
नई दिल्ली , 16 अक्टूबर 2023 : नवरात्रि, भारतीय सांस्कृतिक त्योहारों में से एक है, जो नौ दिनों तक देवी दुर्गा की आराधना का समय है। इस अद्भुत महोत्सव में, प्रतिदिन एक रूप में देवी की पूजा की जाती है और नौ दिनों के अंत में, विजयदशमी के दिन, उनकी उत्साहजनक आराधना का समापन होता है।
मां ब्रह्मचारिणी: रूप और महत्व
नवरात्रि के दूसरे दिन, देवी का दूसरा रूप है "मां ब्रह्मचारिणी"। इस रूप में मां दुर्गा ने भगवान शिव का ध्यान करते हुए ब्रह्मचर्य की तपस्या की थीं। इस रूप में देवी का चेहरा शानदार होता है और वह धनुष और कमंडलु धारण करती हैं। इसका अर्थ है कि मां ब्रह्मचारिणी अपने आत्मा की अद्वितीयता में लीन रहती हैं और तपस्या में लगी रहती हैं।
मां ब्रह्मचारिणी की विशेषताएँ:
तपस्या की प्रतीक: मां ब्रह्मचारिणी तपस्या और आत्मा साक्षात्कार की प्रतीक हैं। इन्होंने अपनी साधना में ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए अत्यंत ऊर्जावान और स्वतंत्र जीवन बिताया।
सुंदर और शानदार: मां ब्रह्मचारिणी का रूप अत्यंत सुंदर और शानदार है। वह देवी की सुंदरता और ध्यान में रत रहने की प्रतीति है।
धनुष और कमंडलु धारण: मां ब्रह्मचारिणी के हाथ में धनुष और कमंडलु होने से यह सिद्ध होता है कि वह तपस्या की भावना में लीन रहती हैं।
मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र और पूजा विधि:
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के लिए निम्नलिखित मंत्र का जाप किया जा सकता है:
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
पूजा विधि:
पूजा का आरंभ देवी दुर्गा की पूजा के साथ होता है, जिसके बाद मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है।
पूजा के लिए सफेद वस्त्र, चाँदन, कुमकुम, फूल, और नैवेद्य की वस्तुएं उपयोग की जाती हैं।
मां ब्रह्मचारिणी को धूप और दीप से पूजा जाता है, और उनके चरणों में रोली और चावल चढ़ाया जाता है।
आरती गाने के बाद, कुछ मिठाई और प्रसाद को मां ब्रह्मचारिणी के चरणों से छूने के बाद प्रशाद के रूप में बांटा जाता है।
नवरात्रि में मां ब्रह्मचारिणी की आराधना करने से विद्या, ध्यान, और तप की शक्ति मिलती है, जो साधक को आत्मा के साक्षात्कार की ओर बढ़ने में मदद करती है। इस दिन, भक्त देवी की कृपा को प्राप्त कर उनके मार्ग पर चलने की कामना करते हैं।
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