अनलाॅक-1 में लोगों की लापरवाही से शिक्षाविद चिंतित
-शारीरिक दूरी के नियमों का पालन न करने और मास्क न पहने पर नाराज -विरोधी दलों के दुष्प्रचार और सोची समझी चाल को बताया घटिया सोच वाराणसी, 12 जून (हि.स.)। वैश्विक महामारी कोरोना के संकट काल में लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए लागू लॉकडाउन अनलॉक-1 में लोगों की लापरवाही से शिक्षाविद चिंतित है। लोग जिस तरह से सड़कों और अपने कार्यस्थल पर शारीरिक दूरी के नियमों की अनदेखी कर रहे हैं और मास्क का प्रयोग भी नहीं कर रहे इससे संक्रमण का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। शुक्रवार को इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी (इग्नू) वाराणसी के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक डाॅ. अवध नारायण त्रिपाठी ने 'हिन्दुस्थान समाचार'से बातचीत में कोविड-19 संकट काल में लोगों की लापरवाही पर चिंता जताई। उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि लोग कोविड प्रोटोकाल और इसके गाइड लाइन्स का पालन किए बिना धड़ल्ले से निकल रहे हैं। न मास्क लगाने की अनिवार्यता का पालन कर रहे हैं न ही शारीरिक दूरी का। इस लापरवाही तथा केन्द्र व राज्य सरकार में तालमेल की कमी का खामियाजा मुम्बई, दिल्ली व चेन्नई जैसे शहर के लोगों को विशेष भुगतना पड़ रहा हैं। विशेषकर मुम्बई व दिल्ली के अस्पतालों से आने वाली खबरें तो बहुत ही भयावह हैं। इस भयावह तस्वीर के बाद भी लोग चेत नहीं रहे। डॉ. त्रिपाठी ने समाज से सवाल किया आखिर हम कब अपने दायित्व को समझेंगे? अनावश्यक घर से निकलने की क्या जरूरत है? आज तो आपको यह मानकर घर से निकलना है कि बाहर सभी संक्रमित हैं और हमें अपनी पूरी सुरक्षा की जिम्मेदारी खुद उठानी होगी। जरा सी भी लापरवाही न सिर्फ हमारी बल्कि हमारे परिवार के सदस्यों, अपनों तथा पड़ोसियों के लिए भी जानलेवा हो सकती है। विपक्षी दलों की भूमिका से भी नाराजगी कोरोना संकट काल में विरोधी दलों की भूमिका से भी पूर्व क्षेत्रीय निदेशक आहत दिखे। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब 25 मार्च 2020 से 21 दिन के लाॅकडाउन की घोषणा की। इसके बाद हालात को गम्भीर देख लाकडॉउन की अवधि बढ़ाई तो विपक्ष सहित कुछ चैनलों ने भी हाय तौबा कर आसमान सिर पर उठा लिया। कई प्रदेशों में वहां की सरकारें अपने राज्य में रह रहे श्रमिकों को नहीं संभाल सकी। लोग पैदल , साइकिल, मोटर सायकिल, टेम्पों या ट्रकों में छिपकर अपने गांवों को लौटने के लिए बाध्य हुए। सबसे शर्मनाक स्थिति राजधानी दिल्ली में दिखी। यहां सोची समझी योजना में बिहार व उत्तर प्रदेश के श्रमिकों को गाजियाबाद बस स्टैण्ड तक पहुंचाया गया। इसी तरह मुम्बई के बान्द्रा स्टेशन पर श्रमिकों को जुटाया गया। जिसे टीवी चैनलों ने दिखाया। यह सब घटिया राजनीति का नमूना था। डॉ. अवध नारायण ने कहा कि संकटकाल में सरकार के साथ खड़े होने की बजाय प्रचारित यह किया गया कि बिना तैयारी के मोदी सरकार द्वारा लगाया गया लाॅकडाउन का यह दुष्परिणाम है। मीडिया व विरोधी दल एक सुर से इसे अमानवीय कदम बताने लगे और श्रमिकों को यथा शीघ्र उनके घरों तक भेजने के लिए ट्रेन व बसों को चलाने की मांग करने लगे। उन्होंने कहा कि विवश होकर केन्द्र सरकार को स्पेशल श्रमिक ट्रेनें चलाकर श्रमिकों को उनके गृह राज्य, जिला, गांव तक पहुंचाने की व्यवस्था करनी पड़ी। जबकि उस समय जरूरत थी कि सभी राज्य सरकारें राजनीति को भूलकर, अपने राज्य में रहने वाले मजदूरों के भोजन तथा आवास की समुचित व्यवस्था करती। दलीय राजनीति से ऊपर उठकर देशहित को प्राथमिकता देने के समय लगातार विपक्ष घटिया राजनीत पर उतर आया है। जरूरत देशव्यापी एक नीति की थी तब पार्टियां आगामी चुनाव के नफा नुकसान को देखने लगी है। लोगों से की अपील डॉ. अवध नारायण ने कोरोना संकट काल में लोगों से संयम रखने की अपील की है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में जरूरत है कि हम अपने जागरुक नागरिक होने का परिचय दें। बिना मास्क लगाए बाहर न निकले, दो गज की दूरी का खयाल रखें, बाहर से घर आने पर हाथों को 20 मिनट तक साबुन से अच्छी तरह धोएं। तथा खान पान में इम्यूनिटी बढाने वाली वस्तुओं का अधिक सेवन करें साथ ही प्रतिदिन सुबह नियमित योग व प्राणायम करें। उन्होंने लोगों को चेताते हुए कहा कि संकट काल में तालमेल की कमी से अगर देश तीसरे स्टेज में (कम्यूनिटी स्प्रेड) की स्थिति में पहुंच गया तो 1918 की एक करोड़ बीस लाख की गिनती भी छोटी पड़ सकती है। हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/दीपक-hindusthansamachar.in