
नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क। आज ही के दिन सात साल पहले (8 नवंबर 2016) रात 8 बजे देश में नोटबंदी हुई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए बताया था कि रात 12 बजे से 500 और 1000 के नोट बंद होंगे। हालांकि पीएम ने स्पष्ट किया था कि एक सीमा तक ये नोट बैंक में बदले जाएंगे। विपक्ष ने नोटबंदी के बाद जहां हाहाकार मचा कर सरकार के इस निर्णय को अलोकतांत्रिक बताया। वहीं, हजारों लोगों को नोट बदलने को बैंकों के सामने घंटों लाइन में खड़े रहना पड़ा था। नोटबंदी से कई घरों में शादियां टालनी करनी पड़ी थी। सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरों में 500 और 1000 के नोटों की कतरन नालों-तालाबों में दिखे थे। यह बताया गया था कि ये नोट ब्लैक मनी के थे।
नोट क्यों बंद किए गए थे?
भारतीय इतिहास की अर्थव्यवस्था के अहम फैसलों में एक नोटबंदी था। नोटबंदी बाद आज सरकार का दावा है कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था अधिक औपचारिक हुई। कोरोना के बावजूद राजस्व बढ़ा, गरीब वर्ग को अधिक संसाधन मिले, बुनियादी ढांचा दुरुस्त हुआ है।
नोटबंदी से हुए फायदे
डिजिटल भुगतान सिस्टम बूस्ट हुआ।
बैंकों की कर्ज देने की क्षमता में सुधार आया।
दो वर्षों में 17 लाख 42 हजार संदिग्ध खाताधारकों की पहचान हुई।
नोटबंदी से टैक्स बेस बढ़ाने में मदद।
लोगों की आदतें बदलने से कोरोना से जंग में मदद मिली।
2016 से पहले भी हुई थी नोटबंदी
यह जानकर हैरानी होगी कि 2016 से पहले भी दो बार नोटबंदी हुई है। नोटबंदी 12 जनवरी 1946 को भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल सर आर्चीबाल्ड वेवेल बड़े नोट बंद करने का अध्यादेश पारित किया था। 26 जनवरी 1946 में रात 12 बजे से 500, 1000, और 10,000 मूल्य के नोट चलन से रोका गया था। इसके बाद 16 जनवरी 1978 को तत्कालीन जनता पार्टी सरकार काले धन को खत्म करने के लिए 1000, 5000 और 10,000 के नोटों को चलन से बाहर किया गया। उस समय देसाई सरकार में वित्त मंत्री एच.एम. पटेल थे, और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह वित्त सचिव थे।
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