नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क: सनातन धर्म में पूजा पाठ का विशेष महत्व होता है। मंदिरों के साथ साथ घर में भी देवी देवताओं की पूजा पूरी श्रद्धा से की जाती है। हिन्दू धर्म के अनुसार यदि कोई नई मूर्ति को मंदिर या घर पर स्थापित किया जाता है तो उसकी प्राण प्रतिष्ठा करनी जरूरी होती है। प्राण प्रतिष्ठा नहीं किए जाने को अशुभ माना जाता है। साथ ही पूजा अधूरी मानी जाती है। आगामी 22 जनवरी को अयोध्या में श्री राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर जोरों से तैयारियां चल रही है। लोगों में इसका उत्साह और श्रद्धा देखते ही बनती है। लेकिन क्या आप जानते है कि आखिर प्राण प्रतिष्ठा क्या होती है। इसका क्या महत्व है और पूजा विधि क्या है। ये सभी चीजें आज हम आपको इस आर्टिकल में बताएंगे।
मंदिरों में मूर्ति स्थापना के समय प्रतिमा रूप को जीवित करने की विधि को ही प्राण प्रतिष्ठा कहते हैं। प्राण का अर्थ होता है जीवन शक्ति और प्रतिष्ठा का अर्थ स्थापना से माना गया है यानी प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ हुआ देवता को जीवन में लाना।
हिंदू धर्म में प्राण प्रतिष्ठा एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। जिसके जरिए मंदिरों में देवी देवताओं को स्थापित किया जाता है। यह सभी काम अनुष्ठान के जरिए होते हैं। इस दौरान भजन गीत पूजा अर्चना सभी चीजें की जाती हैं फिर जाकर प्राण प्रतिष्ठा की परंपरा पूरी होती है। क्योंकि घर हो या मंदिर बिना प्राण प्रतिष्ठा किया मूर्ति शुद्ध नहीं होती है। वह खंडित और अशुद्ध मानी जाती है। अगर आप घर में भी किसी भगवान को स्थापित कर रहे हैं तो मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा करनी जरूरी होती है।
प्राण प्रतिष्ठा के दौरान मूर्ति पर विशेष ध्यान दिया जाता है। मूर्ति टूटी या चटकी हुई नहीं होनी चाहिए। प्राण प्रतिष्ठा पूजन के दौरान सबसे पहले मूर्ति को गंगाजल या विभिन्न नदियों के जल से शुद्ध किया जाता है। इसके बाद साफ सुथरे कपड़े से मूर्ति को पोंछा जाता है। और नए वस्त्र धारण कराए जाते हैं। इसके बाद मूर्ति की पूजा की जाती है। उससे पहले चंदन ,रोली ,माला ,फूल आदि लगाया जाता है। और बीच में मंत्री का जाप किया जाता है। पूजा अर्चना के बाद सभी लोगों में प्रसाद वितरित किया जाता है और फिर प्राण प्रतिष्ठा का समापन हो जाता है।
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