नई दिल्ली (अर्पित शुक्ला)। महाराष्ट्र की सियासत में मंगलवार का दिन बेहद ही खास हो गया जब पीएम नरेंद्र मोदी के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने मंच साझा किया। मौका था पीएम मोदी के तिलक पुरस्कार से सम्मानित होने का। यह मौका इसलिए भी खास है क्योंकि पीएम मोदी से शरद पवार की यह मुलाकात राकांपा की फूट के बाद हुई है। मंच पर उनके भतीजे और राकांपा के वरिष्ठ नेता अजित पवार भी मौजूद रहे। इसलिए ना सिर्फ महाराष्ट्र की सियायत बल्कि देश की सियायत में यह चर्चा का विषय बन गया है कि आखिरी महाराष्ट्र की राजनीति में चल क्या रहा है।
सरकार के मंच पर पवार की मौजूदगी
महाराष्ट्र की बदली सियासत में महाविकास अघाड़ी जिसमें कांग्रेस, शिवसेना और राकांपा की सरकार गिर जाने के बाद यहां पर नई सरकार चल रही है। नई सरकार में भाजपा मुख्य केंद्र में है जिसको साथ मिला है शिवसेना (शिंदे गुट), राकंपा (अजित पवार) का। इसलिए कुल मिला कर सरकार (विपक्ष की पार्टियों के द्वारा बनाई गई) के मंच पर पवार की मौजूदगी ही यहां पर चर्चा और आकर्षण का केंद्र बन रही है।
क्या है चर्चा का विषय?
बता दें कि महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी की सरकार के गिर जाने के बाद से भाजपा ने वहां पर शिवसेना के एक गुट के साथ मिलकर सरकार बनाई। इसके बाद यहां पर एक और सियासी अपडेट तब आया जब राकंपा में भी फूट सामने आई और अजित पवार ने अपने को राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर शरद पवार को आराम करने की सलाह दी। इसके बाद से ही शरद पवार पार्टी को फूट से बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे मौके पर अजित पवार के साथ भाजपा की सरकार के मंच पर पीएम मोदी के साथ आना एक मायने में नई सियासत का संदेश देता नजर आ रहा है।
क्या है शरद पवार की राजनीति?
शरद पवार को जानने वाले कई वरिष्ठ पत्रकार यह बताते हैं कि यही शरद दादा की राजनीति का स्टाइल है। वह पार्टी में फूट के बावजूद भी अजित पवार के साथ नरम आ रहे हैं। इससे यह संदेश जा रहा है कि वह दो नाव की सवारी कर रहे हैं। वहीं भाजपा के साथ उनकी करीबी पहले से लोग जानते हैं। राजनीति के मोड़ पर पवार भाजपा के साथ भी नजर आ चुके हैं। हालांकि अभी वह 'इंडिया' के साथ नजर आ रहे हैं। 'इंडिया' के गठबंधन के साथ वह सभी विपक्षी पार्टियों की हुई हालिया बैठक में पटना के बाद बेंगुलरु में मिशन 2024 के लिए प्लानिंग करते नजर आए हैं। इधर यह भी खबर है कि 'इंडिया' गठबंधन की पार्टियां पवार के मंच साझा करने से नाराज भी हैं। ऐसे में देखना यह दिलचस्प होगा कि आखिरी पवार किस राह की राजनीति पर चलते हैं। जानकार ऐसे ही उन्हें महाराष्ट्र की राजनीति का चाणक्य नहीं कहते हैं।