
नई दिल्ली , 21 अक्टूबर 2023 : आज, शारदीय नवरात्र का सातवां दिन है और इस दिन मां कालरात्रि की पूजा होती है, जो देवी भागवत पुराण के अनुसार नवरात्रि के सातवें दिन का स्वरूप है। मां कालरात्रि श्रद्धालुओं पर हमेशा कृपा करती हैं और उन्हें शुभ फल प्रदान करती हैं, जिससे उनका एक नाम 'शुभंकरी' भी है। मां सभी प्रकार के भय को दूर करने के लिए प्रसिद्ध हैं और इस रूप में भी पुकारी जाती हैं।
मां की कृपा प्राप्त करने के लिए भक्तों को गंगा जल, पंचामृत, पुष्प, गंध, और अक्षत से मां की पूजा करनी चाहिए। इसके अलावा, मां को गुड़ का भोग भी अर्पित करना चाहिए।
मां कालरात्रि का रूप रात के अंधकार की तरह है, जिसके श्वास से अग्नि निकलती है। इसके बाल बिखरे हुए हैं, गले में बिजली की भांति चमकती हुई माला है, जो तमाम आसुरी शक्तियों का विनाश करने में सक्षम है।
मां के तीन नेत्र ब्रह्मांड की तरह विशाल और गोल हैं, जिनमें से किरणें निकलती रहती हैं। इनके चार हाथ हैं, जिनमें खडग और लौह अस्त्र हैं, एक हाथ अभयमुद्रा में है और दूसरा वरमुद्रा में है।
इस रूप का वाहन गर्दभ अर्थात गधा है, जो जीव-जंतुओं में सबसे परिश्रमी और निर्भय है। मां कालरात्रि सिद्धि-सिद्धि प्रदान करने वाली हैं।
नवरात्र के सातवें दिन का विशेष महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दिन मां कालरात्रि अपने भक्तों को काल से बचाती हैं, अर्थात उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती है। पुराणों में इन्हें सभी सिद्धियों की देवी कहा गया है, इसलिए तंत्र-मंत्र के साधक इस दिन देवी की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।
मां कालरात्रि की पूजा करके भक्त अपने क्रोध पर विजय प्राप्त कर सकते हैं और इसे 'काली' के रूप में भी माना जाता है। इसकी पूजा सुबह में होती है, परंतु रात्रि में विशेष विधान के साथ देवी की पूजा की जाती है।
मां कालरात्रि के सिद्ध मंत्र: "ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:।"
मां कालरात्रि का ध्यान मंत्र: "एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी। वामपादोल्ल सल्लोहलता कण्टक भूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥"
इस दिन तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले तंत्र साधकों के लिए विशेष महत्वपूर्ण होता है, जो देवी की तांत्रिक विधि से पूजा करते हैं। इस दिन मां की आंखें खुलती हैं और भक्तों के लिए देवी मां का दरवाजा खुल जाता है।
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