2020-the-concentration-of-greenhouse-gases-in-the-atmosphere-at-a-record-level
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2020: वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की सघनता रिकॉर्ड स्तर पर

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के एक नए अध्ययन ‘ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन’ के अनुसार, वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा पिछले साल रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गई और ये रुझान वर्ष 2021 में भी जारी है. वैश्विक तापमान में वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार इन गैसों की मात्रा में बढ़ोत्तरी की वार्षिक वृद्धि दर को, 2011-2020 के औसत से अधिक मापा गया है. यूएन मौसम विज्ञान एजेंसी के महानिदेशक पेटेरी टालस ने सचेत किया है कि ‘ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन’ के निष्कर्ष, यूएन के आगामी वार्षिक जलवायु सम्मेलन (कॉप26) से ठीक पहले एक कठोर, वैज्ञानिक सन्देश है. ये सम्मेलन स्कॉटलैण्ड के ग्लासगो शहर में हो रहा है. Greenhouse gas levels are at new records. Again Concentration of CO2 in 2020 was 149% of pre-industrial times Economic slowdown from COVID-19 had no real impact We are set for a 🌡️ increase much higher than #ParisAgreement target of 1.5°C-2°C.https://t.co/LQ5sVilzcE#COP26 pic.twitter.com/S0NHxa5jg9 — World Meteorological Organization (@WMO) October 25, 2021 “ग्रीनहाउस गैस सघनता में वृद्धि की मौजूदा दर से, हम इस सदी के अन्त तक, पैरिस समझौते के 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्यों से कहीं ज़्यादा तापमान बढ़ोत्तरी देखेंगे, पूर्व-औद्योगिक काल के स्तर की तुलना में.” यूएन एजेंसी प्रमुख ने चेतावनी जारी करते हुए कहा कि हम फ़िलहाल रास्ते से भटके हुए हैं. औद्योगिक काल से पहले के स्तर की तुलना में, वर्ष 2020 में कार्बन डाइऑक्साइड की सघनता, 149 प्रतिशत; मीथेन की 262 प्रतिशत; और नाइट्रस ऑक्साइड की मात्रा 123 प्रतिशत ऊपर आंकी गई है. कोरोनावायरस संकट के कारण आर्थिक सुस्ती से नए उत्सर्जनों में दर्ज की गई अस्थाई गिरावट के बावजूद, वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों के स्तर या उनकी वृद्धि दर में कोई ख़ास असर नहीं देखा गया. रिपोर्ट के मुताबिक़, उत्सर्जनों में वृद्धि के साथ-साथ, वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी भी जारी रहेगी. अगर उत्सर्जनों में तेज़ी से कमी लाते हुए नैट शून्य उत्सर्जन को प्राप्त भी कर लिया जाता है, तो भी कार्बन डाइऑक्साइड के जीवनकाल को ध्यान में रखते हुए, तापमान का मौजूदा स्तर अनेक दशकों तक बरक़रार रहने की सम्भावना है. बढ़ते तापमान से चरम मौसम की घटनाएँ बढ़ती हैं, जैसेकि प्रचण्ड गर्मी, मूसलाधार बारिश, समुद्री जलस्तर में वृद्धि और महासागर अम्लीकरण - इन सभी के गम्भीर सामाजिक-आर्थिक प्रभाव होंगे. मानवता के समक्ष चुनौती यूएन एजेंसी के महानिदेशक ने बताया कि पिछली बार, 30 से 50 लाख वर्ष पहले कार्बन डाइऑक्साइड की इस स्तर पर सघनता का अनुभव किया गया था. उस समय वैश्विक तापमान दो से तीन डिग्री सेल्सियस अधिक था और समुद्री जलस्तर भी मौजूदा स्तर की तुलना में 10 से 20 मीटर अधिक था. उन्होंने चिन्ता जताई कि उस काल में वैश्विक आबादी सात अरब 80 करोड़ नहीं थी, और यह मानवता के लिये एक बड़ी चुनौती है. बुलेटिन में आगाह किया गया है कि मानवीय गतिविधियों से उत्सर्जित कार्बन डाऑक्साइड की लगभग आधी मात्रा, वातावरण में बनी रहती है, जबकि शेष 50 फ़ीसदी महासागरों और भूमि के पारिस्थितिकी तंत्रों द्वारा सोख ली जाती है. मगर, मौजूदा रुझानों के मद्देनज़र, भूमि के पारिस्थितिकी तंत्रों और महासागरों द्वारा उत्सर्जनों को अवशोषित कर लेने की उनकी क्षमता पर असर पड़ सकता है. इससे भविष्य में तापमान बढ़ोत्तरी के विरुद्ध उनकी प्रतिरोधक क्षमता की कारगरता कम हो सकती है. बताया गया है कि अनेक देश अपने कार्बन तटस्थता लक्ष्यों को इस आशा के साथ स्थापित कर रहे हैं कि कॉप26 में इन संकल्पों में नाटकीय वृद्धि होगी. जलवायु कार्रवाई अहम यूएन एजेंसी प्रमुख पेटेरी टालास ने ज़ोर देकर कहा कि इन संकल्पों को कार्रवाई में परिवर्तित किये जाने की आवश्यकता है ताकि जलवायु परिवर्तन की वजह बनने वाली गैसों पर नियंत्रण किया जा सके. इस क्रम में औद्योगिक, ऊर्जा, परिवहन प्रणालियों और सम्पूर्ण मानवीय जीवनशैली की समीक्षा करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है. उन्होंने बताया कि दैनिक जीवन और स्वास्थ्य-कल्याण पर दुष्परिणामों के नज़रिये से कार्बन डाइऑक्साइड सबसे बड़ी चुनौती है, जिसके पृथ्वी और भावी पीढ़ियों के लिये गम्भीर परिणाम हो सकते हैं. नाइट्रस ऑक्साइड एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस होने के साथ-साथ, ओज़ोन परत को क्षति पहुँचाने वाला रसायन भी है. यह प्राकृतिक स्रोतों और मानवीय गतिविधियों से वातावरण में उत्सर्जित होता है, जैसेकि महासागर, जैविक ईंधन, उर्वरक का इस्तेमाल और अनेक औद्योगिक प्रक्रियाएँ. --संयुक्त राष्ट्र समाचार/UN News

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