निःस्वार्थ रक्तदान करना खाते में कुछ डालने जैसा : डॉ घोष
निःस्वार्थ रक्तदान करना खाते में कुछ डालने जैसा : डॉ घोष

निःस्वार्थ रक्तदान करना खाते में कुछ डालने जैसा : डॉ घोष

प्रयागराज, 14 जून (हि.स)। विश्व रक्तदान दिवस के उपलक्ष्य में रविवार को राष्ट्रीय सेवा योजना इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा रक्तदान जागरूकता सम्बंधित वेबीनार संगोष्ठी में डॉ. राधा रानी घोष ने कहा कि निःस्वार्थ रक्तदान करना खाते में कुछ डालने जैसा है। कुछ देंगे तभी तो वापस मिलेगा। रक्तदान से भारत में सुरक्षित खून की उपलब्धता हमेशा से चिंता का विषय रही है। कमला नेहरू मेमोरियल हॉस्पिटल की सीनियर कंसल्टेंट ऑंकोलॉजी व इलाहाबाद मेडिकल एसोसिएशन की अध्यक्षा डॉ. राधा रानी घोष ने कहा इविवि एनएसएस के युवाओं ने प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में रक्तदान शिविर में रक्तदान कर मानवता का परिचय दिया है। विद्यार्थियों द्वारा कोविड के दौरान सिर्फ प्लाज्मा दान करने के प्रश्न करने पर बताया कि एक यूनिट रक्त से चार जीवन बचाए जा सकते हैं व सिर्फ प्लाज्मा भी दान किया जा सकता है। कोविड-19 ने रक्तदान और खून चढ़ाने के चलन के बीच के अंतर को और गहरा कर दिया है। मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज पैथालॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. वत्सला मिश्रा ने कहा कि स्वेच्छा से रक्तदान दुर्लभ होता जा रहा है। कुछ मामलों में मरीजों को स्वेच्छा से रक्तदान और किसी और का खून चढ़ाए जाने के कारण संक्रमण के जोखिम को कम करने के लिए होने वाले न्यूक्लिक एसिड टेस्टिंग (एनएटी) जैसी खून चढ़ाने की सुरक्षित प्रक्रियाओं से हटकर लॉकडाउन के कारण मजबूरन पुरानी रक्त परीक्षण प्रणाली को अपनाना पड़ रहा है और 125 यूनिट रक्त एसआरएन हॉस्पिटल में इसी प्रकार जमा किया गया है। यह स्थिति उन मरीजों के लिए और मुश्किल है जिनमें बार-बार खून चढ़ाने की वजह से संक्रमण फैलने का जोखिम रहता है और निश्चित तौर पर खून की गुणवत्ता को लेकर चिंतित होने की यह बड़ी वजह है। डॉ. मंजू सिंह कार्यक्रम समन्वयक ने बताया कि विश्व रक्तदाता दिवस “सुरक्षित खून जिंदगियां बचाता है’ विषय पर केंद्रित है और पर्याप्त संसधान मुहैया कराने तथा स्वेच्छा से गैर पारिश्रमिक दाताओं से रक्त संचय बढ़ाने की व्यवस्था एवं ढांचे को स्थापित करने के लिए कदम उठाने की अपील करता है। डॉ. अपूर्व ने बताया कि कोरोना वायरस वैश्विक महामारी खत्म होने के बाद भारत को बीमारी के प्रसार को बचाने के लिए बेहतर जांच अभ्यासों को अपनाना होगा क्योंकि यह विश्व में थेलेसीमिया से सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक है। किंतु 18 वर्ष से अधिक के युवाओं को रक्तदान के लिए सकारात्मक सोच के साथ स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए दिनचर्या में बदलाव करने होंगे। डॉ. अशोक श्रोती ने कहा कि उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में एनएसएस के कई स्वयंसेवक स्वेच्छा से रक्तदान कर रहे हैं। रक्तदान महादान है, क्योंकि अभी तक कृत्रिम रक्त का निर्माण नहीं हो सका है। डॉ. अंशुमालि शर्मा ने युवाओं को सेवा के इस सुअवसर पर रक्तदान के लिए पहल करने के लिए प्रेरित किया। हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/दीपक/संजय-hindusthansamachar.in

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