अटल बिहारी वाजपेयी को नेहरू के रिश्तेदार से पहले चुनाव में मिली थी मात, जनसंघ ने फिर से जताया था विश्वास

Poltical KIsse: आजकल लोकसभा चुनाव का माहौल है। हर कोई राजनीतिक किस्से सुनना चाहता है। इसी कड़ी में आज हम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से जुड़ा एक किस्सा इस खबर के माध्यम से बताएंगे।
Atal Bihar Vajpayee
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नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अपनी बातों को अपनी कविता के माध्यम से जनता और राजनीतिक दलों के सामने रखने में काफी प्रसिद्ध थे। हर कोई उन्हें सुनना चाहता था। उन्हें देश की जनता काफी पसंद करती थी। आजकल लोकसभा चुनाव का माहौल है। हर कोई राजनीतिक किस्से सुनना चाहता है। इसी कड़ी में आज हम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से जुड़ा एक किस्सा इस खबर के माध्यम से बताएंगे।

वह भाजपा की और से पहले प्रधानमंत्री बने थे

भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव 2024 में 400 पार का नारा दे रही रही है। एक समय ऐसा था जब अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा के हिस्सा थे और उनके पास पार्टी के दो ही सांसद थे। भाजपा को मजबूत करने में अटल बिहारी वाजपेयी का बड़ा योगदान रहा है। वह भाजपा की और से पहले प्रधानमंत्री बने थे। जब अटल बिहारी ने अपना पहला चुनाव लड़ा था तो उस समय उन्हें बड़ी हार का सामना करना पड़ा था।

इस सीट से जवाहर लाल नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित ने जीत दर्ज की थी

वर्ष 1951-52 में देश में पहला चुनाव हुआ था, जिसमे कांग्रेस की भारी बहुमत के साथ जीत हुई थी। इसके बाद जवाहर लाल नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री बन गए थे। अब बात आती है लखनऊ की सीट की, पहले लोकसभा चुनाव में यहां भी मतदान हुआ था और इस सीट से जवाहर लाल नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित ने जीत दर्ज की थी। लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अपनी बहन विजय लक्ष्मी पंडित को एक नयी जिम्मेदारी देकर संयुक्त राष्ट्र में भेज दिया। जिसकी वजह से लखनऊ में फिर से चुनाव हुआ।

उनका बोलने का ढंग और व्यक्तित्व हर किसी को पसंद आया था

जब लखनऊ की सीट पर उपचुनाव हुए तो उस समय भाजपा नहीं हुआ करती थी। कांग्रेस के खिलाफ जनसंघ हुआ करती थी। अटल बिहारी वाजपेयी उस समय पत्रकार हुआ करते थे और अपने भाषणों के कारण काफी प्रसिद्ध हो रहे थे। ऐसे में जनसंघ ने अपना विश्वास अटलबिहारी वाजपेयी पर जताया और लखनऊ उपचुनाव में उन्हें जवाहर लाल नेहरू की रिश्तेदार श्योराजवती नेहरू खिलाफ मैदान में उतार दिया था। इस उपचुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी को करीब 34 हज़ार वोट ही मिले थे। वह इस उप चुनाव में तीसरे स्थान पर रहे, कांग्रेस की श्योराजवती नेहरू को करीब 50 हज़ार वोट मिले थे और इस चुनाव में श्योराजवती नेहरू की जीत हुई। लेकिन इस उपचुनाव ने अटल बिहारी वाजपेयी के लिए आगे के राजनितिक द्वार खोल दिए थे। क्यूंकि उनका बोलने का ढंग और व्यक्तित्व हर किसी को पसंद आया था।

इस बार अटल बिहारी वाजपेयी सिर्फ बलरामपुर से जीत हासिल करने में कामयाब हुए

अब बात आती है वर्ष 1957 को हुए आम चुनाव की जिसमे जनसंघ किसी भी तरह से अटल बिहारी वाजपेयी को संसद में लाना चाहती थी, ताकि वह जरुरी मुद्दों को देश के सामने रख सके। उस समय जनसंघ में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की कमी काफी महसूस की जा रही थी। क्यूंकि उनका निधन हो चूका था। ऐसे में जनसंघ ने अटल बिहार वाजपेयी को वर्ष 1957 में लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया। इस बार अटल बिहारी वाजपेयी सिर्फ बलरामपुर से जीत हासिल करने में कामयाब हुए और सांसद पहुंच गए थे। इस तरह उन्हें संसद जाने का मौका मिला और उसके बाद उन्होंने अपने कार्य और भाषणों से देश की जनता का दिल जीता और देश के 3 बार प्रधानमंत्री बने।

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