
नई दिल्ली रफ्तार डेस्क: हिंदू धर्म में अहोई अष्टमी का व्रत बेहद धार्मिक महत्व है। इस व्रत को महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु और सुख सौभाग्य की प्राप्ति के लिए रखती है। इस उपवास को वह महिलाएं भी रखती हैं जिन्हें संतान की चाह होती है। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से संतान संबंधी सभी समस्याएं दूर होती हैं। ऐसे में अगर आप भी अहोई अष्टमी व्रत को रख रहे हैं तो आपको सभी नियमों का पालन करना चाहिए ।
कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 5 नवंबर प्रातः 12 बजकर 59 मिनट से कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की समाप्ति 6 नवंबर प्रातः 3 बजकर 18 मिनट तक रहेगी । अहोई अष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 34 मिनट से शाम 6 बजकर 53 मिनट तक रहेगी l। इस दौरान चांद देखने का शुभ समय शाम 5 बजकर 59 मिनट रहेगा । वहीं चंद्रोदय देखने का समय प्रातः साढ़े 12 बजे 6 नवंबर तक रहेगा।
अहोई अष्टमी हिंदू समुदाय विशेषकर माता के लिए गहरा प्राकृतिक और धार्मिक महत्व रखता है। अहोई अष्टमी का व्रत माताएं अपने बच्चों की भलाई और लंबी उम्र के लिए देवी अहोई माता का आशीर्वाद और सुरक्षा पाने के लिए करती हैं। ऐसा माना जाता है की देवी बच्चों के स्वास्थ्य खुशी और समृद्धि की रक्षा करती है। उनकी वृद्धि और विकास सुनिश्चित करती हैं। अहोई अष्टमी का त्यौहार एक मां और उसके बच्चे के बीच गहरे रिश्ते के बारे में बताता है। माताएं अपने बच्चों के कल्याण के लिए अपने गहरे प्यार भक्ति और प्रतिबद्धता को व्यक्त करने के लिए इस कठोर व्रत को रखती हैं।
* अहोई अष्टमी के दिन सुबह स्नान करें।
* स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें। और पूरे दिन निर्जला व्रत का पालन करें।
* साफ स्थान पर अहोई माता का चित्र बनाएं।
* फिर शाम के समय विधि अनुसार पूर्णिमा की पूजा करें। और माता को कुमकुम लगाएं।
* अहोई माता को फूल अर्पित करें।
* मां के समझ से घी का दिया जलाएं और पूरी हलवे का भोग लगाएं।
* अंत में कथा पढ़कर घी में दीपक से आरती करें।
* चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करें और मन से संतान सुख प्राप्त की कामना करें।
दंतकथा के अनुसार एक बार एक औरत अपने साथ पुत्रों के साथ एक गांव में रहती थी। एक दिन कार्तिक महीने में वह औरत मिट्टी खोदने के लिए जंगल में गई। वहां पर उसने गलती से एक पशु के शावक की अपनी कुल्हाड़ी से हत्या कर दी। उसे इस घटना के बाद उस औरत के सातों पुत्र एक के बाद एक मृत्यु को प्राप्त होते चले गए। इस घटना से दुखी होकर उस औरत ने अपनी कहानी गांव के हर एक औरत को सुनाई। फिर एक गांव की औरत ने उस औरत को यह सुझाव दिया कि वह माता अहोई अष्टमी की आराधना करें। पशु के शावक की सोते हुए हत्या के पश्चाताप के लिए उस औरत ने शावक का चित्र बनाया और माता अहोई अष्टमी के चित्र के साथ रखकर उनकी पूजा करने लगी। उस औरत ने 7 वर्षों तक अहोई अष्टमी का व्रत रखा और आखिर में सात पुत्रों पुत्र को जीवित हो गए।