नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क। बिहार के प्रख्यात लेखक फणीश्वरनाथ रेणु ने जब 1972 में अपने गृह जिले फारबिसगंज के अररिया से विधानसभा चुनाव लड़ा तो उनके हाथ केवल निराशा लगी। जिसके बाद उन्होंने चौथी कसम खा ली। फणीश्वरनाथ रेणु ने 1975 में देश में आपातकाल लगने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ भी आवाज़ उठाई थी।
क्या थी चौथी कसम?
फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा लिखा गए उपन्यास 'मारे गए गुलफाम' के किरदार हीरामन ने तीन कसम खाई थीं। लेकिन इसके बाद उनको अपनी असल जिंदगी में चौथी कसम खानी पड़ी। दरअसल हुआ यूं कि 1972 में विधानसभा के दौरान उन्हें पूरी उम्मीद थी कि वे ही चुनाव जीतेंगे। लेकिन उन्हें कांग्रेस के कद्दावर नेता सरयू मिश्रा से हारने का सामना करना पड़ा। इस बात का उन्हें इतना दुख हुआ कि उन्होंने फिर कभी राजनीति न लड़ने की कसम खा ली। इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सरयू मिश्रा ने लगभग 48 प्रतिशत वोट हासिल कर जीत हासिल की थी। सोशलिस्ट पार्टी के लखन लाल कपूर को 26, बीजेएस के उम्मीदवार जय नंदन को 13 तथा रेणु जी को 10 प्रतिशत वोट मिले थे। रेणु जी के उस चुनाव में हार की भरपाई 2010 में उनके बड़े बेटे पद्म पराग राय ‘वेणु’ ने फारबिसगंज से जीत कर की।
भारत-छोड़ो आन्दोलन में भी थे शामिल
फणीश्वरनाथ रेणु ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1942 के भारत-छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया। 1950 में नेपाली दमनकारी रणसत्ता के विरूद्ध सशस्त्र क्रांति के सूत्रधार रहे। 1954 में 'मैला आंचल' उपन्यास प्रकाशित हुई। इसके बाद उन्हें हिन्दी के कथाकार के रूप में बहुत प्रतिष्ठा मिली। उन्होंने जेपी आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी की। इस दौरान उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ आपातकाल के दौरान पद्मश्री का त्याग कर दिया और सरकार को पद्मश्री लौटा दिया। फणीश्वरनाथ रेणु ने आज़ादी की लड़ाई लड़ने से लेकर समाजवाद को बढ़ावा देने में विश्वास रखा। 11 अप्रैल, 1977 में उन्होंने अंतिम सांस ली।
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