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डीजल की किल्लत से श्रीलंका में चौतरफा मुसीबतें

कोलंबो, 14 मार्च (आईएएनएस)। श्रीलंका में डीजल की कमी इस कदर हावी हो गयी है कि यहां बसों और ट्रेनों का पहिया तो थम ही गया है। साथ ही, विद्युत उत्पादन संयंत्रों के पूरी क्षमता से न चल पाने के कारण बिजली कटौती भी चरम पर पहुंच गयी है। श्रीलंका में विदेशी मुद्रा विनिमय की कमी ने कई महीनों से पूरे देश में तबाही मचायी हुई है। विदेशी मुद्रा की कमी के कारण श्रीलंका अपना आयात बिल भी नहीं भर पा रहा है, जिससे ईंधन की खेप आनी बंद हो चुकी है। चीन की संवाद समिति शिन्हुआ की रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीलंका के ऊर्जा मंत्री जामिनी लोकुगे ने रविवार को कहा कि देश में ईंधन और गैस लेने के लिये लगी लोगों की कतार को खत्म करने में कम से कम सात माह लगेंगे। पूरे श्रीलंका में पेट्रोल पंप के बाहर ईंधन के लिये कारों की लंबी कतार देखना अब आम बात हो चुकी है। श्रीलंका ने हालांकि पेट्रोल की पर्याप्त आपूर्ति कर ली है, जिससे निजी वाहनों को उतनी अधिक किल्लत का सामना नहीं कर पड़ रहा है। देश में सबसे अधिक कमी डीजल की है और यहां बस, ट्रेन और विद्युत संयंत्र तथा कई अन्य उद्योग ईंधन के रूप में इसका ही इस्तेमाल करते हैं। डीजल की भारी किल्लत के कारण उद्योग पर्याप्त क्षमता से काम नहंी कर पा रहे हैं। श्रीलंका में मार्च के पहले सप्ताह से 80 से 90 फीसदी बसें बंद कर दी गयी हैं। श्रीलंका में कई विद्युत उत्पादन संयंत्र डीजल संचालित हैं । सिलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड को फरवरी के अंत में डीजल की कमी के कारण 350 मेगावाट क्षमता के संयंत्रों को बंद करना पड़ा, जिससे पिछल्ले कुछ सप्ताह से पूरे देश में लोगों को बिजली कटौती की सामना करना पड़ रहा है। श्रीलंका के मेडिकल संगठन सरकार से आग्रह कर रहे हैं कि अस्पतालों में बिजली की कटौती न की जाये। बिजली की कटौती के कारण श्रीलंका का कृषि क्षेत्र भी प्रभावित हो रहा है। किसान बिजली संचालित मशीन नहीं चला पा रहे हैं और ईंधन की कमी के कारण वे अपनी फसलों को बाजार तक नहीं ला पा रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक श्रीलंका का ईंधन का औसत आयात बिल 2010 से 2020 के बीच हर साल 3.725 अरब डॉलर रहा था। दिसंबर 2021 की शुरूआत में श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडा मात्र एक माह के आयात बिल के लिये पर्याप्त था। --आईएएनएस एकेएस/आरजेएस

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