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आईआईटी की नई रिसर्च, बैटरी के बदले अब रेडियो तरंगों से मिलेगी पावर

नई दिल्ली, 12 मई (आईएएनएस)। आज के दौर में हमारे कई महत्वपूर्ण उपकरण काम करने के लिए बैटरी पर निर्भर है। हालांकि कई मौकों पर उपकरणों की बैटरी बदलना कठिन हो जाता है। इसलिए अब वायरलेस पावर प्रणाली पर शोध हो रहे हैं। आईआईटी ने एक रिसर्च में ऐसी ही वायरलेस पावरिंग एवं संचार टेक्नोलॉजी विकसित है। आईआईटी मंडी की यह नई रिसर्च डिवाइस को रेडियो तरंगों के माध्यम से एनर्जी देती है। यह मोबाइल फोन में उपयोगी तरंगों की तरह होती है। इससे बैटरी- फ्री वायरलेस कैमरे, वायरलेस मॉनिटर, सेंसर, स्किन अटैचेबल सेंसिंग प्लेटफॉर्म, कॉन्टैक्ट लेंस, मशीन-टू-मशीन कम्युनिकेशन और मनुष्य से मनुष्य संवाद जैसे कई अन्य उपकरण इस्तेमाल में लाए जा सकते हैं। इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) कुछ वस्तुओं (विंग्स) का संग्रह है जो इंटरनेट के माध्यम से एक दूसरे से डेटा आदान-प्रदान कर सकती है। आईओटी डिवाइस में स्मार्ट घर के सामान्य घरेलू उपकरणों से लेकर अत्याधुनिक औद्योगिक और वैज्ञानिक उपकरण आते हैं। इन स्मार्ट उपकरणों में सेंसर, चिप्स और सॉफ्टवेयर होते हैं जिन्हें पावर चाहिए और हर समय अन्य उपकरणों के साथ संचार में रहना भी आवश्यक है। लेकिन बैटरी जैसे बिजली के सरल स्रोत ऐसे उपयोगों के लिए अनुपयुक्त हो सकते हैं क्योंकि आईओटी को निरंतर पावर चाहिए और फिर इनमें से कुछ चीजें एम्बेटेड या छिपी हो सकती है जिसके चलते बैटरी बदलना कठिन होता है इसलिए पूरी दुनिया में दूरस्थ संचार प्रौद्योगिकी को पावर के रिमोट विकल्पों से जोड़ने पर शोध हो रहे हैं। अपने शोध के बारे में शिवम गुजराल, पीएच.डी. स्कॉलर, स्कूल ऑफ कंप्यूटिंग एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, आईआईटी मंडी ने आईएएनएस से कहा, हमने एक कॉपरेटिव मॉडल का विकास किया है जिसमें बैकस्कैटर कम्युनिकेशन और रेडियोकोकोसी एनर्जी डास्टिंग (आरएफ-ईएच) डिवाइस एक साथ काम करते हुए समय और एंटीना पेट जैसे संसाधनों का अधिक उपयुक्त आवटन करते हैं। टीम ने पावर के ऐसे दो विकल्पों पर शोध किया। रेडियो फ्रीक्वेंसी एनर्जी हार्वेस्टिंग (आरएफ-ईएच) और बैकस्कैटर कम्युनिकेशन आरएफ-ईएच में एक डेडिकेटेड ट्रांसमीटर आईओटी डिवाइस को रेडियो तरंगों के माध्यम से एनर्जी देता है। ये संचार के लिए मोबाइल फोन में उपयोगी तरंगों की तरह होती है। बेकस्कैंटर संचार में पहले की तरह रेडियो तरंगों के माध्यम से पावर दिया जाता है लेकिन यह एक डेडिकेटेड ट्रांसमीटर के साथ या उसके बिना होता है। इसके बजाय आईओटी ऑब्जेक्ट्स को पावर देने के लिए रिफ्लेक्शन और बैकस्कैटर के माध्यम से आसपास उपलब्ध आरएफ सिग्नल, जैसे कि वाईफाई सेल फोन सिग्नल आदि का लाभ लिया जाता है। आरएफ-ईएच और बैकस्कैटर डिवाइसों की अपनी क्षमताएं और कमियां है। उदाहरण के लिए यदि आरएफ-ईएच की तुलना में बैकस्कैटर काफी ऊर्जा बचत करता है तो डेटा दर और संचार की सीमा दोनों में कमी आती है। आईआईटी मंडी की टीम ने इन दो तकनीकों की पूरक प्रकृति का लाभ उठाया है और सावधानी से दोनों को जोड़ कर सिस्टम को आवंटित पावर का उपयोग करते हुए सेवा की गुणवत्ता (क्यूओएस) और दक्षता का वांछित स्तर प्राप्त किया है। इस शोध कार्य के निष्कर्ष वायरलेस नेटवर्क में प्रकाशित किए जा चुके हैं। डॉ सिद्धार्थ सरमा, सहायक प्रोफेसर, स्कूल ऑफ कंप्यूटिंग एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, आईआईटी मंडी के मार्गदर्शन उनके छात्र शिवम गुजराल, पीएचडी स्कॉलर स्कूल ऑफ कंप्यूटिंग एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, ने यह शोध किया है। शोध के तकनीकी पहलुओं के बारे में डॉ. सिद्धार्थ सरमा, सहायक प्रोफेसर, आईआईटी मंडी ने बताया, हम ने दो डिवाइस के लिए एक डेडिकेटेड पावर ट्रांसमीटर का उपयोग किया, जिसमें सूचना संचार का कार्य बैकस्कैटर डिवाइस ने एक मोनोस्टैटिक कॉन्फिगरेशन और आरएफईएच डिवाइस ने एचटीटी प्रोटोकॉल के माध्यम से किया। प्रस्तावित सिस्टम में असीम क्षमता है। इसमें बैटरी- फ्री वायरलेस कैमरे वायरलेस मॉनिटर सेंसर, रिकन-अटैचेबल सेंसिग प्लेटफॉर्म, कॉन्टैक्ट लेंस, मशीन-टू-मशीन कम्युनिकेशन और मनुष्य से मनुष्य संवाद जैसे कई अन्य उपयोग की क्षमता है। --आईएएनएस जीसीबी/एसकेपी

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