नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क। Kargil Vijay Diwas: आज से 23 साल पहले आज ही के दिन 26 जुलाई 1999 को हमारी सेना ने पाकिस्तान के मंसूबों को नाकाम करते हुए देश की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा लहराते हुए ये ऐलान किया था कि कारगिल हमारा है, इस पर कब्ज़ा करना तो दूर की बात है, इधर देखने की हिम्मत भी नही करना। तकरीबन 60 दिन लंबी चली इस लड़ाई में भारत की एक इंच जमीन बचाने के लिए भी हमारे कई बहादुर सैनिकों ने अपना बलिदान दिया था।
दुनिया में कहीं भी ऐसे बलिदान को किसी चीज़ से नहीं तौला जा सकता लेकिन फिर भी हमारी सेनाओं में ये रवायत बनी हुई है कि युद्ध के मैदान में किसी एक के बलिदान को सर्वोच्च तो माना ही जायेगा, ताकि उनकी शहादत के जरिये आने वाली पीढ़ी के लिए सेना के शौर्य को हमेशा जिंदा रखा जा सके।
भारत में आज "कारगिल विजय दिवस" मनाया जा रहा है, जिसके जरिये उन शहीदों की कुर्बानी को पिछले 22 साल से याद किया जाता है, लेकिन कड़वी हकीकत ये है कि आज भी इस देश के अधिकांश लोग अपने बच्चों को सेना की जोखिम भरी जिंदगी जीने की तरफ भेजने की बजाय एक सुरक्षित व आरामदायक प्रोफेशन में भेजने को अपनी प्राथमिकता ही समझते हैं। सरकार द्वारा लाई गई "अग्निवीर स्कीम" के तहत बहुत सारे युवाओं ने सेना में भर्ती के लिए आवेदन भी किया है, तो इसके पीछे की बड़ी वजह को भी समझना होगा।
आज से कई साल पहले मई 1999 में पाकिस्तानी सेना की वर्दी पहनकर कारगिल-द्रास सेक्टर में घुसपैठ करने वाले आतंकियों के बारे में अगर भारत के सेनिको को तब वहां के स्थानीय चरवाहों ने आगाह नहीं किया होता, तो यकीनन इन दोनों चोटियों पर पाक सेना अपना कब्जा करने में कामयाब भी हो जाती। परन्तु उन लोगो की वजह से आज वहां हमारा दबदबा बना हुआ है और आज भी वे लोग यही चाहते है की वो सब उनका हो जाये, परन्तु भारत के फौजी ऐसा कभी होने नहीं देंगे।
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