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कृषि कानूनों पर सीलबंद रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई

नई दिल्ली, 30 मार्च (हि.स.)। कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसानों के आंदोलन का हल निकालने के लिए गठित की गई तीन सदस्यीय कमेटी ने सुप्रीम के पास सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। इस कमेटी का गठन सुप्रीम कोर्ट ने ही किया था। बताया जा रहा है कि कमेटी ने कृषि कानून के खिलाफ जारी किसानों के आंदोलन का हल निकालने के लिए देशभर के करीब 85 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से बातचीत की है। कमेटी की रिपोर्ट मिल जाने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई 5 अप्रैल को करेगा। दरअसल किसानों के कुछ संगठन किसान उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम- 2020, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम- 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम- 2020 के खिलाफ पिछले साल 26 नवंबर से ही गाजीपुर, सिंघु और टिकरी बॉर्डर की घेराबंदी किए हुए हैं। केंद्र सरकार और आंदोलनकारी किसानों के बीच अभी तक 11 दौर की वार्ता हो चुकी है। आंदोलनकारी किसानों के कृषि कानूनों की वापसी की मांग पर अड़े रहने के कारण अभी तक गतिरोध कायम है। इस मामले के सुप्रीम कोर्ट में आने के बाद शीर्ष अदालत ने मामले का हल निकालने के लिए वार्ताकारों को नियुक्त करने की बात कही थी। इसी क्रम में अदालत ने कृषि कानूनों का मूल्यांकन करने और इन कानूनों पर देश भर के किसान संगठनों की राय जानने के लिए एक तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया था, ताकि सरकार और किसानों के बीच जारी गतिरोध को खत्म किया जा सके। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त की गई कमेटी में अनिल घनवट, अशोक गुलाटी और प्रमोद जोशी को शामिल किया गया है। तीन सदस्यीय कमेटी की रिपोर्ट में क्या निष्कर्ष निकाला गया है या फिर इसमें किस बात की सिफारिश की गई है, इसका खुलासा नहीं किया गया है। विषय की गंभीरता को देखते हुए ही अदालत के पास सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट जमा की गई है। जानकारों का कहना है कि इस कमेटी ने जिन 85 किसान संगठनों से बातचीत की है, उनमें आंदोलकारी किसानों के संगठन तो शामिल हैं ही, किसानों के कई ऐसे संगठन भी शामिल हैं, जो कृषि कानूनों को किसानों की बेहतरी के लिए लाया गया कानून मानते हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में दोनों पक्षों के किसानों की बात को शामिल करते हुए कृषि कानूनों के मसले पर ऐसा संतुलन बनाने की कोशिश की होगी, जो सभी पक्षों को कमोबेश मान्य हो सके। हिन्दुस्थान समाचार/योगिता

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