नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क। संगीत की दुनिया में मोहम्मद रफ़ी का नाम अमर है। एक समय था जब रफी साहब के गाने के बिना फिल्मों की अपेक्षा ही नहीं की जा सकती थी। रफी साहब के गाने के सब दीवाने थे। मोहम्मद रफी के सदाबहार गाने आज भी लोगों की जुबान पर रहते हैं। 24 दिसंबर 1924 को मोहम्मद रफी का जन्म हुआ था और अपनी गायिकी का जादू बिखेरने वाले मोहम्मद रफी साहब का 31 जुलाई 1980 को महज 55 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था।
सुरीली आवाज का बिखेरा जलवा
24 दिसंबर 1924 को अमृतसर के कोटला सुल्तान सिंह गांव में जन्मे मोहम्मद रफ़ी छह भाई-बहनों में दूसरे सबसे बड़े बेटे थे। जब रफ़ी नौ साल के थे, तब उनका पूरा परिवार अमृतसर से लाहौर आ गया। मोहम्मद रफ़ी के बड़े भाई की नाई की दुकान थी। पढ़ाई में रुचि न होने के कारण रफी छोटी उम्र से ही अपने भाई की दुकान में मदद करते थे। उसी समय, 1933 में, संगीतकार पंडित जीवनलाल रफ़ी के हेयरड्रेसिंग सैलून में आ गए। जब बाल काटते समय लाल रफ़ी को सुरीली आवाज़ में गाते हुए सुना तो वह उनकी गायकी के दीवाने हो गए।
बिजली कटने से बदली किस्मत
रफ़ी को एक रेडियो स्टेशन के ऑडिशन के लिए आमंत्रित किया गया था, जिसे उन्होंने आसानी से पास कर लिया। वह जीवन लाल ही थे जिन्होंने रफ़ी को गायन की शिक्षा दी और रेडियो के लिए गीतों को आवाज़ देना शुरू किया। 1937 में रफी की किस्मत तब बदल गई। जब मशहूर गायक कुंदनलाल सहगल ने बिजली की कमी के कारण मंच पर गाने से इनकार कर दिया।
यह लड़का एक महान कलाकार बनेगा
कार्यक्रम के आयोजकों ने तत्कालीन 13 वर्षीय रफी को गाने का मौका दिया। हॉल में रफी की आवाज सुनकर के.एल. सहगल को एहसास हुआ कि यह लड़का एक महान कलाकार बनेगा। के.एल. की बात सच निकली। अभिनेता और निर्माता नज़ीर मोहम्मद ने रफ़ी को बॉम्बे का 100 रुपये का टिकट भेजा। रफी बंबई पहुंचे और पहली बार हिंदी फिल्म पहले आप के लिए ‘हिंदुस्तान के हम हैं, हिंदुस्तान हमारा ’गाना रिकॉर्ड किया। फिर क्या था, समय बीतता चला गया और रफी देश के साथ ही विदेशों में भी मशहूर होते चले गए।
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