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तिब्बत में चीन का नया पैंतरा, तिब्बती भाषा को समाप्त करने का किया जा रहा प्रयास

धर्मशाला, 12 जून (हि.स.)। तिब्बत को पूरी तरह से कब्जाने की दिशा में अग्रसर चीन ने अब तिब्बत में एक और नया पैंतरा खेल दिया है। नए पैंतरे के तहत अब चीन तिब्बत के लोगों को भाषीय आधार पर शिकस्त देना चाह रहा है। चीन अपनी भाषा को तिब्बत के लोगों पर पूरी तरह से थोप कर वहां के लोगों को अपने रंग में रंगने की ओर अग्रसर है ताकि आने वाले कल को वहां मौजूद तिब्बती न तो तिब्बत की आजादी की बात कर सके और न ही इस राष्ट्र की आधारभूत सरंचना और आत्मा को खोज सके। गौरतलब है कि वर्ष 2014 की जनगणना के मुताबिक तिब्बत की जनसंख्या 31 लाख 80 हजार के करीब है। जो कि तिब्बत की अपनी मूल भाषा का ज्ञान तो रखती है मगर अब उनका ज्यादातर पठन-पाठन चीन की मंदारिन भाषा में ही हो रहा है। इतना ही नहीं वहां तमाम सरकारी आदेश भी अब धीरे-धीरे मंदारिन भाषा में ही प्रकाशित हो रहे हैं। यही नही सार्वजनिक स्थलों सहित यातायात सुविधाओं पर जो साइन बोर्ड दिखते हैं वो भी मंदारिन भाषा में ही नजर आते हैं। तिब्बत के जानकार बताते हैं कि चीन ये सब सोची-समझी साजिश के तहत ही कर रहा है। चीन आने वाली तिब्बत की नस्ल को भी मंदारिन भाषा के रंग में रंगना चाह रहा है ताकि भविष्य में तिब्बत की मूल आत्मा यानी यहां की भाषा का विलुप्तीकरण किया जा सके। चीन के इस कदम का हो हर स्तर पर विरोध : आचार्य यशी फुंत्सोक उधर निर्वासित तिब्बत संसद के पूर्व डिप्टी स्पीकर और तिब्बत की आजादी के मूल क्रांतिकारी नेताओं में से एक आचार्य यशी फुंत्सोक ने कहा कि चीन ये सब कोई नया नहीं कर रहा। बीते 62 वर्षों से चीन इसी तरह से एक-एक कर तिब्बत और तिब्बत की मूल संस्कृति और सभ्यता के साथ छेड़छाड़ कर उसे नष्ट करने पर तुला हुआ है, जिसका तिब्बत के अंदर और बाहर दुनिया में भी विरोध हो रहा है, बावजूद इसके चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा। वो निरन्तर कुछ न कुछ ऐसा कर रहा है जिससे तिब्बत को पूरी तरह से चीन का ही एक प्रांत बनाया जा सके। उन्होंने कहा कि इन दिनों चीन ने तिब्बत में पैदा होने वाली भावी पीढ़ी को अल्पसंख्यक जातियों के आधार पर बांट कर मंदारिन भाषा में ही शिक्षा देने का जो फैसला लिया है वो बेहद निंदनीय है, इसकी वो घोर निंदा करते हैं। उन्होंने बताया कि चीन तिब्बत में विकास की बात करता है, तो फिर वो तिब्बत के इन अल्पसंख्यकों के बीच बोली जाने वाली उपभाषा को तरजीह देते हुये उनके अंदर तिब्बती भाषा का ज्ञान क्यों नहीं विकसित होने देना चाहता। उन्हें मंदारिन भाषा का ज्ञान किस आधार पर देना चाह रहा है। उसे अपनी मंशा दुनिया के सामने स्पष्ट करनी चाहिये। उन्होंने निर्वासित तिब्बती सरकार और तिब्बती समाज से अपील की है कि इस पहलू पर चीन का पूरी तरह से विरोध होना चाहिये। हिन्दुस्थान समाचार/सतेंद्र/सुनील

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