स्मृतियों में अमर हैं ‘जोहरा सहगल’
ब्रजेश कुमार नई दिल्ली, 27 अप्रैल (हि.स.)। यह किस्सा 27 अप्रैल, 2017 का है। गूगल ने एक डूडल तैयार किया, जो पूरे दिन उसके होम-पेज पर तैरता रहा। वह डूडल मशहूर अदाकारा जोहरा सहगल का था। खास बात यह है कि गूगल को जानकारी थी कि 27 अप्रैल जोहरा के जन्म की तारीख है। अब इससे ही कोई दुनिया में उनकी लोकप्रियता का अंदाजा लगा सकता है। सन् 1912 में पैदा हुईं जोहरा ने एक बातचीत में खुद कहा था- ‘हम रोहिल्ला हैं।’ आगे कहा था, “हमारे बाप-दादा रामपुर में आकर बस गए थे।” जोहरा का जन्म उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में हुआ था। वालिदा की इच्छा की थी कि बेटियां पढ़े-लिखे। इसलिए बच्चियों को पढ़ने के लिए लाहौर ‘क्वींस मैरी स्कूल’। मैट्रिक करने के बाद जोहरा जर्मनी चली गईं और नृत्य की एक अलग विधा में स्वयं को पारंगत किया। वहीं से अभिनय की दुनिया में दाखिल हो गईं। एक बार जर्मनी में ही उन्हें भारतीय नर्तक कलाकार उदय शंकर का नृत्य देखा। उस नृत्य से जोहरा इतनी प्रभावित हुईं कि जीवन की दिशा ही बदल गई। वे उदय शंकर के नृत्य मंडली में शामिल हो गईं। इसी सफर में वे अल्मोड़ा पहुंची, जहां उनकी मुलाकात चित्रकार और नर्तक कामेश्वर सहगल से हुई। बाद में उन्होंने कामेश्वर सहगल से विवाह कर लिया। फिर लाहौर जाकर एक थियेटर स्कूल खोला। लेकिन, वे दिन अशांति के थे। जोहरा स्कूल बंद कर अपने पति कामेश्वर सहगल के साथ बंबई (मुंबई) आ गईं। यहां 1945 में पृथ्वी थिएटर से जुड़ गईं। फिर करीबन 15 साल तक इससे जुड़ी रहीं। कामेश्वर के निधन के बाद उन्होंने मुंबई छोड़ दिया और दिल्ली आ गईं। इस बीच एक और घटना हुई। सन् 1946 में जोहरा सहगल की फ़िल्म 'नीचा नगर' कान फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित हुई। इस फिल्म ने जोहरा को सिनेमाई दुनिया में स्थापित कर दिया था। दिल्ली में भारतीय नाट्य अकादमी से जुड़ीं। उन्होंने दुनिया के तमाम नाट्यकला का अध्ययन किया। इसके लिए लंबे समय तक यानी कुल 22 साल विदेशों में रहीं। उन्होंने लंबी उम्र पाई। 102 साल का सफल जीवन जीया और सन् 2014 में दुनिया को अलविदा कह दिया। जीवन के आखिरी वक्त में उन्हें शारीरिक रूप से खड़े होने में थोड़ी तकलीफ़ होती थी, पर अपने काम पर उसका कोई असर आने नहीं दिया। खूब मजे के साथ वे काम करती थीं। यह सच है कि जोहरा सहगल को हिन्दी सिनेमा ने अधिक पहचान दिलाई, लेकिन उनकी पहली मोहब्बत थिएटर थी। अपने लंबे जीवन में उन्होंने कई बार जीवन को बदलते देखा, लेकिन पीछे नहीं लौटीं। आगे ही बढ़ती गईं। अपने जीवन से उन्हें संतोष था। वे क्रिकेट मैच बड़े चाव से देखती थीं। हालांकि, कोई ऐसा क्रिकेटर नहीं था, जो उन्हें विशेष तौर पर पसंद हो। वे खेल को पसंद करती थीं। खाने का खूब शौक रखती थीं। एक जगह बातचीत में उनकी बेटी किरण ने कहा है कि जब घर पर कोई मेहमान आते तो वे फौरन पकौड़े बनाने को कहतीं और परोसे जाने पर मेहमानों से ज्यादा खुद ही खा लिया करती थीं। जोहरा को पहचानने वाले कहते हैं कि उन्होंने कभी जोहरा को निराश नहीं देखा। हमेशा खिलखिलाती रहती हैं। वे इस बात में विश्वास करती थीं कि हमेशा सक्रिय रहो। उनका खिलखिलाता चेहरा अब भी हमसब के बीच जिंद है। सच कहें तो जोहरा सहगल हमारी स्मृति में अमर हैं। आज उनका 109वां जन्मदिन है। हिन्दुस्थान समाचार