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आग की लपटों में घिरे झारखंड के झरिया शहर की उम्मीदें संशोधित मास्टर प्लान पर टिकीं, केंद्र में मंथन जारी

रांची, 3 नवंबर (आईएएनएस)। झारखंड के झरिया की भूमिगत कोयला खदानों में दशकों से आग धधक रही है। अंदर से खोखली हो चुकी जमीन पर एक बड़ी आबादी आज भी टिकी है। भूमिगत आग पर काबू पाने और लोगों को मौत के मुहाने से हटाकर सुरक्षित जगहों पर बसाने के लिए 2009 में लागू हुए मास्टर प्लान की मियाद 2021 के अगस्त महीने में खत्म हो गयी है। इस मास्टर प्लान पर केंद्र और राज्य दोनों की साझेदारी से काम चल रहा था, लेकिन निर्धारित लक्ष्य पूरे नहीं किये जा सके। केंद्र सरकार में अब संशोधित मास्टर प्लान पर गंभीर मंथन चल रहा है। पिछले महीने केंद्र की एक टीम ने झरिया इलाके का दौरा किया था। पिछले हफ्ते नयी दिल्ली में कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी की अध्यक्षता में हुई कोयला मंत्रालय संसदीय सलाहकार समिति की बैठक में झरिया के लिए संशोधित मास्टर प्लान के प्रारूप पर भी चर्चा हुई है। बता दें कि केंद्र की मंजूरी के बाद 11 अगस्त 2009 को झरिया के लिए जो मास्टर प्लान लागू हुआ था। इसके मुताबिक भूमिगत खदानों में लगी आग को नियंत्रित करने के साथ-साथ 12 साल यानी अगस्त 2021 तक अग्नि प्रभावित क्षेत्रों में रह रहे लोगों के लिए दूसरी जगहों पर आवास बनाकर उन्हें स्थानांतरित कर दिया जाना था, लेकिन अब तक ये दोनों ही लक्ष्य पूरे नहीं हो पाये हैं। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार को इस मास्टर प्लान को लेकर सौंपी गयी मूल्यांकन रिपोर्ट में बताया गया है कि फायर कंट्रोल के लिए किये गये उपायों के परिणाम स्वरूप अग्नि प्रभावित क्षेत्र का दायरा काफी कम हो गया है। 2021 में किये गये सर्वेक्षण के अनुसार भूमिगत आग का दायरा 17.32 वर्ग किलोमीटर से घटकर 1.8 वर्ग किलोमीटर रह गया है। मास्टर प्लान जब लागू हुआ था, तब70 साइटों पर फायर प्रोजेक्ट शुरू किया गया था। अब ऐसे साइटों की संख्या 17 रह गयी है। मास्टर प्लान में अग्नि प्रभावित क्षेत्रों में रहनेवाले रैयतों, भारत कोकिंग कोल लिमिटेड बीसीसीएल के कामगारों और कोलियरी की जमीनों पर अवैध रूप से कब्जा कर रह रहे लोगों के पुनर्वास की योजना थी, जिन्हें दूसरी जगहों पर स्थानांतरिक किया जाना था, उनके लिए 2004 का कट ऑफ डेट तय किया गया था। यानी इस वर्ष तक हुए सर्वे के अनुसार जो लोग यहां रह रहे थे, उन्हें दूसरी जगहों पर आवास दिये जाने थे। इस सर्वे में कुल 54 हजार परिवार चिन्हित किये गये थे, लेकिन 12 वर्षों में इनमें से बमुश्किल 4000 परिवारों को ही दूसरी जगह बसाया जा सका है। इस बीच 2019 में कराये गये सर्वे में पता चला कि अग्नि और भू-धंसान प्रभावित क्षेत्रों में रह रहे परिवारों की संख्या बढ़कर 1 लाख 4 हजार हो गयी है। बीसीसीएल कर्मियों के पुनर्वास की जिम्मेदारी कंपनी ने उठायी है, जबकि रैयतों और गैर-रैयतोंको स्थानांतरित कर दूसरी जगह बसाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। राज्य सरकार ने इस योजना को जमीन पर उतारने के लिए झरिया रिहैब्लिटेशन एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (जेआरडीए) का गठन किया था। जेआरडीए ने 18352 घरों का निर्माण शुरू किया है, जिनमें से 6352 पूरे हो चुके हैं और बाकी अगस्त 2022 तक पूरे हो जाएंगे। इधर, बीसीसीएल ने 15,852 घरों का निर्माण किया है, जहां लोगों को स्थानांतरित करने का काम जारी है। बहरहाल, 2009 में लागू हुए मास्टर प्लान की मियाद खत्म होने के बाद नये संशोधित मास्टर प्लान से जुड़े प्रस्तावों पर पीएमओ सहित केंद्र के विभिन्न मंत्रालयों में मंथन चल रहा है। पिछले महीने केंद्र की एक टीम ने झरिया की विभिन्न कोयला खदानों का दौरा किया था। इस टीम ने झरिया की बेलगड़िया अलकुसा, लोयाबाद, गोधर का दौरान किया और स्थानीय अधिकारियों के साथ मीटिंग भी की।टीम ने अग्नि प्रभावित क्षेत्रों में रह रहे लोगों की समस्याएं भी सुनीं। इस केंद्रीय टीम में कृष्णा वत्स, हुकुम सिंह मीणा, शेखर शरण और आरएम भट्टाचार्य शामिल थे। बताया जा रहा है कि इस टीम की रिपोर्ट और इलाके के तकनीकी एवं भौगोलिक सर्वे की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र और राज्य की सरकारें आगे कदम उठायेंगी। उम्मीद की जा रही है कि संशोधित मास्टर प्लान की घोषणा के बाद आग की लपटों के बीच झुलस रही झरिया को नयी जिंदगी मिलेगी। --आईएएनएस एसएनसी/आरजेएस

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