
नई दिल्ली रफ्तार डेस्क: दिवाली के 5 दिनों के त्यौहार की शुरुआत धनतेरस के दिन से होती है। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन आयुर्वेद के भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था। धन्वंतरी भगवान का जन्म त्रयोदशी तिथि के दिन होने के कारण इस दिन को धन त्रयोदशी और धनतेरस के नाम से जाना जाता है। इस साल धनतेरस का त्योहार 10 नवंबर को है इस दिन भगवान धन्वंतरि के साथ माता लक्ष्मी और कुबेर की पूजा की जाती है। साथ ही बर्तन ,सोना, चांदी आदि खरीदे जाते हैं । चलिए आपको बताते हैं धनतेरस का शुभ मुहूर्त क्या है और धनतेरस क्यों मनाते हैं और पूजा विधि करने का सही तरीका क्या है।
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 10 नवंबर शुक्रवार को दोपहर 12 बजकर 34 मिनट से शुरू होगी। वहीं अगले दिन 11 नवंबर शनिवार को दोपहर 1 बजकर 56 मिनट में धनतेरस तिथि समाप्त होगी। धनतेरस के दिन प्रदोष काल में कुबेर देव और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। ऐसे में प्रदोष काल 10 नवंबर को शाम 5:29 बजे से रात 8 बजकर 7 मिनट तक रहेगा।
धनतेरस के दिन पूजा का शुभ समय 10 नवंबर को शाम 5 बजकर 46 मिनट से 7 बजकर 45 मिनट तक रहेगा। इस अवधि में धनतेरस की पूजा करना सर्वोत्तम रहेगा। आप चाहे तो पूजा के समय घर में ही श्री लक्ष्मी गणेश कुबेर आदि यंत्र की पूजा कर सकते हैं। जो काफी शुभ ।आना जाता है।
धनतेरस के दिन पूजा करते समय कुछ बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए। आपको बता दें कि इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और फिर आसन पर बैठकर भगवान धन्वंतरि और मां लक्ष्मी का ध्यान करें। उनके मंत्रो का जाप करें। इसके बाद पूरे दिन आप जो भी शुभ वस्तु चाहते हैं। उसे घर ला सकते हैं। शाम को प्रदोष काल में स्नान करके कपड़े बदले और कुबेर देव और मां लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद उन्हें गंगाजल से स्नान कराएं। नए वस्त्र पहनाएं और तिलक लगाए फिर दोनों को फल फूल मिठाई धूप आदि अर्पित करें। इसके बाद कुबेर देव ,मां लक्ष्मी का पाठ करें पूजा सामग्री के लिए आप फूल माला आटे का हलवा गुड़ के साथ धनिया के बीज, बूंदी के लड्डू, कौड़ी ,पान, सुपारी आदि अर्पित करें।
पौराणिक कथाओं के अनुसार धनतेरस का त्यौहार इसलिए माना जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इस तिथि को भगवान धनवेंतेश्वरी समुद्र से निकले थे। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि भगवान धन्वंतरि समुद्र में कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसलिए इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परंपरा चली आ रही है। भगवान धन्वंतरि को विष्णु भगवान का अंश माना जाता है और उन्होंने ही पूरी दुनिया में चिकित्सा विज्ञान का प्रसार प्रचार किया है। भगवान धन्वंतरि के बाद माता लक्ष्मी 2 दिन बाद समुद्र से निकली थी। इसलिए उस दिन दिवाली का पर्व मनाया जाता है। इस दिन पूजा अर्चना करने से आरोग्य सुख प्राप्त होता है।