
नई दिल्ली रफ्तार डेस्क: गणेश चतुर्थी 10 दिवसीय त्यौहार है जो कि समूचे भारत में बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यह विशेष रूप से महाराष्ट्र में लोकप्रिय है। जहां इसे सार्वजनिक अवकाश के रूप में मनाया जाता है। त्यौहार के दौरान भक्त अपने घरों , मंदिरों और सार्वजनिक स्थानों में पंडाल लगाकर गणेश की मूर्ति स्थापित करते हैं। मूर्तियों के अलावा पूजा स्थल पर फल, मिठाईयां आदि का भोग भी चढ़ाया जाता है। 10 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में सुबह और शाम भगवान गणेश की पूजा अर्चना होती है। साथ ही भक्तगण बप्पा के जयकारे लगाते हैं। त्योहार के दसवें दिन भगवान गणेश की मूर्तियों को नदियों झीलों और समुद्र जैसे जल निकायों में विसर्जित कर दिया जाता है। विसर्जन भगवान गणेश की कैलाश पर्वत पर अपने निवास स्थान की वापसी का प्रतीक होता है।
गणेश चतुर्थी का इतिहास 17वीं शताब्दी से देखने को मिलता है। ऐसा माना जाता है कि इस त्यौहार की शुरुआत मराठा राजा छत्रपति शिवाजी महाराज ने की थी और इस त्यौहार के जरिए उन्होंने हिंदू संस्कृति को एकजुट देने का बढ़ावा भी दिया था। ऐसा माना जाता है कि छत्रपति शिवाजी ने अपनी माता जीजाबाई के साथ मिलकर गणेश चतुर्थी की उत्सव को सबसे पहले अपने घर में लाकर विराजा था। छत्रपति शिवाजी द्वारा इस महोत्सव की शुरुआत करने के बाद मराठा साम्राज्य के बाकी पेशवा भी गणेश चतुर्थी का महोत्सव मनाने लगे। इस दौरान वह मराठा पेशवा ब्राह्मणों को भोजन कराते थे और दानपुण्य करते थे। पेशवाओं के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने भारत में हिंदुओं के सभी पर्वों पर रोक लगा दी थी। लेकिन फिर भी बाल गंगाधर तिलक ने गणेश चतुर्थी के महोत्सव को दोबारा शुरू करने की शुरुआत की। इसके बाद 1892 में भाऊ साहब जावले द्वारा पहले गणेश मूर्ति की स्थापना की गई। इसके बाद से यह त्योहार मनाया जाने लगा।
गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी की स्थापना करने की मान्यता है। और उसके दसवें दिन बाद उनका विसर्जन भी किया जाता है। कई लोग यह जानने के लिए उत्सुक होंगे कि आखिर भगवान गणेश जी को इतनी श्रद्धा के साथ लाने और पूजने के बाद उन्हें विसर्जित क्यों किया जाता है। आपको बता दें कि धर्मशास्त्र के अनुसार इसके पीछे एक बेहद महत्वपूर्ण कथा छिपी हुई है। पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि वेदव्यास ने भगवान गणपति जी से महाभारत की रचना को क्रम बद्ध करने के प्रार्थना की थी। इसके बाद गणेश चतुर्थी के ही दिन व्यास जी श्लोक बोलते गए और गणेश जी उसे लिखित रूप से करते गए। 10 दिनों तक लगातार लेखन करने के बाद गणेश जी पर धूल मिट्टी की परत चढ़ गई थी । गणेश जी ने इस परत को साफ करने के लिए ही दसवें दिन चतुर्थी पर सरस्वती नदी पर स्नान किया था। तभी से गणेश जी की विधि द्वारा पूजा करने के बाद उन्हें विसर्जित कर दिया जाता है।
कहते हैं गणेश चतुर्थी में गणेश भगवान की 10 दिनों तक पूजा अर्चना करने के बाद गणेश जी से जो भी मांगा जाता है वह पूर्ण होता है। अगर शुभ मुहूर्त और पूरी भक्ति के साथ गणेश भगवान की पूजा अर्चना की जाती है और भगवान गणेश को उनके मनपसंद भोग लगाए जाते हैं तो प्रभु अपने भक्त को कभी निराश नहीं करते और उसके सभी संकट हर लेते हैं साथ ही उसकी हर एक मनोकामना को पूर्ण करते हैं।