के कारण, महिला जननांग विकृति (Female Genital Mutilation/FGM) के पूर्ण उन्मूलन की दिशा में हुई दशकों की वैश्विक प्रगति पर जोखिम मंडरा रहा है. यूएन एजेंसियों ने 6 फ़रवरी को ‘महिला ख़तना के लिये शून्य सहिष्णुता के अन्तरराष्ट्रीय दिवस’ से पहले, महिलाओं व लड़कियों के मानवाधिकारों, स्वास्थ्य व गरिमा को सुनिश्चित करने के लिये मज़बूत कार्रवाई की अपील की है. #DidYouKnow female genital mutilation (FGM) is a practice that involves altering or injuring the female genitalia for non-medical reasons? We must protect girls from this practice! Speak out to #EndFGM: https://t.co/xeooQ25sR1 🎨: Cami Zea pic.twitter.com/sQUYYi9gdZ — UNFPA (@UNFPA) February 2, 2022 स्कूल बन्द होने, तालाबन्दी और लड़कियों के संरक्षण के लिये सेवाओं में व्यवधान की वजह से, दुनिया भर में लाखों लड़कियों के महिला ख़तना का शिकार होने का जोखिम बढ़ा है. संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) के एक अनुमान के अनुसार, विश्व में 20 लाख अतिरिक्त लड़कियाँ, वर्ष 2030 तक इससे प्रभावित हो सकती हैं. इस परिदृश्य में, महिला जननांग विकृति के उन्मूलन की दिशा में वैश्विक प्रयासों में 33 प्रतिशत की गिरावट दर्ज किये जाने की आशंका है. हानिकारक प्रथाओं की रोकथाम के मुद्दे पर यूनीसेफ़ की वरिष्ठ सलाहकार ननकली मकसूद ने बताया कि महिला जननांग विकृति के पूर्ण ख़ात्मे के विरुद्ध लड़ाई में हम पिछड़ रहे हैं. उन्होंने चिन्ता जताई कि जिन देशों में यह प्रथा प्रचलन में है, वहाँ लाखों लड़कियों के लिये इसके गम्भीर दुष्परिणाम हो सकते हैं. “जब लड़कियों की अहम सेवाओं, स्कूलों और सामुदायिक नैटवर्क तक पहुँच नहीं होती, तो महिला जननांग विकृति का जोखिम काफ़ी हद तक बढ़ जाता है.” “इससे उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और भविष्य के लिये ख़तरा पैदा होता है.” एक बड़ी समस्या बताया गया है कि दुनिया भर में कम से कम 20 करोड़ महिलाएँ व लड़कियाँ किसी ना किसी रूप में महिला ख़तना का शिकार हुई हैं. महिला जननांग विकृति से तात्पर्य उन सभी प्रक्रियाओं से है, जिनके तहत, ग़ैर-चिकित्सा कारणों से महिला जननांगों को विकृत किया जाता है. यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के अनुसार, महिला ख़तना, विविध सांस्कृतिक व सामाजिक कारणों से मुख्यत: शैशवास्था से 15 वर्ष की उम्र के दौरान किया जाता है. उदाहरणस्वरूप, कुछ समुदायों में इसे लड़कियों के लालन-पोषण और उनके वयस्कपन व विवाह के लिये तैयार होने का एक आवश्यक हिस्सा माना जाता है. कुछ अन्य देशों में, महिला जननांग विकृति को स्त्रीत्व व शीलता से जोड़कर देखा जाता है. स्वास्थ्य जोखिम महिला ख़तना से गुज़रने वाली लड़कियों को अल्पकालिक जटिलताओं, जैसेकि भीषण पीड़ा, स्तब्धता, अत्यधिक रक्तस्राव, संक्रमण और मूत्र विसर्जन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. साथ ही, उनका यौन व प्रजनन स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो सकता है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़, महिला जननांग विकृति एक वैश्विक समस्या है. मुख्यत: अफ़्रीका और मध्य पूर्व के 30 देशों में ही मुख्य रूप से इसके मामले देखे जाते हैं, मगर एशिया, लातिन अमेरिका, पश्चिमी योरोप, उत्तर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, व न्यूज़ीलैण्ड में आप्रवासियों की आबादियों में भी ये सामने आए हैं. कुछ देशों में यह अब भी सार्वभौमिक है. यूनीसेफ़ के आँकड़ों के अनुसार, जिबूती, गिनी, माली और सोमालिया में 90 प्रतिशत से अधिक लड़कियाँ इससे प्रभावित हैं. यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने भी मौजूदा रुझानों के उभरने पर चिन्ता जताई है. बताया गया है कि हर चार में एक लड़की, यानि दुनिया भर में पाँच करोड़ 20 लाख लड़कियों का ख़तना स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा किया गया है, जिसे चिकित्साकरण कहा जाता है. 2030 तक ख़ात्मे का लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र एजेंसियाँ वर्ष 2030 तक महिला जननांग विकृति के पूर्ण उन्मूलन के लिये प्रयासरत हैं, और इसे टिकाऊ विकास एजेण्डा के तहत अहम माना गया है. वर्ष 2008 से ही, यूनीसेफ़ और संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ने एक साझा कार्यक्रम का नेतृत्व किया है, जिसमें क्षेत्रीय व वैश्विक पहल को समर्थन प्रदान करते हुए, अफ़्रीका और मध्य पूर्व के 17 देशों पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया है. इनमें से 14 देशों में अब महिला जननांग विकृति पर पाबन्दी के लिये अब एक क़ानूनी व नीतिगत फ़्रेमवर्क है, और डेढ़ हज़ार से अधिक मामलों में क़ानूनी कार्रवाई व गिरफ़्तारी हो चुकी है. यूएन का मानना है कि महिला जननांग विकृति का उन्मूलन, एक पीढ़ी के भीतर किया जा सकता है और लड़कियों के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य व रोज़गार सुलभता सुनिश्चित करके, प्रगति सम्भव है --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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