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नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में आजीवन कारावास की सजा को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

नई दिल्ली, 13 मई (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 376डीबी की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा है, जो दोषी के शेष प्राकृतिक जीवन के लिए न्यूनतम सजा के रूप में आजीवन कारावास का निर्धारण करती है। अधिवक्ता गौरव अग्रवाल के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, यह प्रस्तुत किया गया है कि प्राकृतिक जीवन के लिए आजीवन कारावास 40 साल या 50 साल की कैद (या इससे भी अधिक) की एक बहुत लंबी सजा हो सकती है। उक्त सजा अपराधी के खिलाफ आरोपित अपराध की प्रकृति को देखते हुए पूरी तरह से असंगत है। इसने यह भी तर्क दिया कि धारा 376डीबी के तहत अपराध के लिए इस तरह की आजीवन कारावास की सजा असंवैधानिक है, क्योंकि यह व्यक्ति के सुधार की संभावना को पूरी तरह से समाप्त कर देती है। याचिका निखिल शिवाजी गोलैत द्वारा दायर की गई है, जिन्हें आईपीसी की धारा 376डीबी के तहत दोषी ठहराया गया था और बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इसमें कहा गया है, आईपीसी की धारा 376डीबी के तहत दी गई सजा संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है, क्योंकि सजा आनुपातिक नहीं है और यह पूरी तरह से दोषी की उपेक्षा करती है। दलीलें सुनने के बाद जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और सूर्यकांत की पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी किया। याचिका में कहा गया है कि आईपीसी की धारा 376एबी के तहत 12 साल से कम उम्र की लड़की से दुष्कर्म के दोषी व्यक्ति को अधिकतम 20 साल कैद की सजा दी जाती है। इसमें आगे कहा गया है, 12 साल से कम उम्र की नाबालिग लड़की के दुष्कर्म के अपराध में केवल 2 व्यक्ति शामिल हैं और आईपीसी के 376डीबी के तहत जो सजा दी गई है, वह पूरी तरह से अनुपातहीन है। इसके साथ ही याचिका में 40 या 50 साल तक जेल के अंदर रहने को लेकर भी सवाल उठाया गया है। याचिका में तर्क दिया गया है कि एक नाबालिग लड़की से दुष्कर्म के दोषी व्यक्ति के कई मामलों में, अदालतों ने उनकी मौत की सजा को उम्रकैद में बदला है, जो 20, 25 या 30 साल तक चलती है। हालांकि, आईपीसी की धारा 376डीबी में कहा गया है कि दोषी को पूरे जीवन के लिए हिरासत में रहना होगा - जो या तो 50 साल या 60 साल या उससे भी अधिक हो सकती है - जो अपराधी को सजा के प्रावधानों पर खरा नहीं उतरती है और यह सजा को असंवैधानिक बनाता है। --आईएएनएस एकेके/एएनएम

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