गंगाजल में कोरोना के विषाणुओं के प्रदुभाव से मुक्ति देने की शक्ती है: अरुण कुमार
गंगाजल में कोरोना के विषाणुओं के प्रदुभाव से मुक्ति देने की शक्ती है: अरुण कुमार

गंगाजल में कोरोना के विषाणुओं के प्रदुभाव से मुक्ति देने की शक्ती है: अरुण कुमार

धनबाद, 12 जून (हि.स.) हिन्दू जनजागृति समिति के राष्टीय प्रवक्ता रमेश शिंदे ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि किस नदी में किस समय स्नान करने से उसका लाभ होता है, इसका संपूर्ण ज्ञान भारतीय ऋषी-मुनियों को था । इसलिए उन्होंने गहन अध्ययन कर गंगा नदी में पर्वस्नान करने हेतु बताया है । माघ मकर संक्रांति के पश्चात सूर्य मकर राशी में प्रवेश करता है । मकर रेखा प्रयागराज के सर्वाधिक निकट है । इसलिए इस समय गंगा नदी में पड़नेवाली सूर्यकिरणों में अतीनील किरणें सर्वाधिक होती है । उसका लाभ मिलकर स्नान करनेवालों की प्रतिकारक शक्ति बढती है । इस प्रकार नदी में स्नान करने की अवधारणा पाश्चात्त्यों में नहीं है । गंगाजल में ‘बॅक्टीरियोफेज’ नामक विषाणु है, वह श्वसनसंस्था पर आक्रमण करनेवाले कोरोना जैसे विविध जीवाणुऑनओं भी मारता है, ऐसा सिद्ध हुआ है । इसलिए ‘गंगाजल’ कोरोना जैसे विविध विषाणुओं के प्रादुर्भाव से मुक्ति देता है तथा रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाने के लिए उपयुक्त सिद्ध होता है, ऐसा अभ्यासपूर्ण निष्कर्ष उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त न्यायमित्र अधिवक्ता अरुण कुमार गुप्ता ने प्रस्तुत किया । वह हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा आयोजित ‘ऑनलाइन’ चर्चासत्र ‘महामारी और प्रदूषण पर उपाय: सनातन परंपरा’ में बोल रहे थे । यह विशेष ‘ऑनलाइन’ चर्चासत्र 11 जून को रात्रि 8 से 9.30 के मध्य आयोजित किया गया था। इस चर्चासत्र में हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळे, ‘ग्रीन इंडिया फाउंडेशन ट्रस्ट’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री. जगदीश चौधरी, हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर तथा सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस सहभागी हुए थे । हिन्दू जनजागृति समिति के देहली समन्वयक श्री. कार्तिक सालूखे ने चर्चासत्र का सूत्रसंचालन किया । अधिवक्ता गुप्ता आगे बोले कि, कुंभमेले में जब नदी में हिन्दूू सामूहिक स्नान करते हैं, तब एक हिन्दू के शरीर का प्रोटीन दूसरे के शरीर में प्रवेश करता है । इससे शरीर में विशिष्ट प्रक्रिया होकर हिन्दुुओं की रोगप्रतिकारशक्ति बढती है । यह बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के अध्ययन में सिद्ध हुआ है । ‘स्वदेशी और सस्ती वस्तुओं का उत्पादन’, ऐसा आवाहन प्रधानमंत्री ने किया है । गंगाजल औषधि होने के कारण उससे स्वदेशी और सस्ती औषधियों की निर्मिति सहज संभव है । इस अवसर पर अधिवक्ता अरुण कुमार गुप्ता ने मांग की कि, गंगाजल के औषधि गुणों का अध्ययन करने के लिए एक स्वतंत्र अध्ययन समिति गठित की जाए । बताया जा रहा है कि संचारबंदी के कारण नदियां बडी मात्रा में स्वच्छ हो गई है। परंतु इस स्वच्छता की तुलना हम 4-5 वर्षों पूर्व के प्रदूषण से कर रहे हैं । वर्ष 1947 अथवा उससे पूर्व नदियों की स्थिति का अध्ययन करने पर ध्यान में आता है कि यह प्रदूषण अत्यल्प है । यमुना नदी देहली में प्रवेश करने से पूर्व स्वच्छ है तथा देहली में बडी मात्रा में शहर का अपशिष्ट जल, कारखानों का प्रदूषित जल मिलने से वह प्रदूषित हो गई है । हमने पाश्चात्त्य संस्कृति का अनुसरण कर प्रकृति का पोषण करने के स्थान पर शोषण किया है । शोषण की यह प्रवृत्ति ही मानवी पतन के लिए उत्तरदायी सिद्ध हुई है, ऐसा मत ‘ग्रीन इंडिया फाउंडेशन ट्रस्ट’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री. जगदीश चौधरी ने इस चर्चासत्र में प्रस्तुत किया । कारखानों से किसी प्रकार की प्रक्रिया किए बिना रसायनयुक्त दूषित जल सीधे नदी में छोड़ा जाता है । अधिकांश शहरों और गांवों से बिना किसी प्रक्रिया के अपशिष्ट जल सीधे नदी में छोड़ा जाता है । यही रसायनयुक्त दूषित जल और अपशिष्ट जल, नदी प्रदूषण के लिए उत्तरदायी प्रमुख घटक हैं । ऐसा होते हुए भी अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति जैसे संगठन महाराष्ट्र में कुप्रचार कर रहे हैं कि ‘केवल गणेश मूर्ति विसर्जन के कारण जलप्रदूषण होता है ।’दुर्भाग्यवश हिन्दुओं के मन में अनुचित मानसिकता उत्पन्न हो रही है कि वे जलप्रदूषण में सहयोग कर रहे हैं, ऐसा उद्वेग अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने इस समय व्यक्त किया। आज जागतिक स्तर पर उत्पन्न समस्याएं मुख्यतः पाश्चात्य भोगवादी विचारधारा के कारण उत्पन्न हुई हैं । इन समस्याआें के कारण पर्यावरण की हानि होने से अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस मनाने का समय आ गया है । इससे मुक्त होने के लिए भारतीय प्राचीन ऋषि-मुनियों की परंपराआें की ओर हमें मुडना पडेगा । हमें अपनी ग्रामव्यवस्था, संस्कृति समृद्ध करनी पडेगी, ऐसा प्रतिपादन हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगल्लेजी ने इस अवसर पर किया । सनातन धर्म सदैव ही पर्यावरणपूरक रहा है । पाश्चात्त्यों का हस्तांदोलन, मांसाहार आदि अयोग्य प्रथाएं छोडकर वे अब नमस्कार, शाकाहार, अग्निसंस्कार आदि बातों की ओर मुड रहे हैं । भारतीयों के विविध आहार और आचार पद्धति आज पाश्चात्त्यों को आकर्षित कर रही हैं। रोगों से बचने के लिए तथा वातावरण की शुद्धि के लिए प्रतिदिन ‘अग्निहोत्र’ करने की अवधारणा भी भारतीय संस्कृति में है । ‘अग्निहोत्र’ के कारण उत्पन्न होनेवाला सूक्ष्म सुरक्षा कवच में किरणोत्सर्ग से भी सुरक्षा करने का सामर्थ्य भी है । इसलिए संसार के लिए आज केवल हिन्दू संस्कृति ही आशा की किरण है, यह कहते हुए हिन्दू संस्कृतिनुसार आचरण करने का आवाहन सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस ने इस अवसर पर किया। इस ऑनलाइन विशेष चर्चासत्र का प्रसारण फेसबुक, यू ट्यूब लिंक द्वारा किया गया । इसके द्वारा 74 सहस्र से अधिक लोगों तक यह विषय पहुंचा तथा 31 सहस्र से अधिक लोगों ने यह चर्चासत्र देखा। हिन्दुस्थान समाचार / बिमल चक्रवर्ती /सबा एकबाल-hindusthansamachar.in

Related Stories

No stories found.
Raftaar | रफ्तार
raftaar.in