Diwali in Chitrakoot: चित्रकूट और भगवान राम का अटूट सम्बन्ध, यहाँ की दिवाली पूरे उत्तर भारत में फेमस

चित्रकूट में दिवाली पर मनाएं जाने वाले 5 दिन के उत्सव में शामिल होने के लिए देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु आते हैं।  ऋषि मुनियों के साथ चित्रकूट के  मंदाकिनी नदी में दीपदान किया था। 
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नई दिल्ली रफ्तार डेस्क: पुराणों  से लेकर पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री राम की जन्मस्थली अयोध्या है। जहां भगवान श्री राम का जन्म हुआ था। वैसे तो भगवान श्री राम का कण कण में विराजमान है। उनका गहरा नाता भारत ही नहीं बल्कि श्रीलंका,  इंडोनेशिया, और नेपाल जैसे देशों  से भी है लेकिन भारत में एक ऐसी जगह भी है।  जो भगवान श्री राम के बहुत नजदीक है। और उनका इस जगह से बहुत गहरा नाता भी रहा है। वह जगह चित्रकूट है। भारत में हर साल दीपावली के पावन पर्व पर लाखों श्रद्धालु श्री राम का नाम लेते हुए चित्रकूट जाते हैं। लेकिन इसके पीछे कई कथाएं और कई आस्थाएं भी जुड़ी हैं। जिसे  जानना हर भक्त के लिए  बहुत जरूरी है। 

चित्रकूट से श्री राम का संबंध

हिंदू धर्म में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का विशेष महत्व है। सनातन धर्म के पौराणिक कथाएं और उनके प्रताप और यश की तमाम कहानियां उल्लेखित है। मान्यताओं के मुताबिक भगवान राम ने चित्रकूट में अपने वनवास के साढ़े ग्यारह  वर्ष का समय बिताया था। जहां उनके साथ माता-पिता और अनुज भाई लक्ष्मण थे।  कहा जाता है कि पर्वतराज सुमेरू के शिखर कहे जाने वाले चित्रकूट गिरी को कामदगिरि  होने का वरदान भगवान राम ने ही दिया था।  तभी से विश्व के इस अलौकिक पर्वत के दर्शन मात्र से आस्थावानों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।  हर वर्ष देशभर के करीब एक करोड़ से अधिक श्रद्धालु चित्रकूट पहुंचकर मां मंदाकिनी की आस्था में डुबकी लगाते हैं। और कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा भी करते हैं। इस पौराणिक तीर्थ की महिमा का बखान स्वयं तुलसीदास ने अपने रामचरितमानस में किया है।

क्यों चित्रकूट के रामघाट जाते थे श्री राम

माना जाता है कि चित्रकूट में रामघाट पर भगवान राम हर दिन स्नान करने के लिए आते थे। यहां मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित रामघाट पर हर दिन भक्तों की भीड़ देखी जाती है।  यहां हर दिन कोई ना कोई  धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन होता रहता है। वैसे तो हम सभी जानते हैं कि चित्रकूट धाम में कामतानाथ भगवान की पूजा की जाती है।  इसके साथ ही यह भी कहा जाता है कि जब बजरंगबली की पूंछ में आग लग गई थी तो वह आग बुझाने के लिए इसी रामघाट में आए थे।  इस घाट पर जो बहने वाला जल है। वह पर्वत से निकलते हुए हनुमान जी की पूंछ को स्नान कराकर नीचे कुंड में जाता है।  इस रामघाट की लंबाई करीब 5 किलोमीटर है।

त्रेता युग से सजाया जा रहा चित्रकूट

हर साल दीपावली का त्योहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है।  यह दीपावली का त्योहार चित्रकूट के लिए एक अलग ही आस्था लेकर आता है।  कहते हैं त्रेता युग से ही चित्रकूट को दीपक जलाकर सजाया जाता रहा है और अभी भी चित्रकूट के रामघाट को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। दीपों की रोशनी से जगमग मनोदृश्य लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री राम जब रावण को मार कर चित्रकूट लौटे तो यहां साधु संतों ने उनका दीपक जलाकर स्वागत किया था। फिर विजय पताका के रूप में चित्रकूट से दीपदान की शुरुआत प्रभु राम ने ही की थी।  इसके बाद अयोध्या वापस आकर दीपावली का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाने लगा।  इसके बाद से ही पूरे देश में  दीपावली का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है। 

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