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दिल्ली हाईकोर्ट में रिप्रजेंटेशन पेश, कहा गया : जेलों में सोशल डिस्टेंसिंग संभव नहीं

नई दिल्ली, 17 फरवरी (आईएएनएस)। दिल्ली के एक वकील ने देश की जेलों में भीड़भाड़ के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में दस्तक दी है। उनके पेश किए रिप्रजेंटेशन में कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी की जेलों में क्षमता से 80 फीसदी अधिक कैदी हैं और वहां शारीरिक दूरी संभव नहीं है। यह बताते हुए कि दिल्ली की जेलें महामारी से बेहद प्रभावित हुई हैं, अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दिए गए रिप्रजेंटेशन में कहा गया है कि सोशल डिस्टेंसिंग उन कक्षों या बैरक में बनाए रखने की जरूरत है, जहां कैदी बंद हैं। हालांकि, लगभग 4,000 कैदियों को अंतरिम जमानत या आपातकालीन पैरोल पर रिहा करने के बावजूद दिल्ली की जेलों में अभी भी भीड़भाड़ है और इस समय लगभग 14,000 कैदी दिल्ली की जेलों में बंद हैं। इन कैदियों के आत्मसमर्पण करने की स्थिति में तिहाड़ जेल में स्थिति और खराब हो सकती है और इसका कैदियों व जेल प्रशासन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। दिल्ली के मुख्य न्यायाधीश, केंद्र और दिल्ली सरकार व जेलों के डीजी को भेजे गए रिप्रजेंटेशन में कहा गया है कि 60 वर्ष से अधिक उम्र की महिला और ट्रांसजेंडर कैदियों, 65 वर्ष से अधिक उम्र के पुरुष कैदियों और विकलांग कैदियों (आजीवन दोषियों को छोड़कर) की समयपूर्व रिहाई पर विचार किया जा सकता है। ऑल इंडिया कमेटी ऑन जेल रिफॉर्म्स (मुल्ला कमेटी 1980-83) और मॉडल जेल मैनुअल - 2003 की सिफारिशों के संदर्भ में और ऐसे कैदियों को उनकी वास्तविक सजा (छूट सहित) का एक तिहाई हिस्सा पूरा होने के बाद रिहा किया जाना चाहिए। रिप्रजेंटेशन में कहा गया है कि मुल्ला समिति (1980-83) और मॉडल जेल मैनुअल-2003 की सिफारिशों के बावजूद समाज की रक्षा के समग्र उद्देश्य और बुनियादी जरूरतों और प्रावधानों के विशेष संदर्भ में अपराधियों के पुनर्वास के समग्र उद्देश्य को ध्यान में रखा जाना चाहिए। जेल कल्याण के व्यापक परिप्रेक्ष्य में जीवन की गरिमा के अनुकूल सुविधाओं और महिलाओं, वृद्धों और विकलांग कैदियों के विशेष उपचार के लिए की गई सिफारिशों के अनुसार, ऐसी सिफारिशें राष्ट्रीय राजधानी की जेलों द्वारा लागू नहीं की जाती हैं। --आईएएनएस एसजीके/एएनएम

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