accountability-and-justice-are-vital-to-dealing-with-sexual-violence-in-conflict-situations
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संघर्ष स्थितियों में यौन हिंसा से निपटने के लिये जवाबदेही व न्याय बहुत अहम

संयुक्त राष्ट्र की एक वरिष्ठ अधिकारी प्रमिला पैटन ने बुधवार को सुरक्षा परिषद में कहा है कि महिलाओं के अधिकार मानवाधिकार हैं और युद्ध व शान्ति के समय में भी समान रूप से सार्वभौमिक हैं. उन्होंने राजदूतों से, संघर्ष और युद्ध सम्बन्धी यौन हिंसा के मामलों में जवाबदेही सुनिश्चित करने का आग्रह भी किया. प्रमिल पैटन, संघर्षों की स्थितियों में यौन हिंसा पर यूएन महासचिव की विशेष प्रतिनिधि हैं, और वो युद्ध में बलात्कार का एक हथियार के रूप में प्रयोग रोकने के लिये काम कर रही हैं. विशेष प्रतिनिधि प्रमिला पैटन ने, यौन हिंसा के पीड़ितों के लिये न्याय सुनिश्चित करने और भविष्य में ऐसी हिंसा को रोकने के एक साधन के रूप में, जवाबदेही मज़बूत करने के मुद्दे पर, बुधवार को सुरक्षा परिषद में हुई एक उच्चस्तरीय चर्चा को सम्बोधित किया. युद्ध का प्राचीनतम अपराध प्रमिल पैटन ने याद दिलाते हुए कहा कि सुरक्षा परिषद ने महिलाओं, शान्ति व सुरक्षा पर 10 प्रस्ताव पारित किये हैं, जिनमें से पाँच प्रस्ताव, संघर्षों सम्बन्धी यौन हिंसा की रोकथाम और उनसे निपटने पर केन्द्रित हैं. उन्होंने सवाल पेश किया कि उन घोषणाओं का इस समय यूक्रेन, अफ़ग़ानिस्तान, म्याँमार या इथियोपिया के उत्तरी क्षेत्र टीगरे की महिलाओं के लिये क्या अर्थ है. उन्होंने कहा, “युद्ध की हर एक नई लहर अपने साथ, मानव त्रासदी का एक बढ़ा हुआ प्रवाह लाती है, जिनमें युद्ध का सबसे पुराना, सबसे ज़्यादा ख़ामोश, और सबसे कम निन्दित अपराध भी शामिल है.” चिन्तनीय वृद्धि UN Photo/Loey Felipe संघर्ष की स्थिति में यौन हिंसा पर, यूएन महासचिव की विशेष प्रतिनिधि प्रमिला पैटन, महिलाएँ और शान्ति व सुरक्षा मुद्दे पर सुरक्षा परिषद की एक बैठक को सम्बोधित करते हुए. प्रमिला पैटन ने अपनी रिपोर्ट में बलात्कार व मानवाधिकार हनन के कुछ भयावह मामलों की जानकारी प्रस्तुत की है जिनमें दण्डमुक्ति का चलन भी सामने आया है. इस रिपोर्ट में 18 देशों के हालात का जायज़ा लिया गया और वर्ष 2021 में यूएन द्वारा पुष्ट 3 हज़ार 293 मामलों की जानकारी भी है. वर्ष 2020 की तुलना में ये संख्या 800 ज़्यादा है जोकि ख़ासी बड़ी वृद्धि दर्शाती है. इनमें ज़्यादातर मामलों यानि 97 प्रतिशत में महिलाओं और लड़कियों को निशाना बनाया गया, जबकि 83 मामलों में पुरुषों और लड़कों को निशाना बनाया गया, मुख्य रूप से बन्दीगृहों में. 12 मामलों में एलजीबीटीक्यूआई (LGBTQI) व्यक्तियों को निशाना बनाया गया. क़ानूनी कार्रवाई, रोकथाम के लिये ज़रूरी प्रमिला पैटन ने ध्यान दिलाया कि क़ानूनी कार्रवाई, किस तरह रोकथाम के एक साधन के रूप में अति महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे, इन अपराधों के लिये दण्डमुक्ति और भय मुक्ति के चलन को, निवारण का चलन बनाने में मदद मिल सकती है. उनका कहना था, “दण्डमुक्ति जहाँ हिंसा को सामान्य बनाती है, वहीं न्याय के ज़रिये वैश्विक मानक मज़बूत होते हैं. ये समय है जब जवाबदेही की तरफ़ बढ़ा जाए, और ये सुनिश्चित किया जाए कि आज के दस्तावेज़, कल के मुक़दमों का रूप लें.” न्याय और जवाबदेही नोबेल पुरस्कार विजेता नादिया मुराद, इराक़ के उत्तरी हिस्से में रहने वाले यज़ीदी समुदाय की उन हज़ारों महिलाओं में से एक हैं जिन्हें यौन दासिता के लिये बेचा गया, और 2014 में दाएश (ISIL) के आतंकवादियों ने जिनका बलात्कार किया. नादिया मुराद ने बताया कि तब से आठ वर्ष का समय बीत चुका है, अब भी लगभग 2,800 महिलाएँ व बच्चे, आतंकवादी गुट – दाएश के क़ब्ज़े में हैं. उन्होंने सुरक्षा परिषद में कहा कि न्याय सुनिश्चित करना, जवाबदेही का सबसे ज़्यादा नज़र आने वाला रूप है. उन्होंने गत वर्ष जर्मनी की एक अदालात द्वारा दाएश के एक लड़ाके को, जनसंहार का दोषी क़रार दिये जाने के ऐतिहासिक मामले का भी ज़िक्र किया. उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से और ज़्यादा कार्रवाई की उम्मीद भी ज़ाहिर की. कार्रवाई, ना कि दया नादिया मुराद ने कहा, “यौन हिंसा के भुक्तभोगी होने के नाते, हमारे लिये अपनी आपबीती सुनाना आसान नहीं होता. मगर हम ऐसा करते हैं ताकि अन्य लोगों के साथ ऐसा होने से रोका जा सके.” नादिया मुराद संयुक्त राष्ट्र के ड्रग्स व अपराध निरोधक कार्यालय (UNODC) की सदभावना दूत भी हैं. उनका कहना था, “हम सभी को बहुत बहादुर कहा जाता है, मगर कुछ ठोस कार्रवाई करने के लिये असली साहस तो हमें नेताओं में नज़र आना चाहिये, चाहे वो राष्ट्राध्यक्ष हैं, यहाँ संयुक्त राष्ट्र में सदस्य देश हैं, या कोर्पोरेट हस्ती हैं. हमें एक नैतिक अत्याचार नहीं, कार्रवाई की ज़रूरत है.” नादिया मुराद ने दाएश का मामला अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय को भेजने का भी आग्रह किया, या फिर ऐसा मिश्रित न्यायालय गठित किया जाए जो इस समूह के अपराधों के लिये मुक़दमे चलाए. उन्होंने अन्य देशों से भी जर्मनी के उदाहरण से सीख हासिल करने का आग्रह किया. ‘मुराद कोड’ सुरक्षा परिषद में चर्चा के दौरान नादिया मुराद ने, युद्ध में बलात्कार के सबूत एकत्र करने के लिये एक नया कार्यक्रम शुरू करने की भी घोषणा की. इसका नाम “मुराद कोड” है. मुराद कोड में पत्रकारों, जाँच-कर्ताओं, और अन्य पक्षों के लिये कुछ दिशा-निर्देशों का एक पुलिन्दा है जो पक्ष, संघर्ष व युद्ध सम्बन्धी यौन हिंसा की जाँच करते हैं और उसके दस्तावेज़ तैयार करते हैं. उन्होंने बताया कि मुराद कोड के दिशा-निर्देशों में, दुनिया भर से यौन हिंसा के भुक्तभोगियों के विचार शामिल किये गए हैं, और मक़सद – ज़्यादा गरिमा, समझदारी, पारदर्शिता, और घाव भरने को बढ़ावा देना है. मुराद कोड, ब्रिटेन से मिले धन की सहायता से विकसित किया गया है. ब्रिटेन ही अप्रैल महीने के लिये सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष देश भी है. ब्रिटेन के एक उप मंत्री लॉर्ड तारिक़ अहमद ने सुरक्षा परिषद में इस चर्चा की अध्यक्षता की. उन्होंने मुराद कोड को ग़ैर-सरकारी संगठनों (NGOs) सरकारी एजेंसियों और मानवाधिकार समूहों के लिये एक “स्वर्णिम मानक” बना देने का भी आहवान किया. उन्होंने कहा, “किसी भी जाँच पड़ताल में, पूरा ध्यान भुक्तभोगियों व पीड़ितों पर रखा जाना केवल एक विकल्प नहीं है. ऐसा तो हर जगह, सभी को करना चाहिये.” --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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