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बिल्डर भगतानी की लूट : दस साल बाद भी भुक्तभोगियों को नहीं मिला पैसा

मुम्बई, 24 अप्रैल (आईएएनएस)। करीब 10 साल पहले मुंबई के एक बिल्डर ने 2,500 लोगों को 427 करोड़ रुपये से अधिक का चूना लगाया लेकिन इतने साल बाद भी ये पीड़ित अपने खून- पसीने की कमाई की वसूली के लिये दर-दर भटकने को मजबूर हैं। यह कहानी है रियल्टी कंपनी जेवीपीडी प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड और जेसी होम्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशकों 70 वर्षीय लक्ष्मण भगतानी और उसके बेटे दीपेश और मुकेश की। पीड़ितों के अनुसार, वर्ष 2012-2013 के बीच, उन्होंने कंपनी की मुंबई, ठाणे और नवी मुंबई की आवासीय परियोजनाओं में 1 बीएचके या 2 बीएचके फ्लैट के लिये लगभग 427 करोड़ रुपये का आंशिक या पूर्ण भुगतान लिया। भगतानी निर्माण कार्य शुरू करने और समय पर निर्माण पूरा करने की अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में विफल रहे। तब से अब तक ब्याज और कर को मिलाकर कुल राशि लगभग 1,000 करोड़ रुपये हो गई है। वर्ष 2017 के आसपास, बिल्डरों ने संभावित फ्लैट खरीदारों को सूचित किया कि कानूनों में बदलाव होने के कारण वे परियोजना के पूरा होने के समय का अनुमान नहीं लगा सके और उन्होंने इसे रद्द करने का संकेत दिया। कंपनी ने खरीदारों को अन्य परियोजनाओं में स्थानांतरित करने का विकल्प दिया, जिनकी लागत अधिक थी। कंपनी ने कहा कि यदि खरीदार अपने निवेश की वापसी चाहते हैं तो उन्हें पोस्ट-डेटेड चेक या 2-3 साल के बाद ऑनलाइन भुगतान किया जायेगा। रिफंड चाहने वाले खरीदारों में कुछ को निवेश राशि की 2 से 3 प्रतिशत रकम मिली, लेकिन बिल्डरों के चेक बाउंस हो गये और कोई ऑनलाइन भुगतान प्राप्त नहीं हुआ। इस पर खरीदारों ने न्याय की मांग करते हुये मुंबई पुलिस, आर्थिक अपराध शाखा और अन्य विभागों में अपनी शिकायत दर्ज करायी। दिसंबर 2017 में, दीपेश भगतानी ने सभी निवेशकों की एक बैठक बुलाई और भुगतान के लिये 1-2 साल का समय मांगा। दीपेश ने यह दावा किया कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसकी अनुमति नहीं दी है। कंपनी अदालत के निर्देश के बावजूद 22 करोड़ रुपये जमा करने में भी विफल रही। अगले महीने जनवरी 2018 में दीपेश भगतानी को ईओडब्ल्यू ने गिरफ्तार कर लिया और वह 19 महीने तक जेल में बंद रहा जबकि उसके पिता और भाई कानून से बचने में कामयाब रहे। इस बीच 2018 के मध्य में कम से कम नौ मामलों में बढ़ते शिकंजे को देखते हुये लक्ष्मण भगतानी और उसका दूसरा बेटा मुकेश भगतानी देश छोड़कर भाग गया। इंटरपोल ने नवंबर 2018 में उनके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया। इसी नोटिस के आधार पर पिता-पुत्र की यह जोड़ी जुलाई 2020 में दुबई में कोविड-19 महामारी के पहले चरण के दौरान पकड़ी गयी। ईओडब्ल्यू ने भगतानी परिवार और उसकी कंपनियों के 125 बैंक खातों को सील कर दिया तथा कम से कम चार संपत्तियों की कुर्की के आदेश दिये। दुबई से पिता-पुत्र की जोड़ी को भारत प्रत्यर्पित करने के लिये ईओडब्ल्यू ने कार्यवाही शुरू की लेकिन इस मामले की वर्तमान स्थिति की जानकारी अभी उपलब्ध नहीं है। इस धोखाधड़ी के शिकार हुये सैंकड़ों लोग मुंबई पुलिस, ईओडब्ल्यू, मजिस्ट्रेट, सत्र न्यायालयों और बॉम्बे हाईकोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं ताकि उनकी गाढ़ी कमाई उन्हें वापस मिल सके। एक निवेशक ने कहा, 2020 तक, कुल देय राशि 880 करोड़ रुपये से अधिक हो गई थी। आज, यह रकम 1,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गयी है। हमारे पास उम्मीद और इंतजार के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। पिछले 10 वर्षों में कई निवेशकों को दिल के दौरे या अन्य गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ा, कुछ ने दम तोड़ दिया, कई उस घर के लिये बैंक ऋण की किस्तें चुकाने में जुटे हैं, जो उन्हें कभी नसीब ही नहीं हुआ। कुछ बदकिस्मत लोगों को एक तरह से सड़कों पर रहना पड़ा या उन्हें किराये के घरों से बाहर फेंक दिया गया और कुछ झुग्गियों में रहने को मजबूर हो गये क्योंकि उनके पास ऋण चुकाने के लिये कोई संसाधन नहीं था। इन खरीदारों ने न्याय के लिये अधिकारियों और जनता का ध्यान आकर्षित करने के लिये सोशल मीडिया पर समूह बनाये लेकिन अभी उनके संघर्ष की अंधेरी लंबी सुरंग के अंत में कोई रोशनी की झलक दिखाई नहीं दे रही है। --आईएएनएस एकेएस/एसकेपी

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