Pradosh Vrat: इस प्रदोष इन मंत्रों का जरूर करें जाप, भगवान भोलेनाथ की होगी कृपा

हिन्दू शास्त्रों में प्रदोष व्रत का खास महत्व है। इस दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
Mantra of Pradosh Vrat
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नई दिल्ली रफ्तार डेस्क।5 May2024। हर माह की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाता है। जो कि भगवान भोलेनाथ का सबसे प्रिय व्रत है। इस दिन पूरे विधि विधान से भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना की जाती है। और उन्हें प्रसन्न करने के लिए उनके कई चमत्कारी मित्रों का भी जाप किया जाता है।

प्रदोष व्रत का महत्व और उसके नाम

प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में चल रही सभी समस्याओं का अंत होता है। साथ ही भगवान उनकी सारी मनोकामना भी पूरी करते हैं। प्रदोष व्रत सप्ताह के किसी भी दिन पड़ जाता है। इसीलिए उसके अलग-अलग नाम दिए गए हैं।सोमवार को प्रदोष व्रत पड़ता है, तो उसे सोम प्रदोष कहा जाता है। वहीं, रविवार के दिन पढ़ने वाला प्रदोष व्रत को रवि प्रदोष के नाम से जाना जाता है। ऐसे ही अलग-अलग नाम से प्रदोष को जाना जाता है।

पूजा विधि

प्रदोष व्रत के दिन आपको सुबह सवेरे उठकर स्नान करना चाहिए। और भगवान भोलेनाथ को जल चढ़ाना चाहिए। इसके बाद आपको व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इस व्रत की पूजा शाम को की जाती है। भगवान को जल चढ़ाने के बाद तिलक, फूल, फल और धूपबत्ती जलाकर उनकी पूजा करें। फिर उनको भोग लगाकर उनकी आरती करें। साथ में ही आपको प्रदोष व्रत की कथा भी पढ़नी चाहिए। प्रदोष व्रत अलग-अलग दिन पड़ता है।

इन मंत्रों का करें जाप

ऊँ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।

ये गायत्री मंत्र है यह मंत्र सबसे सर्व शक्तिशाली माना जाता है। प्रदोष व्रत के दिन इस मंत्र से जातक को जीवन में सुख और शांति की प्राप्ति होती है।

श्री शिवाय नम:।। इस मंत्र को 108 बार जपना चाहिए। इस मंत्र से व्यक्ति का शरीर और दिमाग शांत रहता है। और महादेव भी उसपर अपनी कृपा बनाए रखते हैं।

ॐ नमो भगवते रुद्राय नमः

यह रुद्र मंत्र है। प्रदोष व्रत के दिन इसका जाप करना बेहद शुभ होता है। मान्यता है कि ये मंत्र भक्तों की सभी मनोकामनाएं शिव जी तक पहुंचाता है।

श्री शंकराय नम:।।

ओम नमो नीलकण्ठाय नम:।।

श्री महेश्वराय नम:।

द: स्वप्नदु: शकुन दुर्गतिदौर्मनस्य, दुर्भिक्षदुर्व्यसन दुस्सहदुर्यशांसि।

उत्पाततापविषभीतिमसद्रहार्ति, व्याधीश्चनाशयतुमे जगतातमीशः।।

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

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